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वह समझता मुझको रहा ! - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
वह समझता मुझको रहा, मैं झाँकता उसको रहा; वह नहीं कुछ है कह रहा, मैं बोलता उससे रहा ! अद्भुत छवि आलोक रवि, अन्दर समेटे वह हुआ; नयनों से लख वह सब रहा, स्मित वदन बस कह रहा ! हाथों पुलक पद प्रसारण, भौंहों से करता निवारण; भृकुटी पलट ग्रीवा…