महामहिम के समक्ष भी अपनी ‘नौटंकीबाजी’ से बाज नहीं आए ‘नौटंकीबाज’

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-आलोक कुमार-

presidential-electionजनता द्वारा सिरे से नकारे जाने और अपने ही विरोधाभासों व अंतर्विरोधों के कारण लगभग बिखरे चुके कुनबे से सीख लेने के बावजूद अपनी नौटंकीबाजी व ड्रामेबाजी (मैं शुरुआती दौर से इन लोगों के लिए ‘नौटंकीबाज’ शब्द का प्रयोग करता आ रहा हूं और आज भी उस पर कायम हूँ ) से बाज नहीं आ रहे आम आदमी पार्टी के ये ‘मानिंद नौटंकीबाज’ l आज जिस तरह से अपनी पार्टी के सिम्बल व स्लोगन वाली टोपी पहनकर इन लोगों का एक ‘झुंड’ महामहिम राष्ट्रपति महोदय से मिलने पहुँचा उसे देखकर तो यही लगा कि ये लोग जंतर-मंतर व रामलीला मैदान तक की नौटंकीबाजी व मनोरंजन के लिए ही बने व उपयुक्त हैं l

देश की सबसे बड़ी संवैधानिक कुर्सी की अपनी एक गरिमा होती है और राष्ट्रपति भवन में मर्यादा , गरिमा व शालीनता का विशेष ख्याल रखा जाता है l ‘आप’ महामहिम से मिलने जा रहे थे किसी प्रदर्शन या चुनाव –आयोग के दफ्तर नहीं जहां ‘आप’ को अपने प्रचार के सिम्बलों की जरूरत थी , क्या कहीं ‘आप’ लोगों को ये आशंका तो नहीं थी बिना इन सिम्बलों के महामहिम आपको पहचानेंगे नहीं ? अरे भाई… ‘आप’ लोगों में इतनी तो समझ होनी ही चाहिए कि राष्ट्रपति महोदय के पास उनका सचिवालय पहले से ही मिलने वालों का नाम , उनकी पहचान और उनके आने के उद्देश्य का मसौदा उपलब्ध करा देता है l वैसे भी ‘आप’ जैसे लोगों की पहचान का महामहिम के समक्ष कोई विशेष मायने नहीं रहता है , वहाँ ‘आप’ जैसे लोगों के द्वारा जो मेमोरेंडम सौंपा जाता है सिर्फ उसी से महामहिम का सरोकार होता है l

‘आप’ लोगों के साथ सबसे बड़ी गड़बड़ी ये है कि ‘आप’ लोग पूर्व की घटनाओं से भी सबक नहीं लेते हैं ( वैसे भी सबक लेने की उम्मीद ‘आप’ से करना बेमानी ही है , अगर आप सबक ही लेते तो आज ‘आप’ की ये दुर्दशा व दुर्गति नहीं हुई होती ) , ‘आप’ लोग जब सत्ता में थे तब भी दिल्ली विधानसभा में ‘आप’ लोगों की ‘टोपीबाजी’ के शौक पर संवैधानिक – व्यवस्था की गरिमा के उल्लंघन का प्रश्न उठा था और मजबूरन सदन में ‘आप’ सबों को अपनी ड्रामे वाली ‘टोपी’ का त्याग करना पड़ा था l इस घटना से ही सीख लेते हुए राष्ट्रपति – भवन में ‘आप’ अपनी ‘टोपी’ के बिना के भी जाते तो भी महामहिम की तरफ से उतनी ही सुनवाई होती जितनी होनी है l ‘आप’ लोगों में इतनी समझ तो होगी ही कि विधानसभा से भी काफी ऊँचा संवैधानिक कद होता है महामहिम राष्ट्रपति व राष्ट्रपति भवन में स्थित उनके कार्यालय का …!

3 COMMENTS

  1. अधकचरे राजनीतिज्ञों की ये ही पहचान होती है ,जब नाटक करना हो तब टोपी सर पर आ जाती है,गले में मफलर या दुपट्टा नुमा स्कार्फ़ आ जाता है अन्यथा ऐसे ही घूमते हैं , इनका नाटक भी समझ से परे ही है, जनता फिर यदि इनके झांसों में आ गयी तो फिर दिल्ली में रोजाना नाटक तैयार रहेगा, मीडिया में रहने के लिए फिर रोज नए नए दावे करे जायेंगे, मसलन 49 दिनों में इन्होने भ्रस्टाचार आधा कर दिया था, इतना कार्य किसी भी सरकार के कार्यकाल में नहीं हुआ था जितना इन्होने इतने से समय में कर दिया था ,अब दिल्ली वासियों को ही देखना समझना है, बाकी देश में तो अब जनता इनके करतबों सर आजिज आ चुकी है , क्योंकि इनमें परिपक्वता का पूर्ण अभाव है

  2. स्वयं मेरे लिए वास्तविक स्वतंत्रता का अग्रदूत बन भारतीय राजनैतिक क्षितिज पर उजागर अरविन्द केजरीवाल ने उनचास दिनों में अपना असली चेहरा दिखा मुझे अचंभित कर दिया थ। पूर्ण रूप से असफल इस व्यक्ति को इतिहास में भी कोई स्थान नहीं मिलना चहिये।

  3. आलोक कुमार जी आपलोगों के साथ सबसे बड़ी गड़बड़ी यह है कि आपलोग यथास्थिति के इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि आप उससे आगे देखना ही नहीं चाहते.आप जैसे लोगों की नजर में तो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना भी बेमानी लगता होगा,क्योंकि यह तो हमारे खून में रच गया है.रही बात नौटंकी ,तो वास्तव में यही तो नहीं आता,अरविन्द केजरीवाल ग्रुप को.आज के युग में सबसे बड़ा नौटंकीबाज ही सबसे सफल व्यक्ति होता है. बहुत से उदाहरण आपके सामने है

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