वर्तमान को प्रसन्नता से स्वीकारें

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डॉ. दीपक आचार्य

वर्तमान को प्रसन्नता से स्वीकारें

भविष्य की आशंकाओं से मुक्त रहे

जो लोग आज को सामने रखकर प्रसन्नता का भाव रखते हैं वे जीवन में भविष्य की समस्याओं से मुक्त रहते हैं। जिसका वर्तमान अच्छा होता है उसका भविष्य अपने आप अच्छा होता चला जाता है।

इसलिए वर्तमान की प्रत्येक घटना को प्रफुल्लतापूर्वक स्वीकार करें और पूरी तरह वर्तमान को जीयें, इसी से आने वाली घटनाओं का ताना-बाना बुनने लगता है।

हमारी कई समस्याओं का जनक ही वर्तमान की अस्वीकार्यता है और इसकी वजह से हम जीवन में प्रायःतर असहज रहने लगते हैं। इस असहजता के साथ ही आरंभ होता है दौर तनावों और मानसिक अवसाद।

परिस्थितियाँ हमेशा परिवर्तित रहती हैं। कभी हमें ये सकारात्मक लगती हैं, कभी नकारात्मक। इन दोनों ही स्थितियों में हमारे चित्त की वृत्तियाँ बदलती रहती हैं।

इन दोनों ही स्थितियों में समत्व भाव की बुनियाद मजबूत होने पर जीवन के सामान्य व्यवहार में ये कोई ख़ास प्रभाव नहीं डाल पातीं। इस समत्व के साथ ही तमाम परिस्थितियों के प्रति हमें द्रष्टा भाव की तरह बर्ताव करना चाहिए।

परिस्थितियां अच्छी हों या बुरी, ये ही नहीं बल्कि जीवन की प्रत्येक घटना-दुर्घटना समय सापेक्ष है और निर्धारित समय में वह अपना प्रभाव छोड़ कर अपने आप बिना बताए चली जाती हैं।

इसलिए प्रयास यह करें कि हर परिस्थिति में अपने आपको ढालें तथा हर स्थिति में अनुकूलन को अपनाने के लिए अपने व्यक्तित्व के सामर्थ्य को बढ़ाएं।

यह हर किसी को चाहे वह बड़ा हो या छोटा, उसे यह निश्चित स्वीकार करना चाहिए कि सभी परिस्थितियां और समय अपने अनुकूल नहीं हुआ करते। इनमें निरन्तर परिवर्तन आता रहता है।

बदलना हमें ही पड़ता है और हर परिस्थिति के अनुरूप खुद को ढालने की आदत होनी चाहिए। चाहे हालात किसी भी प्रकार के हों।

अधिकांश लोग भविष्य की आशाओं के प्रति ही इपनी दृष्टि रखते हैं और उन्हें लगता है कि आने वाला समय ही अच्छा आएगा। ऐसे में ये लोग वर्तमान को कभी स्वीकार नहीं कर पाते। बात चाहे घर-परिवार ओर दफ्तर की हो या समाज और परिवेश की।

समस्याओं का अंत न कभी हुआ है, न होगा। इसी प्रकार संतोष नहीं होने पर कोई भी स्थिति प्रसन्नता नहीं दे सकती। ऐसे लोग वर्तमान को तिरस्कृत करते हुए भविष्य के मकड़जाल बुनने में दिन-रात लगे रहते हैं। उनकी हमेशा यह सोच बनी रहती है कि वर्तमान की हर घटना और व्यवहार खराब है, तथा आने वाला समय ठीक हो सकता है।

इस प्रकार की धारणा पाने वाले लोग अपनी पूरी ऊर्जा वर्तमान की जड़ों को खोदने और भविष्य के सपनों का महल बनाने में लगाए रखते हैं। इनका हर दिन ऐसे ही उल्टे-सीधे कामों में रमने लगता है।

कई लोग अपने वर्तमान अफसर से दुखी हैं तो कई अपने मातहतों से। कोई जीवन के वर्तमान से परेशान है तो कोई अपने आस-पास के लोगों के व्यवहार से। अपने यहां भी ऐसे ढेरों लोग हर कहीं सहज ही मिल जाते हैं जो वर्तमान से प्रसन्न नहीं हैं और भिड़े हुए हैं भविष्य की आशाओं को रंगीन बनाने। ये लोग सारे षड़यंत्रों और हथकण्डों में।

नियति का सिद्धान्त है कि समान सोच व व्यवहार वाले लोगों को ढूँढ़ना नहीं पड़ता, ये लोग दुनिया के किसी भी कोने में हों, अपने आप एक-दूसरे की ओर खिंचे चले आते हैं।

लेकिन ऐसे सभी किस्म के लोगों के चेहरों पर कभी प्रसन्नता के भावों का दर्शन हो ही नहीं सकता। हमेशा मुँह बनाये रखेंगे अथवा बीमार दिखेंगे। वर्तमान की कोई सी घटना कितनी ही सुकूनदायी क्यों न हों, इन लोगों के लिए हर घटना दुःखी करने वाली ही साबित होती है।

