हवा का रूख पहचान नहीं पा रहे नीतीश

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सत्ता के लिए कुछ भी करेंगे सुशासन बाबू

रंजीत रंजन सिंह

imagesपिछले लोकसभा चुनाव के दौरान जदयू के एक नेता से पत्रकारों से बातचीत हो रही थी। वे उस समय लोजपा से जदयू में शामिल हुए ही थे। लोजपा में वे किसान प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष थे। पत्रकारों ने उनसे जानना चाहा कि वे जदयू में क्यों आ गए, तो उनका जवाब था कि जनता ने जो आंधी चलाई है उसकी दिशा में चलना मजबूरी है, उन्यथा उड़ जाएंगे। यह वाक्या इस समय इसिलिए प्रासंगिक है क्यूंकि 2009 के चुनाव में बिहार का माहौल नीतीशमय था। जनता उनके कामों का मजदूरी चुकानेवाली थी। जिसका परिणाम आप देख सकते हैं। यह बात एक ऐसे नेता को समझ में आ रही थी जिनसे एक विधानसभा सीट भी नहीं निकलती। लेकिन यह बात सुशासन बाबु नीतीश कुमार को समझ में नहीं आ रही है।

मंगलवार को राजगीर में जदयू के कार्यकर्ता शिविर में तक्षशिला विश्वविद्यालय के संदर्भ में हुंकार रैली में नरेन्द्र मोदी द्वारा दिए वक्तव्य पर नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी को झूठा साबित करने की कोशिश तो की लेकिन खुफिया जानकारी के बावजूद सुरक्षा में लापरवाही क्यूं बरती गई, इस पर कोई संतोषजनक बयान नहीं दिया, हां राजनीतिक लीपापोती खुब हुई। इसी शिविर में शिवानंद तिवारी ने नीतीश कुमार की जमकर खबर ली और नरेन्द्र मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़े। शायद शिवानंद तिवारी दीवार पर की लिखावट को पढ़ रहे हों लेकिन नीतीश कुमार इसे न पढ़कर या तो बेवकुफी कर रहे हैं या फिर वे पढ़ना ही नहीं चाहते। वे तो तब भी जनभावना को समझ नहीं सके थे जब उन्होंने भाजपा से गठबंधन तोड़ा था। आज भी आप उस जनता से पुछिए, जो 2005, 2009 और 2010 में जदयू का वोटर रही है, कि क्या वे चाहती थी कि राजग गठबंधन टूटे? आपको मास जवाब मिलेगा- नहीं! बिहार की जनता नहीं चाहती थी कि भाजपा और जदयू अलग हो। लेकिन नीतीश ने ऐसा किया। मगर आश्चर्यजनक रूप से खुद इस्तीफा देकर फिर से शपथ लेने के बजाय उन्होंने भाजपा कोटे के मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया। अगर नीतीश लोकतंत्र के बड़े पुजारी है तो चुनाव में जाने की बात छोडि़ए कम से कम इस्तीफा देकर फिर से सरकार बनाने का दावा पेश करने का हिम्मत तो जुटाते। अपनी पार्टी को टूटने के डर से वे मंत्रिमंडल का विस्तार करने का भी हिम्मत नहीं जुटा पाए। यह घटना साबित करती है कि भाजपा से अलग होने का उनका मतलब नरेन्द्र मोदी का विरोध नहीं सिर्फ सत्ता पर कब्जा जमाए रखना है। वो चाहे जैसे भी हो। और उसी सत्ता के लिए ही नरेन्द्र मोदी का विरोध भी हो रहा है ताकि मोदी विरोध के नाम पर मुसलमानों का वोट जदयू के खाते में आ जाए और बगैर अगड़ी जातियों के वोट के भी पिछड़ी जातियों और महादलितों के मदद से बिहार की गद्दी पर बैठे रहें। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग भी उसी रणनीति की एक कड़ी है। पहले 5 साल के अच्छे कामों का पुरस्कार तो जनता 2009 के लोकसभा और 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में दे चुकी है। 2014 के लोकसभा चुनाव और 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में लेकर जाने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री के पास कुछ भी नहीं है। ऐसे में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा के नाम पर बिहारी भावना को जगाकर वो वोटों का सौदा करना चाहते हैं। विशेष राज्य के दर्जा के नाम पर वे बिहारी युवाओं को सपने बेच रहे हैं और उसके बदले वोट चाहते हैं। लेकिन युवा पीढ़ी नीतीश कुमार की तरह नादान नहीं है जो दीवार पर की लिखावट को पढ़ नहीं सकती। युवा पीढ़ी सुशासन बाबु की हर एक कारगुजारियों को भली-भांती समझ रही है और जदयू से यह सवाल भी करना चाहती है कि जदयू बताए उन सपनों का क्या हुआ जो 2005 के पहले दिखाया गया था? पिछले 9 साल में बिहार में बंद पड़ी कितनी चीनी मीलें चालू हुईं? उद्योग-धंधे के नाम पर एक चॉकलेट की फैक्ट्री भी खुली हो तो बताएं। इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर सड़क बनाने के अलावा और क्या-क्या हुआ है? सुशासन और कानुन व्यवस्था के नाम पर गुंडागर्दी में तो कमी आई है लेकिन अफसरशाही, घुसखोरी और भ्रष्टाचार पर जवाब कौन देगा? पूरे राज्य में एक थाना का नाम कोई बता सकता है जहां बिना 500-1000 रूपए दिए प्राथमिकी दर्ज होता हो! नीतीश कुमार के भाषण और अखबार के पन्नों में तो विकास और सुशासन दिखता है लेकिन सच्चाई इनसे इतर है। लोगों को अब समझ में आ रहा है कि विकास के नाम पर वोट लेने वाले नीतीश का मतलब सिर्फ सत्ता से है। सत्ता के लिए उनका विचारधारा बदल जाता है। सत्ता के लिए उनकी पार्टी वर्षों भाजपा के साथ हमबिस्तर रही, अब भाजपा सांप्रदायिक हो गई। सत्ता के लिए कांग्रेस कभी लोकतंत्र का हत्यारा थी, अब उन्हें धर्मनिरपेक्ष नजर आती है। यानी सत्ता के लिए कुछ भी करेंगे नीतीश! हुंकार रैली में भारी भीड़ नीतीश कुमार के लिए एक बड़ा संदेश लेकर आई है। पूरे देश में हवा की रूख बदल चुकी है उसी का एक उदाहरण हुंकार रैली भी था, लेकिन श्री कुमार इसे भी भापने में असफल रहे हैं।

