सरिता अरगरे
मध्यप्रदेश की मंडियों में आजकल गेंहूँ की बम्पर आवक ने सरकार के होश फ़ाख्ता कर रखे हैं। सरकारी खरीद के अनाज को रखने के लिये गोदाम कम पड़ रहे हैं। इस मर्तबा हुई बम्पर पैदावार ने एक बार फ़िर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की नीयत पर सवाल खड़े कर दिये हैं। बीती सर्दियों में सूबे की सरकार पाले और तुषार का रोना रोकर किसानों की चिंता करने में लगी थी, वो अब गेंहूँ की बम्पर पैदावार से हैरान है। अभी ज़्यादा वक्त नहीं गुज़रा है,जब प्रदेश में पाले से कहीं सत्तर तो कहीं सौ फ़ीसदी फ़सल चौपट होने की हवा बनाई गई थी। बात-बात में केन्द्र सरकार पर तोहमत जड़ने के आदी शिवराजसिंह किसानों को भरपूर मुआवज़ा देने की माँग को लेकर अपने संवैधानिक दायित्वों को बलाये ताक रखकर आमरण अनशन पर आमादा थे।
मंडियों और खरीदी केन्द्रों पर इतना गेंहूँ पहुँच रहा है कि जानकारों को शंका होने लगी है कि मध्यप्रदेश में पाला पड़ा भी था या नहीं ? और पाला अगर पड़ा था तो क्या उसने फ़सलों के लिये “टॉनिक” का काम किया ? सरकारी आँकड़ों पर यकीन करें तो मध्यप्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर इस साल गेंहूँ खरीद का नया रिकॉर्ड बना है। राज्य में गेंहूँ की सरकारी खरीदी का पिछला रिकॉर्ड ध्वस्त हो चुका है। मंडियों में इस मौसम का कुल गेंहूँ खरीद आँकड़ा 36 लाख 39 हजार मीट्रिक टन जा पहुँचा है। इससे पहले प्रदेश में गेंहूँ की सबसे ज्यादा खरीद पिछले साल ही 35 लाख 37 हजार टन रही थी। खास बात यह है कि खरीदी का सिलसिला 31 मई तक चलना है । लिहाजा आँकड़ा 45 लाख मीट्रिक टन तक पहुँचने का अनुमान है।
महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि बढ़ी खरीद के सुरक्षित भंडारण के लिये प्रदेश में पहली बार अब तक कोई 100 रेल्वे रेक्स का इस्तेमाल किया जा चुका है। समर्थन मूल्य पर गेंहूँ खरीदी की पूरी कार्रवाई को अंजाम दे रही नोडल एजेंसी राज्य नागरिक आपूर्ति निगम अब तक 26 लाख 50 हजार टन और एक अन्य प्रमुख एजेंसी राज्य सहकारी विपणन संघ 9 लाख 89 हजार टन गेंहूँ खरीद चुकी है। गौर तलब है कि समर्थन मूल्य पर गेंहूँ की सरकारी खरीदी में मध्यप्रदेश का नंबर पंजाब, हरियाणा के बाद तीसरे स्थान पर है। किसान को समर्थन मूल्य पर 150 रूपए प्रति क्विंटल बोनस दिया जा रहा है। ऐसा करने वाला वह एकमात्र राज्य है। सीधे किसानों के खाते में राशि जमा करवाने वाला भी यह इकलौता राज्य है। अभी तक 3500 करोड़ रूपए सीधे खातों में जमा कराये जा चुके हैं।
जादूगरी देखते हुए अक्सर यह भ्रम हो जाता है कि जो कुछ दिखाया जा रहा है, वही सच है । दर्शक आश्चर्य चकित रह जाता है कि क्या ऐसा भी हो सकता है? लेकिन अपनी लफ़्फ़ाज़ी से आम जनता को पिछले पाँच सालों से मूर्ख बनाते चले आ रहे शिवराज भी राजनीति में हाथ की सफ़ाई के हुनरमंद बाज़ीगर साबित हुए हैं। यक़ीन नहीं आता तो मध्यप्रदेश सरकार के उस दावे को देख लीजिए जिसमें कहा गया था कि प्रदेश में पाला और शीतलहर के प्रकोप से फसलों को खासा नुकसान हुआ है और इसलिए केंद्र सरकार को राहत जल्द से जल्द देना चाहिए। इस प्रकार राज्य सरकार ने बर्बाद फसल की जो तस्वीर दिखाई थी, उससे लग रहा था कि आने वाला समय किसानों के लिए बेहद मुश्किल गुज़रने वाला है, लेकिन आज जब हम बम्पर उत्पादन के आंकड़े देख रहे हैं तो तस्वीर पूरी तरह बदली हुई नज़र आ रही है। इस पर भी यदि राजनीतिज्ञ से बयान देने को कहेंगे तो वह यही कहेगा कि वो उस समय का सच था और यह आज का सच है। कुल मिलाकर हकीकत की रोशनी में अब यह स्पष्ट हो गया है यह दबाव की राजनीति का ही एक हिस्सा था ।
