-वीरेन्द्र सेंगर
हाशिम अंसारी ९० वसंत देख चुके हैं| साठ साल तक अनवरत मुकदमा लड़ते-लड़ते वे कभी नहीं थके। उन्होंने वह मंजर भी देखा है, जब पूरी अयोध्या में धर्म के नाम पर रक्त पिपासुओं की टोलियां हुंकार भरती नजर आती थीं। वह दौर भी देखा है, जब पूरा शहर दहशत के चलते दुबक जाता था। रायफलधारी पुलिस वाले ही चप्पे-चप्पे पर पदचाप करते नजर आते थे। तब भी वे नहीं सहमे। उनकी आंखों से आंसू नहीं बहे। पूरे धार्मिक विश्वास से वे इबादत की तरह मुकदमा लड़ते रहे। मुकदमे से निपटारा हो गया है। चाहते हैं कि अब टंटा खत्म हो जाय। मिल-बैठकर फैसला हो जाय। लेकिन तमाम अपने ही उनकी टांगें खींचने में लगे हैं। इससे उनका धीरज टूट गया। वे जार-जार रोए। परायों पर नहीं, अपनों पर, जो नहीं चाहते कि इतनी जल्दी अयोध्या में अमन की इबारत लिख दी जाए।
इन्हीं साजिशों के खिलाफ हाशिम अंसारी खड़े हो गये हैं। उन्हें बहुत रंज है। उन्होंने अपने दिल की बात छुपायी नहीं। मीडिया के सामने अपनी पीड़ा का इजहार कर डाला। कह दिया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड सहित कई कौमी अलंबरदारों को पसंद नहीं है कि वे समझौते की बात करें। सो, वे चुप बैठेंगे। मंदिर-मस्जिद की सियासत जाए भाड़ में। अब अल्लाह ही अमन के दुश्मनों को नसीहत दे। इन्हें समझाना उनके बस की बात नहीं रही। इतना कहकर वह अपने शुभचिंतकों के बीच फफक पड़े थे।
ये वही हाशिम मियां हैं, जो तीस साल की उम्र से बाबरी मस्जिद के हक की लड़ाई लड़ते आये हैं। 60 साल पहले फैजाबाद की अदालत में पहला मुकदमा ठोका गया था। 22-23 दिसंबर 1949 की रातों रात कुछ लोगों ने मस्जिद में मूर्तियां रख दी थीं। कहा गया था कि रामलला ‘प्रकट’ हो गये हैं। यहीं से शुरू हुआ था ऐतिहासिक टंटा, जो 1988 के आते-आते सांप्रदायिक नासूर बनने लगा। 1989 में भाजपा के शीर्ष नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ-अयोध्या की चर्चित ‘रथयात्रा’ शुरू की थी। इस यात्रा ने राम जन्मभूमि आंदोलन को प्रचंड अवतार में बदल डाला। 6 दिसंबर 1992 को तो ‘कारसेवकों’ ने देखते ही देखते बाबरी ढांचे को मिट्टी में बदल डाला था। इस घटना के बाद देश के कई शहर सांप्रदायिक आग में जल उठे थे। दंगों में 2000 से अधिक लोग मरे थे। तीन हजार करोड़ रुपये की संपत्ति स्वाहा कर दी गयी थी। इस प्रकरण ने हिंदू-मुसलमानों के बीच के आपसी विश्वास को इतना तोड़ा कि अब तक दरारों की भरपाई नहीं हो पाई। यह अलग बात है कि इसका सबसे ज्यादा सियासी फायदा भाजपा ने उठाया है। वह लाल किले की सत्ता तक जा पहुंची। सपा जैसे दलों ने सेकुलर राजनीति का अतिरेक करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस सियासी होड़ में बुनियादी मुद्दे हाशिए पर जाते रहे।
छह दशक बाद 30 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का फैसला आ गया है। विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा वक्फ बोर्ड को दिया गया है। पेच यहीं है। हिंदू संगठनों का जोर है कि मुस्लिम सदाशयता दिखाकर पूरी जमीन राम मंदिर के लिए छोड़ दें। जबकि सुन्न्नी वक्फ बोर्ड इस मामले में 16 अक्टूबर को लखनऊ में निर्णायक विमर्श करने जा रहा है। वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी का दावा है कि वे लोग एक महीने के अंदर हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे देंगे। बोर्ड की बैठक में इसका औपचारिक फैसला हो जाएगा।
जिलानी को इस बात की खास कोफ्त है कि हाशिम अंसारी समझौते के लिए जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं। जबकि पूरी कौम को लखनऊ बेंच के फैसले से नाखुशी है क्योंकि कोर्ट ने हिंदुओं की आस्था को ज्यादा तरजीह दी है। जबकि अदालत को फैसला प्रमाणों के आधार पर करना होता है। वे सवाल करते हैं कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था का ख्याल रखा जाए, तो करोड़ों मुसलमानों की आस्था की भी अनदेखी नहीं होनी चाहिए। यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में उठाया जाएगा।