9 COMMENTS

  1. नितीश को घमंड ने घेर लिया है ।लेख उत्तम और समसामयिक है ।राष्ट्रधर्म से शून्य नितिश के लिए अच्छी शिक्षा दी गयी है ।लेखक के लिए हार्दिक धन्यवाद।

  2. मैंने जदयू की अधिकार रैली और नमो कि हुंकार रैली दोनों देखी हैं | नितीश कि रैली में पूरा रोड पुलिस से पटा हुआ था…जबकि उन्हें आतंकी से कोई खतरा नहीं था फिर भी …….जबकि नमो कि रैली में जानते हुए भी की वे आतंकी के लिस्ट में सबसे ऊपर हैं,उन्हें जेड+ कि सुरक्षा थी फिर भी नीतीश कुमार ने जदयू कि रैली से इसमें आधा सुरक्षा भी नहीं उपलबध कराया था …….

  3. मंगलवार को राजगीर में जदयू के कार्यकर्ता शिविर में तक्षशिला विश्वविद्यालय के संदर्भ में हुंकार रैली में नरेन्द्र मोदी द्वारा दिए वक्तव्य पर नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी को झूठा साबित करने की कोशिश तो की परन्तु क्या गुप्त सामराज्य की यादें मगध में चन्द्रगुप्त से नहीं होती है ाआखिर हमें किसी आम आदमी के मरने पर क्यूँ दर्द नहीं होता, आखिर कब तक हम अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु लोगों की जिन्दगी के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे। आखिर क्यूँ देश के बड़े बड़े धनवान लोग अपने पैसे के बलबूते पर नेताओ और अफसरों को खरीद कर अपने आर्थिक लाभ हेतु लोगों की जान माल से खिलवाड़ करते रहेंगे। हम क्यूँ इतने असंवेदनशील हो गए। आखिर हम क्यों इतने पत्थर दिल हो गए है। भूख-प्यास से तड़फते, जिन्दगी और मौत से लड़ते बच्चे, बूढ़े, जवान महिलाएं, उनके आंसुओ का सैलाब आखिर हमारे दिलों को क्यूँ नहीं झिंझोड़ पाता। क्या हमारा परिवार ही हमारे लिए महतवपूर्ण हैं। कहाँ गयी वासुदेव कुटुम्बकम की भावना।

  4. Nitish kumar is opportunist and greedy, has no moaraltiy he put hundreds of thousands of peoples life in danger on 27 nov. rally of Narendra Modi.
    Many people died in bomb blast and nearly one hundred were injured lying in hospital. Thank God there was no stampede otherwise hundreds of thousands of people would have died because of negligence of Nitish’s arrogance and negligence.
    I will never vote JDU in future local, state and general elections .
    Nitish has brought shame to Bihar and democrasy.

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