अलग और अनूठा रहा हजारे आन्दोलन

शादाब जफर ”शादाब”

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग साथ आते गये और कॉरवा बनता गया। इन पंक्तियो को मशहूर गॉधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे ने भ्रष्टचार के खिलाफ जन लोकपाल बिल को पास कराने को लेकर सरकार की नीतियो के खिलाफ मंगलवार 5 अप्रैल 2011 को जंतर मंतर पर अपने आमरण अनषन के द्वारा सच कर के दिखा दिया। गली गली मोहल्ले मोहल्ले चौहराहों पर लोग अन्ना हजारे के सर्मथन में बैठे है। इन में से अधिकतर लोगो को ये भी नही पता कि आखिर ये जन लोकपाल बिल क्या है अन्ना हजारे कौन है और इन की क्या मांगे है। पर एक बात सभी लोग अच्छी प्रकार से जानते थे वो ये कि ये लडाई देश में कोढ की तरह फैल चुके भ्रष्टाचार के खिलाफ है। नि:संदेह काफी समय बाद ऐसा साफ सुथरा जन आन्दोलन देखने को मिला है। वरना देष में काफी दिनो से मारकाट तोड़फोड़ हिंसावादी आन्दोलन ही देखे जाते रहे है। शिव सेना, एमएनएस, गुर्जर या जाटों का आन्दोलन बस तोड़फोड़, राष्ट्रीय सम्पत्ति और देश के आम नागरिकों को नुकसान पहुंचाने के लावा इन आन्दोलनों और पार्टियों के नेताओं का दूसरा कोई मकसद नहीं लगा। अन्ना हजारे द्वारा किया आन्दोलन जिससे पूरे देश की जनता जुडी और षान्तिपूर्वक तरीके से अपना रोष सड़कों पर निकल कर प्रकट किया। सिर्फ पॉच दिन के इस आन्दोलन में आज देश का कोई छोटा बडा जिला ऐसा नहीं जहॉ देश में फैले भ्रष्टचार के खिलाफ और अन्ना के सर्मथन में लोग सडकों पर न आये हो। लगभग सात करोड लोगो के एसएमएस अमिताभ बच्चन, आमिर खान, सोनिया गांधी, सचिन तेंदुलकर, अनुपम खेर, देश के साहित्यकारों, बुद्विजीवियों, युवाओं, बुर्जुगों, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, चेन्नई, चण्डीगढ, और असम के लाखों सर्मथक अन्ना के अनशन के पहले दिन से आखिर तक धरना स्थल पर जमे रहे। दरअसल इस आन्दोलन के कामयाब होने की सब से बडी वजह ये रही है के यह आन्दोलन पूर्ण रूप से आम आदमी का आन्दोलन रहा। अन्ना, स्वामी अग्निवेष और अरविंद के जरीवाल ने इसे राजनीति और राजनेताओ से दूर रखा।

आजकल की राजनीति और राजनेताओं से दूरी रखकर सादगी से जीवन जीने वाले अन्ना हजारे का जन्म 15 जून 1938 को महाराष्ट्र में अहमदनगर जिले के रोलेगन सिद्वी गॉव में एक कृषक परिवार में हुआ था। भारत चीन युद्व के बाद जब भारत सरकार ने देश के युवाओ से सेना में शामिल होने की अपील की तब महज 22, 23 साल की उम्र में अन्ना हजारे फौज में 1963 में षामिल हुए और वीर अब्दुल हमीद के साथ भारत पाकिस्तान युद्व में खेमकरन सेक्टर में तैनात रहे। भारत पाकिस्तान युद्व के दौरान युद्व में दुष्मन के विमानो की बमबारी का मुकाबला करने वाले सेना की जीप चलाने वाले अन्ना सेना में पन्द्रह साल अपनी सेवा देकर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद अपने गांव लौट आये और अविवाहित रहने का फैसला किया। अन्ना हजारे यू तो किसी औपचारिक परिचय के मोहताज नही है राष्ट्रपिता महात्मा गॉधी के बाद हमारे देश में ऐसे बहुत ही कम लोग है जिन का पूरा का पूरा जीवन बेहद सादगी के साथ जनता के हितों पर कुर्बान होकर देष को समर्पित हो जाता है। भ्रष्टाचार के कारण आज देष में त्राही-त्राही मची है। आईपीएल घोटाला, राष्ट्रमंडल खेलो में घोटाला, मुंबई के आदर्ष आवास सोसायटी घोटाला, टु-जी स्पेक्ट्रस आवंटन घोटाला सतर्कता अधिष्टान में पुस्तक घोटाला, विशिष्ट बीटीसी घोटाला, उप्र निर्यात निगम घोटाला, पुलिस भर्ती घोटाला, खाद्यान्न घोटाला, मीड डे मील घोटाला, जेल में बंदीरक्षक सीधी भर्ती घोटाला, यूपीएस आईडीसी में सस्ती दरो पर जमीन देने का घोटाला, सीवीसी थॉमस की नियुक्ति, ”नोट के बदले वोट” का जिन्न विकिलीक्स के खुलासे सहित आज भ्रष्टाचार देष के हर क्षेत्र में अपनी गहरी जडे जमा चुका है।

