ना जाने क्यों आज-कल खोया-खोया सा रहता हूं,
खुद से खफा रहता हूं,
बिना हवा के चलने से पेड़ों को हिलते हुए देखता हूं,
बिन बारिश के बादलों में इंद्रधनुष को देखता हूं,
तो कभी, लहरों की बूंदों को गिनने की कोशिश करता हूं,
ना जाने क्यों आज-कल खोया-खोया सा रहता हूं,
कोई पूछ ले सवाल,
तो जवाब देने से डरता हूं,
हवा के रुख से बातें करता हूं,
कभी पतंग की डोर को,
धागे में पिरोता हूं,
ना जाने क्यों आज-कल खोया-खोया सा रहता हूं,
तमाम पहेलियां हैं चारों ओर,
फिर भी उन्हें सुलझाने से डरता हूं,
सुर-ताल की चिंता किए बिना,
संगीत को सुनता हूं,
अजनबियों के साथ दोस्ती करता हूं,
मगर, बातें करने से कतराता हूं,
बदलते वक्त के साथ तालमेल बिठाता हूं,
धूप में भी छांव की तलाश करता हूं,
ना जाने क्यों आज-कल खोया-खोया सा रहता हूं,,
पलके खामोश सी रहती है,
तो सांसें बैचेन,
दिल बेकरार सा रहता है,
तो उम्मीदें धुंधली लगती है,
जो मेरे पास है,
उसके बारे में सोच-सोच कर परेशां सा रहता हूं,
ना जाने क्यों आज-कल खोया-खोया सा रहता हूं,