आज के दौर का सबसे ताकतवर प्राणी-दलाल है। सतयुग के जंगलों में जो शौर्य कभी डायनासौर का हुआ करता था कलयुग के सभ्य समाज में वही जलवा दलाल का है। इस प्रजाति के जीव की आज यत्र-तत्र-सर्वत्र पूजा होती है। यह किसी पद पर नहीं होता मगर नाना प्रकार के पद इसके पद में साष्टांग दंडवत करते हैं। जायज-नाजायज सभी प्रकार के काम यह चुटकियों में करा देने का हुनर रखता है। इसीलिए तो दलाल की धर्मनिरपेक्ष पूजा होती है। सभी मजहबों के अनुयायी इसकी दिव्य सत्ता को स्वीकारते हैं। और अपनी कामना की पूर्ति के लिए इसे भेंट-पूजा चढाकर प्रसन्न करते हैं। दलाल की पूजा तो होती ही है। इसमें नई बात क्या है। मगर अब पूजा में भी दलाल सक्रिय हो गए हैं। ये हुई नई बात। और इनके मजबूत जाल में पूजाकांक्षी भक्त धड़ल्ले से रोज़ फंस रहे हैं। बड़ा ही मजबूत तंत्र है इनका। एक डिपार्टमेंट पहले नर-नारियों को आनेवाले बुरे समय की काली छाया दिखाकर डराने का प्रीतिकर कार्य करता है। क्योंकि शास्त्रों में ऐसा ही लिखा है-भय बिन प्रीति न होत। घर की बरबादी, धंधे में तबाही, मुहब्बत में बेबफाई, दफ्तर में बॉस से हाथापाई मौत से आशनाई और ज़िदगी से गुडबाई ऐसे तमाम हाहाकारी दृश्यों को ये एजेंट धर्मभीरु भक्तों को दिखाते हैं। और इनसे छुटकारा पाने के लिए इतनी कर्री पूजा बताते हैं कि भक्त के प्राण भरी बरसात में भी सूख जाते हैं। बगुलामुखी की तंत्र साधना,कालसर्पयोग का शमन और महामृत्युंजय का पाठ। सात दिन का हवन और एक करोड़ मंत्र का अखंड पाठ। बाप रे बाप। क्या करेंगे आप। समाधान के लिए दलाल आपकी सेवा में हाजिर हैं। सात दिन का पूरा पैकेज भक्त की अक्ल और जेब के मुताबिक तैयार है। भक्त को कुछ नहीं करना है। उसकी फूटी किस्मत की रिपेयरिंग रूठे हुए ग्रहों और भगवान को मनाकर सब कुछ ये किराए के साधक कर देंगे। मार्केट में किसम-किसम के ये दिहाड़ी भक्त अफरात में भरे पड़े हैं। बस शिकार को डील के मुताबिक 25 हजार से सवा लाख रुपयों का बस भुगतान करना है और निश्चित होकर लंबी चादर तानकर सो जाना है। मंहगी कारों के दौर में यदि कोई घोड़े रखता हो तो ऐसा ग्राहक घोड़े बेचकर भी सो सकता है। उसके बिहाफ पर ग्रहों को सेट-अपसेट करने का काम ये बिचौलिए साधक कर देंगे। जब कलयुग के नेताओं और अफसरों को ये सेट कर लेते हैं तो फिर सतयुगी देवी-देवताओं और ग्रहों को लाइन पर लाना इनके लिए कौन-सी बड़ी बात है। भक्तों को भी भगवान से ज्यादा इन दलालों पर ही भरोसा होता है। श्रद्धा तो बेचारी रहती ही इस भरोसे के फ्लैट में है। पेइंग गैस्ट बनकर। या फिर वो लिव-इन रिलेशनशिप के जरिए वक्त गुजारती है,भरोसे के साथ। भक्त को भी फुर्सत कहां है,पूजा-पाठ करने की। वो पूजा-पाठ में टाइम खोटी करेगा तो दक्षिणा का इंतजाम कौन करेगा। भगवान का तो गणित वैसे ही कमजोर होता है। उसे तो एक पैसा दे दो तो वो दस लाख दे देता है। मगर साहब आजकल दस लाख कमाना आसान है। तांबे के एक छेददार सिक्के के मुकाबले। तो फिर एक पैसा कमाने की मशक्कत कौन घौंचू करेगा। इसलिए चंट और समझदार भक्त भी टेंडर मंगाकर पूजा को ठेके पर उठा देता है। और सुपुर्द कर देता है सारे देवी-देवताओं को इन दलालों के हाथ में। भक्त इन पेशेवर पुजारियों की आउट सोर्सिंग सेवाएं लेकर फिर मस्ती से झकास और बिंदास ज़िंदगी जीते हैं। खाली-पीली में खल्लास और उदास नहीं होते। प्रसाद लोलुप भगवानों को ये दलालानंद साधक ही आसानी से साध सकते हैं। भगवान और भक्त के बीच दलाल खड़ा है। इसलिए सच्ची-मुच्ची में तो वो भगवान से भी बड़ा है।