हिंदी दादी अमर रहेगी

अंग्रेजी चाची ने हिंदी, दादी पर हमला बोला|

डर के मारे दादी का, सिंहासन है थर थर डोला|

चुपके चुपके दादी माँ ,अपने दड़बे मे‍ घुस आई|

“मैं वेदों की महरानी हूँ,” जोर जोर से चिल्लाई|

“बड़े बुज़्रगों ने मुझको ,धर्मों करमों में ढाला था|

बहुत प्यार से बड़े लाड़ से ,स्मृतियों ने पाला था|

मेरे पुरखों दादों ने, दुनियाँ को जीना सिखलाया|

सत्य अहिंसा दया धर्म का, मार्ग जहाँ को दिखलाया|

तुम सब नाती पोते, दादी ,हिंदी को क्या पहचानों|

तुम अधकचरे मात पिता की, हो अधकच‌री संतानो|

दादी का अस्तित्व अभी तक, कोई मिटा न पाया है|

नहीं मिटेगी किसी तरह भी ,अमर हो चुकी काया है|

हिंदी दादी अमर रहेगी ,इंग्लिश चाची के घर में|

गूंजेगी आवाज़ हमेशा ,थल में जल में अंबर में|”

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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