हाशिम अंसारी राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद मामले में एक प्रमुख पक्षकार रहे हैं। 90 वर्षीय हाशिम कह रहे हैं कि मुकदमा लड़ने के बावजूद उनके निजी भाईचारे के रिश्ते संतों से बने रहे हैं। यहां तक कि मुकदमों की तारीखों में वे एक वाहन से साथ-साथ फैजाबाद जाते थे। निजी सुख-दुख में सभी साथ-साथ खड़े होते थे। लेकिन 1984 के बाद इस मामले में अयोध्या के बाहर के लोगों का दखल बढ़ा। इसमें दोनों समुदायों के बीच कटुता बढ़ती गई। अयोध्या के लोग इस टंटे से ऊब चुके हैं। कोर्ट के फैसले के बाद आपसी समझौते की बात बढ़ी है। वे भी चाहते हैं कि उनके जीते जी फिर अयोध्या में अमन की अजान हो, बरकत की रामधुन बजे। लेकिन कुछ तत्व चाहते हैं कि ऐसा न हो।
हाशिम पिछले कई दिनों से समझौते की जमीन तैयार करने के लिए जुटे थे। वे अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास से कई मुलाकातें कर चुके हैं। बात सही दिशा में बढ़ी तो कई और अखाड़े एवं मलंग साधु कूद आए। उन्होंने महंत ज्ञानदास की हैसियत पर सवाल उठाए। विहिप के चर्चित नेता ने कह दिया है कि समझौते की बात केवल शिया नेताओं से हो क्योंकि 1949 में मूर्ति रखने के पहले मस्जिद की देख-रेख शिया समुदाय के लोग ही करते थे। निर्मोही अखाड़े के कई संतों ने हाशिम से बातचीत पर नाराजगी जाहिर की है। एक स्वनामधन्य संघ परिवारी संत ने कह दिया है कि रामलला क्या कोई सड़कछाप भगवान हैं जो छोटे से मंदिर में गुजर बसर कर लें। ऐसे में भला वहां मस्जिद और अजान की गुंजाइश कैसे हो सकती है।
अभी बातचीत सही दिशा में शुरू भर हुई थी, इसके पहले ही आग का ‘लुकाठा’ लिए कई चेहरे कूद आए हैं ताकि एक बार फिर अशांति और दहशत की गवाह बने अयोध्या। एक दौर में मुलायम सिंह के खास सखा रहे अमर सिंह के तो ज्ञान चक्षु खुल गए हैं। सो उनकी नई तान है कि मुलायम सिंह अपने बयानों से कोर्ट की तौहीन कर रहे हैं। सीपीएम के चर्चित कामरेड सीताराम येचुरी ने कहा कि आस्था के आधार पर हाईकोर्ट ने फैसला देकर ठीक नहीं किया। इससे सुप्रीम कोर्ट के 1995 के निर्देश की अनदेखी हुई है। सियासी जमातों ने अपने-अपने तरीकों से समझौते के रास्ते रोकने की कवायद तेज कर दी है। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कह दिया है कि अयोध्या में मस्जिद तो बने लेकिन ‘पंचकोसी’ परिक्रमा क्षेत्र के बाहर यानी 6-8 किमी दूर। दूसरे शब्दों में कहें, तो उन्हें अयोध्या में मस्जिद स्वीकार नहीं। सभी जानते हैं कि अयोध्या बहुत बड़े भूभाग का शहर नहीं है। शर्त ऐसी लगा दी कि निपटारे की गुंजाइश ही सिमट जाए। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भी मंगलवार को विमर्श हुआ है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी इसमें ‘वेट एंड वाच’ की रणनीति पर ही आगे बढ़ना चाहती है। क्योंकि पिछले वर्षों में इस टंटे की वह बहुत सियासी कीमत दे चुकी है। ऐसे में फूंक-फूंक कर चलना ही बेहतर समझती है। भले ही टंटा दशकों तक लंबित बना रहे। ये सब उस हाशिम का धीरज तोड़ने के लिए काफी है, जिसका धीरज ६० साल तक नहीं टूटा|
(वीरेन्द्र सेंगर दिल्ली के जाने-माने पत्रकार हैं| उनसे फोन नंबर ०९८१०१३२४२७ पर संपर्क किया जा सकता है)
कौन चाहता है यहाँ, रहे अमन ओ चैन.
अंसारी की बात से, जिलानी बैचैन.
जिलानी बैचैन, की कैसे मिटा गया झगड़ा?
दंगे हुए ना उत्पातें, यह कैसा रगडा?
कह साधक कोई भी संगठन नहीं चाहता
अमन-चैन की बात, कहें तो कौन चाहता?
कबीर ने कहा है,
कबीरा खडा बाज़ार में लिए लुकाठी हाथ.
जोघर जारे आपना चले हमारे साथ.
है कोई माई का लाल जो ऐसा कर सके?
समस्या का समाधान इसीमें है.
its a very good post sending by shri sengsr ji and -very good comments of pankaj jha .congratulations for both the intelectual personalities
गोरी सोवें सेज पै,डारें मुख पर केश .
चल खुसरो घर आपने ,रेन भई यह देश .
हाशिम अंसारी जी ने यदि शांतिपूर्ण समन्वय और सहमती के भारतीय आदर्श को सम्मान दिया तो वे विश्व वन्दनीय हो जायेंगे .उन्हें खुदा- अल्लाह के रसूल के हुक्म का यही निर्देश है की भारत में कम से कम अब अयोध्या का विवाद तो हल हो .
हामिद साहब आप इस गंगा-जमुनी तहजीब के अग्रदूत के रूप में गिने जायेंगे. इश्वर से आपकी लंबी उम्र की प्रार्थना.