इस पूरे भ्रष्टतंत्र में आज अन्ना हजारे का भारत देश को सोने की चिडिया वाला देश बनाने का ख्वाब देखना बुरा नही। भ्रष्टाचार में जकडे भारत के लिये एक बहुत ही अच्छी पहल है। और उससे भी अच्छा है इस आन्दोलन को जन सर्मथन मिलना वो भी ऐसे समय में जब देश में चारो ओर घोटाले ही घोटाले सामने आ रहे हो। ये जन लोकपाल बिल यकीनन ऐसे तमाम भ्रष्ट राजनेताओ के लिये मौत बन कर सामने आयेगा जो जुर्म करने के बाद भी संसद भवन में बैठ कर मजा करते है। सवाल ये उठता है की यदि अन्ना हजारे यह चाह रहे है कि लोकपाल विधेयक के लिये एक नया मसैदा तैयार हो और उसे तैयार करने में उस में जनता की भागीदारी भी हो तो इस में क्या बुरा है। मौजूदा सरकार देश के सामने ऐसा क्यो प्रदर्शित कर रही है कि ऐसा करने से देश में कोई भूचाल आ जायेगा और सारे भ्रष्ट राजनेता एकदम जेल चले जायेगे। सरकार को ये समझना चाहिये कि ये मॉग सिर्फ और इस लिये कि जा रही है कि आज देष में फैले भ्रष्टचार ने हम देषवासियो में अमीरी और गरीबी की एक बहुत ही गहरी खाई पैदा कर दी है। देष तरक्की तो कर रहा है पर वो तरक्की दिखाई नही दे रही। आजादी से आज तक देष में भ्रष्टचार और भ्रष्ट राजनेताओ के खिलाफ कितनी कार्यवाही हुई है हमने देखा है। पूर्व संचार मंत्री सुखराम के अलावा देश की जॉच एजेंसिया किसी भी राजनेता को सजा के कटघरे तक नही पहुंचा सकी। बोफोर्स दलाली के सभी आरोपियो के खिलाफ बिना सजा व जॉच के केस बन्द कर दिये गये, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव व राबडी देवी के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ती का मामला निचली अदालत तक पहुंच कर हीं दम तोड़ गया, हवाला कांड में सीबीआई द्वारा मेहनत से जुटाये सारे सुबूतो को सुप्रीम कोर्ट ने मानने से इन्कार कर दिया, बिहार चारा घोटाले में आरोपी लालू यादव व जगन्नाथ मिश्र को आज 14 साल बाद भी ऑच तक नही, मायावती व मुलायम सिंह के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ती मामला आज भी अधर में है, विधायको की खरीद फरोख्त मामले में काग्रेस के लीडर और छत्तीसगढ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खिलाफ सात साल बाद भी कोई चार्जषीट नही दाखिल हो पाई। ये कुछ ऐसे भ्रष्टाचार के मामले है जिन से सीधा या कहीं न कहीं कांग्रेस का रिष्ता जरूर है। कांग्रेस ने सत्ता सुख पाने की खातिर देश को पूरी तरह बरबाद कर दिया और जो भी तरक्की हमे आज कागजों पर बताई या दिखाई जा रही है वो पूरी तरह से फर्जी है कंाग्रेस का सत्ता में बने रहने के लिये छद्म आवरण है। देश में मंहगाई आसमान छूने को तैयार है लोग दिन भर खून पसीना बहाने के बाद भी अपने बच्चों को पेट भर रोटी भी नही दे पा रहे है।

अन्ना हजारे द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू की गई ये लड़ाई धीरे धीरे परवान जरूर चढ पर इस आन्दोलन ने सरकार की नींद हराम कर के रख दी। पूरा राष्ट्र भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सूत्र में बंध गया। अन्ना हजारे के इस आमरण अनषन से ज्यादा सरकार इस बात से भयभीत रही की भ्रष्टाचार के मुद्दे पर यदि लोगो में गुस्सा और बढ गया तो देष को मिस्र बनने में चन्द मिनट ही लगेगे। इस आन्दोलन के द्वारा आज एक या दो लोगो का अन्ना को सर्मथन नही मिला बल्कि हर रोज करोडो लोगो के कदम खुद व खुद जंतर मंतर की ओर उठ पडे। जो जहॉ था वही से अन्ना को सर्मथन दे रहा था। पिछले चालीस सालों से भ्रष्ट राजनेताओं के कारण जो लोकपाल विधेयक कानून का रूप नही ले पाया सिर्फ पॉच दिन में ही सरकार और देष के तमाम राजनीतिक दल लोकपाल व्यवस्था बनाने के लिये तैयार हो गये। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने 2004 में यूपीए 1 में केन्द्र की सत्ता सभालते समय लोकपाल व्यवस्था बनाने का वायदा किया था, लेकिन उनकी सरकार का पूरा एक कार्यकाल गुजर गया पर उन्हे अपने वादे और लोकपाल विधेयक की याद नही आई। दूसरे कार्यकाल में लोकपाल विधेयक तब सतह पर आया जब घपलों-घाटालों के कारण सरकार को चेहरा छुपाना मुष्किल हो गया। अन्ना हजारे के इस जन आन्दोलन को भरपूर सर्मथन मिला। अन्ना हजारे की इस चिंगारी को अब षोला बनाने की जिम्मेदारी हमारी है। एक अकेले शख्स ने सिर्फ पॉच दिन में भष्टाचारियों की नींदे उडा दी। अब ये देखना है कि एक सौ इक्कीस करोड लोगों ने अन्ना के आमरण अनशन और आचरण से कुछ सबक भी लिया है या नही। आज देष में फैले भ्रष्टाचार के लिये सिर्फ सरकार, प्रधानमंत्री या देश के राजनेता ही जिम्मेदार नहीं काफी हद तक देश के वो नागरिक भी जिम्मेदार है जो अपना काम निकालने के लिये खुद भष्टाचार का रास्ता चुनते है। और भ्रष्टाचार देखकर ऑख मूंदने वाली दृष्टि रखते है।

 

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