यहाँ विदेश मंत्री खुर्शीद ने झुक कर दी मुर्ग रोगन जोश की दावत

वहां पाकी प्र.म. परवेज ने फिर की भारतीय संसद की अदावत

 पिछले दिनों भारत और पाकिस्तान दोनों देशों ने अपना निश्चित चरित्रगत और आचरण बद्ध काम किया. इस दोनों राष्ट्रों ने जो किया उससे आबाल वृद्ध किसी को भी आश्चर्य या हैरानी नहीं होनी चाहिये. इन में से पाकिस्तान ने जो किया वह है अफजल की फांसी पर पाकिस्तानी संसद ने निंदा प्रस्ताव पारित करनें का काम सो यह तो पाकिस्तान के मूpakistani pmल विध्वंसी चरित्र और चिरस्थायी विघ्न संतोषी स्वभाव का परिणाम है. और जो काम भारत ने किया है वह है पाकिस्तानी संसद द्वारा अफजल की के निंदा प्रस्ताव के विरोध का प्रस्ताव तो यह भी भारत के धेर्य भरें और धीर गंभीर आचरण करते रहनें की कुटेव का परिणाम है. भारत की संसद में पारित प्रस्ताव के सन्दर्भों को यथार्थ धरातल पर देखा जाए तो भारत का व्यवहार न तो परिस्थिति जन्य रहा है और न ही वैसा जैसा कि एक सार्वभौमिक राष्ट्र को रखना चाहिये. दोनों देशों ने अपनें स्वभाव के अनुरूप कार्य करके छोड़ दिया। पाकिस्तानी नाग ने डसा और भारत ने जहर को उतारा भी नहीं और नीलकंठ हो गया. यक्ष प्रश्न यह है कि आज भारतीय जनमानस नीलकंठ होनें की मानसिकता में है या श्रीराम होनें के मूड में; इस बात कि चिंता कौन कर रहा है? स्वतंत्रता के बाद से आज तक पाकिस्तान से हमारा व्यवहार तदर्थ नीतियों क्रियान्वयन और तात्कालिक घटनाओं का अल्पकालिक जवाब भर रहा है. कहना न होगा कि विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला हमारा विश्व का सर्वाधिक पुराना और सर्वाधिक बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र का नेतृत्व पाकिस्तान के विषय में कभी भी लोक आशाओं को न समझ पाया और न ही उसे उन आशाओं को क्रियान्वित कर पाया है.

हम दोनों पडोसी किन्तु चिर प्रतिद्वंदी राष्ट्रों के पिछलें मात्र छः आठ महीनों के छोटें से इतिहास को देखें तो इसमें वर्षों की कूटनीति नजर आएगी. ब्रह्मपुत्र और गंगा में इन दिनों में लगता है कि बहुत कुछ बहा पर नहीं बहा तो हमारा धेर्य और सहनशीलता!! अभी पिछलें महीनों ही की तो बात है जब भारत यात्रा पर आये पाकी गृह मंत्री ने विवाद उत्पन्न करनें की शैतानी मानसिकता से कहा कि “26/11 हमलों में शामिल होने का आरोप झेल रहे हाफ़िज़ सईद के खिलाफ, चरमपंथी अजमल कसाब के बयान के आधार पर कार्रवाई नहीं की जा सकती.” अपनी इस भारत यात्रा में ही पाक गृह मंत्री रहमान मालिक ने 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया को जेनेवा नियमों के विरूद्ध पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा यातना पूर्ण और पाशविक ढंग से मार कर आँखें निकाल जानें पर कहा, “मैं नहीं कह सकता कि सौरभ कालिया की मौत पाकिस्तानी सेना की गोलियों से हुई थी या वो खराब मौसम का शिकार हुए थे.” पाकी गृह मंत्री को तब किसी ने यह नहीं कहा था कि खराब मौसम में हुई मौत में आँखें निकल कर गायब नहीं हो जाती हैं. हमें यह भी याद है की अपनी इस भारत यात्रा में पाकिस्तानी गृह मंत्री फरमा गए थे कि “26.11 का मुंबई हमलों का अपराधी अबू जुंदाल भारतीय था और भारतीय एजेंसियों के लिए काम करता था जो बाद में पलट गया.” रहमान मलिक जी, पूरा भारत ही नहीं बल्कि समूचा विश्व आपसे पूछना चाहता है कि “अबू जुंदाल अगर भारतीय एजेंट था तो क्यों पाकिस्तान की सरकार उसके सऊदी अरब से भारत प्रत्यर्पण के खिलाफ थी? और क्यों उसे पाकिस्तानी नागरिक बताया जा रहा था?? क्यों पूरा पाकिस्तानी प्रशासन अबू जिंदाल की चिंता में अधीर हो रहा था??? यह वही रहमान मलिक हैं जिन्होंने अजमल आमिर कसाब की गिरफ्तारी के बाद उसे पाकिस्तानी मानने से यह कह कर इनकार कर दिया था उसका पाकिस्तानी जनसंख्या पंजीकरण प्राधिकरण में कोई रिकॉर्ड नहीं है.” अपनी इस भारत यात्रा में पाकिस्तानी गृह मंत्री 26.11 के मुंबई बम विस्फोटों को( जिनकें तार सीधें लाहौर से जुड़े थे) को अयोध्या स्थित भगवान श्री राम की जन्मभूमि पर मुग़ल आक्रान्ता बाबर द्वारा बनाई गई बाबरी मस्जिद के विध्वंस से भी जोड़ गए थे यद्दपि उन्होंने इस बात के लिए माफ़ी मांगी किन्तु यह भी एक सोची समझी कूटनीति ही थी जो वे कर गए थे. इसके विपरीत पिछलें महीनों में ही पाकिस्तान जानें वालें हमारें विदेश मंत्री एस एम् कृष्णा वहां मीनार-ए-पाकिस्तान पर तफरीह के लिए पहुँच गए थे. यही वह स्थान है जहां 1940 में पृथक पाकिस्तान जैसा देशद्रोही, भारत विभाजक प्रस्ताव पारित हुआ था. एक देश का भाषण दूसरे देश में भूल से पढ़कर भद्द पिटवाने वाले हमारे विदेश मंत्री कृष्णा जी को और उनके स्टाफ को यह पता होना चाहिए था कि द्विराष्ट्र के बीजारोपण वाले इस स्थान पर उनके जाने से राष्ट्र के दो टुकड़े हो जाने की हम भारतीयों की पीड़ा बढ़ जायेगी और हमारें राष्ट्रीय घांव हरे हो जायेंगे. देशवासियों की भावनाओं का ध्यान हमारें विदेश मंत्री कृष्ण को होना ही चाहिए था जो अंततः उन्हें नहीं रहा.