ये लोग अपने भविष्य को सँवारने के मिशन में अपनी ही दूषित किस्म के षड़यंत्रकारी लोगों या समूहों से नापाक साँठ-गाँठ करने में इतने माहिर हो जाते हैं कि साम, दाम, दण्ड और भेद से लेकर हर कुत्सित गतिविधि को अपना कर भी वर्तमान के सौन्दर्य को उजाड़ने में दिन-रात सोचते और लगे रहते हैं।

अपने इलाके में, समाज में और आस-पास ऐसे विघ्न संतोषियों की कोई कमी नहीं है जिनके कारण अच्छे लोग और समाज सभी त्रस्त हैं। इन लोगों का पूरा जीवन प्रोपेगण्डों से भरा रहता है और सामाजिक हवाओं को दूषित करने के साथ ही परिवेश तक में जहर घोलने में ये लोग कभी पीछे नहीं रहते। दुर्भाग्य यह भी है कि ऐसे विघ्न संतोषियों की वजह से समसामयिक सामाजिक तरक्की में किसी न किसी स्तर पर स्पीड़ ब्रेकर लग ही जाता है।

अच्छी से अच्छी गतिविधि भी इनके लिए दुःख में रूपान्तरित हो जाती है क्योंकि इनके मन और बुद्धि में यह बात घर कर गई है कि यह सब खराब है और इसलिए इसे बदलना ही होगा। वर्तमान में खुश नहीं रहना व्यक्ति के जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है और इसी की वजह से वह न आगे बढ़ पाता है, न वर्तमान का आनंद ले पाता है।

इसलिए इन सारे हालातों में खुश रहने के लिए वर्तमान को सम्मान दें। आपका भविष्य अपने आप बन जाएगा।

1 COMMENT

  1. निश्चित ही विचारणीय एवं मनन करने योग्य बात हैं-

    परिस्थितियां अच्छी हों या बुरी, ये ही नहीं बल्कि जीवन की प्रत्येक घटना-दुर्घटना समय सापेक्ष है और निर्धारित समय में वह अपना प्रभाव छोड़ कर अपने आप बिना बताए चली जाती हैं।
    हमारे गांव में एक बुजुर्ग आज की अव्यवहारिक शिक्षा व्यवस्था पर एक तंज कसते हुए एक कहानी सुनाया करते थे- एक बार खेतों में अनाज कम हुआ तो घर के मुखिया ने सभी घर वालों को बुला के कहा कि भाई इस बार अनाज कम है ११ महीने के लिए तो गेहूं हैं और १ महीना भूसा खाना होगा – पहले बुजुर्ग ऐसे ही परीक्षा लेते थे और सीख देते थे। इससे पहले कि कोई और उनकी बात का मर्म समझ पाता जो सबसे नई बहू काफी पढी लिखी आई थी. बोली कि ठीक है पिताजी पहले एक महीने हम भूसा खा लेते हैं जिससे आगे के पूरे ११ महीने अनाज ठीक से खाने को मिलेगा,,,, तो ऐसे होते हैं आज के पढ़े लिखे ।
    आचार्यजी ने एक बहुत अच्छा विषय उठाया है – यह जो भागम भाग है इसने भविष्य के लिए परेशान रहने की आदत डाल दी है। मैंने अपनी एक महिला सहकर्मी के जीवन की कष्टप्रद भागमभाग को दो लाइनें अर्पित की थीं-
    जीवन की आपाधापी में खुद जीवन पीछे छूट गया, आशाओं के तप्त अलाव में सरस तृप्ति घट फूट गया ।
    बैसे सारे दोष शिक्षा व्यवस्था के ही हैं जिससे हम बचपन में ही बच्चे को स्नेह, धीरज, बुजुर्गों एवं परिवार से दूर कर देते हैं वह सिर्फ ए फॉर एप्पिल में ही पिचक जाता है पेड़ पर लगे आम कैसे तोड़े जाते हैं कभी नही देख पाता, सीखना तो दूर । यह नौंटकीपूर्ण शिक्षा उसके जीवन की नींव कमजोर कर देती है, आज के बच्चों ने जाना ही नहीं कि वर्षा में भीगना क्या होता है. या बम्बे में नहाना क्या होता है या नीम की निबोली कैसी होती है या नाली कैसे फंलागी जाती है आदि आदि इस लिए जीवन में जरा सी विपरीत स्थिति आते ही उनकी टें बोल जाती है। मेरे यहां हर साल कोई न कोई लटक जाता है कारण- तथाकथित शारीरिक प्रेम में असफलता. उसको किसी और के साथ देख लिया या एक परीक्षा में बैक आ गई ।
    आज आवश्यकता है कि हम सब आचार्यजी जैसे महापुरुषों के प्रेरक सद् विचारों का अपनी युवा पीढी खासतौर से बच्चों में प्रसार करें और उन्हें यह समझाएं कि विपरीत परिस्थितियों को कैसे वेहतर तरीके से हैंडिल करें ।
    सादर

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