हिजडों का दर्द

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वीरभान सिंह

विधाता के साथ चुनाव आयोग भी रूठ सा गया उनसे

शून्य दर्शा दी संख्या, अब कैसे करेंगे मतदान

मैनपुरी, उत्तर प्रदेश। विधानसभा चुनाव-2012, चुनाव आयोग किसी भी प्रकार की रिस्क लेना नहीं चाहता। शायद यही वजह रही कि उसने साल भर पहले से मतदाता पुनरीक्षण कार्यक्रम के तहत समूचे देश में अभियान चलाकर वोट बनवाये जाने का सिलसिला प्रारंभ कर दिया। इस कार्य

में सारी सरकारी मशीनरी को लगाया गया, मगर यह क्या, फिर भी चूक हो गई। सरकार की जुबान में अन्य की श्रेणी में शुमार किए जाने वाले किन्नरों को तो पूरी तरह से नजरंदाज कर दिया गया। सरकारी दस्तावेजों की जुबानी और कागजी कहानी का यदि हकीकत से मिलान किया जाये तो एक बडी लापरवाही खुलकर सामने आती है। अब इस लापरवाही का अंजाम क्या होगा, यह तो वे खुद जानें या खुदा, मगर इस दो तरफा व्यवहार से मैनपुरी के हिजडे खुद को मतदान के अधिकार से वंचित सा मान रहे हैं।

समाज में जितने प्रकार के लोग उतनी ही प्रकार की नजरें और लगभग हर एक नजर में उनकी एक सी छवि। संविधान भी ऐसे लोगों को किसी दर्जे में नहीं रख पाया और जहां विभिन्न प्रकार की जातियां बांटकर लोगों का उनके कर्मों के आधार पर विभाजन कर दिया गया, वहीं समाज के इस हिस्से को अन्य की श्रेणी में शुमार कर समाज में ही रहने की मंजूरी प्रदान कर दी। जी हां, हम बात कर रहे हैं किन्नरों की। कभी हिजडे तो कभी नचइया, ऐसे संबोधनों से पहचाना जाने वाला किन्नर समाज मैनपुरी में उपेक्षित सा है। इनके साथ सौतेला व्यवहार करने में शायद प्रशासनिक स्तर पर भी कोई कसर नहीं छोडी गई। आयोग के निर्देश पर चलाये गए मतदाता सर्वेक्षण अभियान में बरती गई लापरवाही और सौतेलेपन का अब जबकि मतदान के कुछ ही दिन शेष रह गए हैं, तब जाकर खुलासा हुआ है। आंकडों की बाजीगरी में फंसे इन हिजडों की असल सच्चाई से आइये आपको भी वाकिफ कराते हैं।

शुरूआत करते हैं नवीन जनगणना के आंकडों से। अप्रैल 2011 को जारी किए गए नवीन जनगणना के आंकडों पर यदि एक नजर डालें तो उस समय अधिकारिक सूत्रों द्वारा मैनपुरी जनपद में किन्नरों यानी हिजडों की संख्या कुल 35 बतायी गई थी। इन किन्नरों को अन्य की श्रेणी में दर्शाया गया था। विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण कार्यक्रम 2012 की परिवर्धन सूची में अन्य की श्रेणी में इन किन्नरों की संख्या पांच दर्शायी गई। परिवर्धन सूची में मैनपुरी विधानसभा में इनकी संख्या शून्य, भोगांव और किशनी विधानसभा में एक-एक और करहल विधानसभा में तीन दर्शायी गई। कुछ ही दिनों बाद प्रशासनिक अधिकारियों ने बैठक कर विधानसभा सामान्य निर्वाचन सूची 2012 का प्रकाशन किया। इस सूची में भी आंकडों का अंतर अन्य की श्रेणी में स्पष्ट नजर आ रहा था। नवीन सूची के अनुसार जनपद भर में किन्नरों की संख्या आठ दर्शायी गई जिसमें एक बार फिर से मैनपुरी विधानसभा में शून्य, भोगांव और करहल विधानसभा में तीन-तीन और किशनी विधानसभा क्षेत्र में दो अन्य मतदाता दिखाये गए। अब हैरत की बात तो यह है कि जहां अब तक नवीन जनगणना के अनुसार जनपद भर में अन्य की श्रेणी में शामिल कुल 35 किन्नर बताये जा रहे थे, वे विधानसभा चुनाव के आते-आते घटकर आठ तक ही कैसे सिमट गए। बाकी के किन्नर कहां गए ? चुनाव अधिकारियों का कहना है कि सिर्फ इतने ही किन् नरों ने अपने वोट बनवाने के लिए आवेदन किया था बाकी के किन्नरों ने फार्म ही नहीं भरा, लिहाजा उनके नामों का प्रकाशन नहीं हो सका।

मतदाता पुनरीक्षण कार्यक्रम में भी लापरवाही बरती गई, इसका खुलासा इसी बात से होता है कि जहां मैनपुरी में अन्य की श्रेणी को शून्य बताया जा रहा है वहीं आगरा रोड पर एक साथ अलग-अलग थानों पर तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा किन्नर रहते हैं। इन किन्नरों का कहना है कि उनके पास कोई वोट बनाये जाने को लेकर आया ही नहीं। सुबह होते ही वे सभी बधाई गाने के लिए अपने-अपने क्षेत्रों में निकल जाते हैं और देर शाम वापस लौटते हैं। ऐसे में किसी के भी घर पर आने की संभावना ही नहीं होती। चुनाव आयोग घर-घर जाकर अभियान चलाकर प्रत्येक मतदाता का वोट बनवाये जाने के आदेश दे चुका है। अब ऐसे में यह सवाल खडा हो जाता है कि क्या किन्नरों को मतदान करने का अधिकार नहीं हैं। यदि है तो फिर इन हिजडों की जनगणना और मतदाता होने के आंकडों में इतना बडा विभेद क्यों ? यह अभी भी एक अनसुलझा सा सवाल है जो विधानसभा चुनाव में हार-जीत के आंकडों को काफी हद तक परिवर्तित भी कर सकता है।

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