अभी पिछले दिनों की बात है जब भारत पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलनें की तैयारी में था और खेला भी। और यह भी पिछले दिनों की ही बात है जब पाकिस्तान ने पहले हमारें ले ज़न. सौरभ कालिया की आँखें और फिर हमारें दो सैनिकों के सर काट कर रख लिए थे. यह भी हम नहीं भूलें हैं कि उन कटे सिरों के रक्त से रंजित हाथों से ही पाकिस्तानी नेता के परिवार ने अजमेर में जियारत की थी और हमारें विदेश मंत्री के साथ मुर्ग मुसल्लम भी खाया था। भारतीय सैनिकों की आँखें निकाल लेनें और सर काट कर रखनें और फिर भारत आकर मुर्ग मुसल्लम खानें और फिर अजमेर की दरगाह पर भारतीय सैनिकों के लहू सनें हाथों के निशाँ छोडनें से लेकर भारतीय संसद के हमलावर अफजल की फांसी को गलत ठहरानें तक का घटनाक्रम बहुत तेजी से किन्तु बहुत गहरे घाव करनें वाला हो गया है. भारत की सरजमीं पर बनी दरगाह अजमेर शरीफ की चौखट पर पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री और उनके बेगम की हथेलियों से हमारें सैनिकों की गर्दन से निकलें रक्त के जो निशाँ छुट गए हैं वे हमें बरसो बरस तलक दुखी,व्यथित और उद्वेलित करते रहेंगे. हमारें विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद द्वारा इन दुश्मनों को दी गई दावत में परोसी गई मुर्ग रोगन जोश में कटे भारतीय मुर्गें भी अपनी नियति को कोसते और इन दुश्मनों के उदर में जानें के हत भाग्य को कोसते ही मरे होंगे.

भारतीय सरकार भारत की समूची संसद एक प्रस्ताव पारित कर अपनें कर्तव्य की इति श्री समझ रही है. इस समय आवश्यकता इस बात की थी पाकिस्तान के साथ भारत अपनें सम्बंधों की समीक्षा करें और अपनी विदेश नीति को फिर से जांचें परखें.