कहावत है “नाई-नाई बाल कितने,जजमान सामने आयेंगे।” इसी तरह मंडियों में गेंहूँ की ज़बरदस्त आवक ने “सरकारी पाले” की पोल-खोल कर दी है। मगर असल और सफ़ल राजनीतिज्ञ वही है, जो हर मुद्दे के अच्छे-बुरे पहलू को अपने पक्ष में कर उसे भुनाने का माद्दा रखता हो । लिहाज़ा सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन यह तो मान रहे हैं कि मध्यप्रदेश में इस बार पाला पड़ने के बावजूद गेंहूँ की बंपर फसल हुई है। लेकिन इस रिकॉर्ड तोड़ उपज के पीछे उनके अपने तर्क हैं। वे बताते हैं कि एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक मप्र में प्रति हैक्टेयर पैदावार बढ़ गई है। होशंगाबाद और हरदा जिलों ने तो इस बार पंजाब और हरियाणा को मात दे दी है। इन जिलों में गेंहूँ की पैदावार प्रति हैक्टेयर 60 क्विंटल हुई है। उनका ये तर्क भी काबिले गौर है कि कई स्थानों पर पाले और तुषार ने गेंहूँ को जबरदस्त फायदा पहुँचाया है। पाले से अरहर, मसूर, गन्ना को नुकसान हुआ है। सवाल घूम फ़िर कर वही कि जब बम्पर उत्पादन हुआ है तो पाले से हुए नुकसान का मुआवज़ा बेमानी था ।
सरकारी रेवड़ियाँ पाकर “जी हुज़ूरी” में लगे मीडिया घरानों की मदद से पाले के प्रचंड प्रकोप की कहानी बनाई गई और ज़ोर-शोर से फ़ैलाई गई । खबर थी कि शीतलहर और पाले की चपेट में आकर प्रदेश के 17 जिलों की फसलें नष्ट हो गई । प्रदेश में ज़्यादातर नेता, व्यापारी और नौकरशाह खेती की ज़मीन के बड़े-बड़े रकबे के मालिक हैं। इसलिये मुआवज़े के लिये खूब हाय तौबा मची ।
कहते हैं कि झूठ को सौ बार दोहराया जाये तो वो सच लगने लगता है । इसलिये मीडिया के कँधे पर सवार होकर झूठ की राजनीति करने वाले शिवराज ने भारी भरकम मुआवज़ा राशि देने की माँग कर केन्द्र सरकार पर दबाव बनाया । हमेशा की तरह एक बार फ़िर झूठ और दबाव की राजनीति काम कर गई और केन्द्र ने 425 करोड़ रुपये मुहैया करा दिये । हालाँकि 2,442 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की माँग कर रहे शिवराज सिंह चौहान ने इस धनराशि को नाकाफ़ी बताकर केन्द्र को जी भर कर कोसा और फसलों का नुकसान झेलने वाले किसानों के हक में आंदोलन की पेशकश तक कर डाली । प्रदेश सरकार ने दावा किया कि पाले की वजह से 5 जिलों में गेंहूँ, सरसों और चने की फसलों को तगड़ी क्षति पहुँची और 35 लाख हैक्टेयर रकबे की फसल बर्बाद हो गई। प्रदेश सरकार के मुताबिक फसलों का जबरदस्त नुकसान होने की वजह से किसान खुदकुशी पर मजबूर हैं।
