हिंदी सबको जोड़ती

0
160

 

आज़ादी बेशक़ मिली, मन से रहे गुलाम।

राष्ट्रभाषा पिछड़ गयी, मिला न उचित मुक़ाम।।

 

सरकारें चलती रहीं, मैकाले की चाल।

हिंदी अपने देश में, उपेक्षित बदहाल।।

 

निज भाषा को छोड़कर, परभाषा में काज।

शिक्षा, शासन हर जगह, अंग्रेजी का राज।।

 

मीरा, कबीर, जायसी, तुलसी, सुर, रसखान।

भक्तिकाल ने बढ़ाया, हिंदी का सम्मान।।

 

देश प्रेमियों ने लिखा, था विप्लव का गान।

प्रथम क्रांति की चेतना, हिंदी का वरदान।।

 

हिंदी सबको जोड़ती, करती है सत्कार।

विपुल शब्द भण्डार है, वैज्ञानिक आधार।।

 

भाषा सबको बाँधती, भाषा है अनमोल।

हिंदी उर्दू जब मिली, बनते मीठे बोल।।

 

सब भाषा को मान दें, रखें सभी का ज्ञान।

हिंदी अपनी शान हो, हिंदी हो अभिमान।।

 

हिंदी हिंदुस्तान की, सदियों से पहचान।

हिंदीजन मिल कर करें, हिंदी का उत्थान।।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here