हमें आज प्रमुखता से यह चिंता विचार भी करना होगा कि अफजल के पाकिस्तान में हुए प्रशिक्षण, भारतीय संसद पर हमलें की योजना में लगे पाकिस्तानी धन, तकनीक और अफजल को दी गई भारतीय उच्चतम न्यायालय की सजा का विरोध और उसकी निंदा आलोचना को आखिर भारतीय प्रधानमन्त्री और विदेश मंत्रालय विश्व समुदाय के समक्ष क्यों नहीं रख पा रहा है? वैश्विक पंचाटों के हम जो चौधरी बनें फिरतें हैं तो फिर हमारी यह पीड़ा और पाकिस्तान का यह पैशाचिक रूप हम विश्व के मंचों पर क्यों नहीं रख पा रहें हैं? यह आज सर्वाधिक चिंता और विचार का विषय है!! कहना न होगा कि भारतीय विदेश नीति के पाकिस्तान अध्याय को ऐसे लोग लिख और पढ़ रहें हैं जिनकी न मनसा में दम है, न वाचा में शक्ति है और न ही कर्मणा में कुछ कर गुजरनें की चाहत!! आखिर इस बात को हम अन्तराष्ट्रीय मंचो पर क्यों नहीं उठा पा रहें हैं कि अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं के अनुमान के अनुसार पाकिस्तान में प्रति माह 20 से 25 हिंदु कन्याओं को जबरन चाक़ू की नोक पर मुसलमान बना दिया जाता है???? यह बात क्यों नहीं कही जा रही कि 1951 में 22% हिंदुओं वालें पाकिस्तान में अब मात्र 1.7% हिंदु ही बच गए है. हमारे अपराधी न.1 और इंटर पोल के मोस्ट वांटेड दाऊद इब्राहिम को पाकिस्तान ने अपने काले बुर्के में छिपा रखा है और वह इस्लामाबाद में बैठकर पुरे विश्व में भीषण आपराधिक घटनाओं को अंजाम दे रहा है इस बात को उठानें में हम पीछे क्यूँ हैं. पाकिस्तान से निरंतर पीड़ित,प्रताड़ित,परेशान होकर अपनी धन सम्पति छोड़कर पलायन करते हिंदुओं की पीड़ा को हम क्यों अनदेखा कर रहें हैं? एक भारतीय नागरिक को भारत की ही निर्मलतम उच्चतम न्याय व्यवस्था उसके किये अपराध की सजा देती है और पाक के पेट में बल पडतें हैं तो इससे ही सिद्ध हो जाता है कि वह भारतीय संसद का अपराधी अफजल और कोई नहीं बल्कि पाकिस्तानी में रचे गए षड्यंत्र का एक मोहरा भर था. भारतीय विदेश नीति के पाकिस्तान सम्बंधित अंश के बेतरह विफल होनें का इससे बड़ा और क्या प्रमाण हो सकता है कि वह अफजल फांसी के मुद्दे पर पाक के खुले भारत विरोध और भारतीय सार्वभौमिकता पर दिन उजालें चोट खानें के बाद भी न तो दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग से स्पष्ट दो टूक बात कर पाया और न ही उसे तलब तक कर पाया. भारत को चुनौती देनें और अपराध कर आँखें दिखानें का पाकिस्तान का यह मामला यहाँ चरम पर पहुंचा समझा जाना चाहिए ऐसी भारतीय जनमानस की स्पष्ट सोच है और जनमानस की यह सोच केन्द्रीय सरकार की नीतियों में प्रतिबिंबित होना चाहिए!!! इस बात को स्वर देनें हेतु संसद में सत्ता पक्ष दृड़ प्रतिज्ञ नहीं दिखता और विपक्ष इसके लिए सक्षम नहीं दिखता. समूची संसद ने एकमत होकर एक स्वर में पाक की आलोचना तो की किन्तु इसके आगे क्या ? इस पर कोई विचार करता नहीं दिख रहा. हा विधाता!! भारत की संसद में बैठे सांसदों को लगता है जैसे वैचारिक पक्षाघात(लकवा) हो गया है!! समय आ गया है जब भारत की संसद को एकमत से जुझारू सांसदों और प्रवक्ताओं की ( सर्वदलीय) एक टोली बनाना चाहिए जो कि विश्व समुदाय, संस्थाओं और सयुंक्त राष्ट्र संघ में अपनी बात को प्रवीणता, प्रखरता और प्रचंडता से न केवल रख सकें बल्कि रखनें के पश्चात अपनें अनुकूल प्रस्ताव भी पारित करा सकें। इस जुझारू सांसदों और प्रवक्ताओं की टोली को विश्व समुदाय को भारत में पाक संचालित आतंकवाद का हाल तो बताना ही होगा साथ साथ पाकिस्तान में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों और पाशविक यंत्रणाओं के किस्से भी बतानें होंगें. भारत द्वारा विश्व समुदाय को यह भी बताया जाना चाहिए कि पाकिस्तान में रहनें वालें हिन्दुओं को शान्ति से जीवन जीनें देनें की तो छोडिये उनकें दाह संस्कार में भी अड़ंगे लगाए जातें हैं. विश्व समुदाय के समक्ष पाकिस्तान में होनें वालें हिन्दुओं के “जबरिया धर्मांतरण करो या मर जाओ” के मामलें भी मुखरता से लायें जानें चाहियें. केवल क्रिकेट हाकी खेलनें से, गजलों, गीतों मुशायरों की महफ़िलें सजा लेनें से या हाकी क्रिकेट के मैच रद्द कर देनें से भी कुछ नहीं होनें वाला है। मैच, मजलिसें और महफ़िलें भी रद्द हों और अन्तराष्ट्रीय टेबिलों पर भीषण वाक् युद्ध प्रारम्भ हो. ऐसा सभी कुछ करनें का सही नहीं बल्कि चरम समय अब आ गया है.

 

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