पाला और तुषार से सर्वाधिक प्रभावित 17 जिलों में कृषि रकबा कम होने के बावजूद अफसरशाही का कमाल देखिए, सबसे ज्यादा मुआवजा भोपाल में ही बाँट दिया गया। राजधानी में पाला पीड़ित किसानों की सूची में नेता और नौकरशाहों के भी नाम शामिल हैं। हैरत की बात यह है कि जिन लोगों को मुआवजा बाँटा गया , उनमें आईएएस, पूर्व प्रशासनिक अफसर, विधायक सहित कई नेता और पुलिस अफसर भी शामिल हैं। खेती-बाड़ी के शौकीन नेताओं और आला अफसरों का ही प्रभाव है कि भोपाल में 31 करोड़ रुपए से ज़्यादा का मुआवज़ा बाँट कर प्रशासन ने प्रदेश में नया रिकॉर्ड बना डाला।
राजधानी के 15 हाईप्रोफाइल किसानों को जिला प्रशासन ने लाखों रुपए बाँट दिए। एक किसान को अधिकतम 40 हजार रुपए देने के सरकारी प्रावधान को धता बताते हुए इन हाई प्रोफाइल किसानों में कई गुना ज्यादा धनराशि बाँट दी गई। जबकि असली किसान हज़ार-पाँच सौ के चैक लेकर उन्हें भुनाने के लिये अब तक भटक रहे हैं। रसूखदार किसानों में पूर्व मुख्य सचिव राकेश साहनी, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक सुखराज सिंह, पुलिस महानिरीक्षक संजय राणा, प्रमुख सचिव पुखराज मारू, नूतन कॉलेज की प्राचार्य शोभना बाजपेयी मारू, विधायक जितेंद्र डागा, पूर्व आईपीएस शकील रजा, सीपीए के अधीक्षण यंत्री जवाहर सिंह की पत्नी अनुपमा सिंह शामिल है। इन सभी की जमीनें बिशनखेड़ी, प्रेमपुरा, रातीबड़ सहित आसपास के क्षेत्रों में है। विधायक जितेंद्र डागा को दो अलग-अलग रकबे 0.405 और 0.718 हेक्टेयर जमीन पर लगी फसल का 95 हजार 29 रुपए, पूर्व पुलिस महानिदेशक शकील रजा को 121.673 हैक्टेयर जमीन पर लगी फसल का 8 लाख 71 हजार 770 रुपए का चेक बना । मुआवज़ा राशि में फ़र्ज़ीवाड़े के किस्से कमोबेश पूरे सूबे में हैं ।
कागज़ की नाव पर सवार होकर रेत में चप्पू चलाने में माहिर शिवराज सिंह चौहान सूबे के मुखिया के तौर पर मध्यप्रदेश के माथे पर दुर्भाग्य की गहरी लकीरें खींचने के सिवाय कुछ नहीं कर रहे हैं। ये सच है कि शिवराज के झूठ इन दिनों “भारी कीमती” दिखाई दे रहे हैं, लेकिन इनके दूरगामी नतीजे बेहद नुकसान देने वाले हैं। इसे बदकिस्मती ही कहा जाएगा कि प्रदेश का मुखिया अपने मातहतों को नुकसान बढ़ाचढ़ाकर पेश करने की हिदायत दे। जबकि होना तो यह चाहिए कि हालात को समझकर समस्या का समाधान खोजा जाए। यह न हो कि अपनी ख़ामियों और कमज़ोरियों को छिपाने के लिए बेवजह मुद्दे बनाए जाएं और सभी को भ्रमित किया जाए। अतीत की आवाज़ को समझने वाले जानते हैं कि भाट-चारण विरुदावली तो गा सकते हैं, मगर इतिहास की निर्मम कलम किसी भी किरदार को बख्शती नहीं।
सुश्री सरिता जी ने सही कहा है की इस बार फसले बहुत लहलहा रही है. बम्पर आवक हुई है, रिकॉर्ड बने है. किन्तु इसमें कोई शक नहीं की पला नहीं पड़ा था.
* पिछले कई सालो में इस साल ठण्ड बहुत देर से आई लगभग आखरी नवम्वर के महीने में ठण्ड पड़ना चालू हुई.
* कई सालो बाद बहुत दिनों बाद ठण्ड गई. लगभग मार्च महीने तक ठण्ड का प्रभाव रहा है. पचमढ़ी में इस बार रिकॉर्ड ठण्ड पड़ी, रिकॉर्ड पला पड़ा.
* KVS ने भी जनवरी के महीने में १२-१५ दिन छुट्टी दी गई (५ से १५ जनवरी तक).
* कई सालो के बाद आमो में बौर इस बार मार्च के आखरी में आई जबकि कई बार जनवरी की शुरुआत में बौर आज जाती है.
* फरवरी-मार्च में इस बार लगभग बरसात नहीं हुई, भले ही बादल छाय रहे.
हो सकता है ये कारन रहे हो की ज्यादा ठण्ड और बे मौसम वर्षा-ओले नहीं गिरने से फसलो को फायदा हुआ हो.