बेजुबां ये अश्क़ अपना हाल खुद ही बताते हैं।
आज भी तुम पर ये अपना अधिकार जताते हैं।।
याद में तेरी अश्क़ बहाना भी गुनाह अब हो गया।
कैसे कहें कि दिल का चैन पता नहीं कहां खो गया।।
चैन-सुकून की तलाश में सब कुछ छूट गया है।
क्यों मुझसे अब मेरा वजूद ही रूठ गया है।।
रूठा जो वजूद मेरा तमन्ना भी अब रूठी है।
जाने किस बात पर ज़िन्दगी मुझसे ऐंठी है।।
तमन्ना और ज़िन्दगी दोनों ही हैं अनमोल।
पर एक को चुकाना ही होगा दूसरे का मोल।।
मोल चुकाना नहीं होगा आसां ये काम।
छोड़नी होगी इसके लिए खुशियां तमाम।।
खुशियों का मोह हमें अब नहीं सताता है।
मोह उन आहों का है जो उनकी याद दिलाता है।।
आहों में ही तो हमेशा हम उनको याद करते हैं।
इन्हीं के जरिये तो वो दिल में हमारे बसते हैं।।
दिल की इस रहगुज़र में आज भी उन्हें ढूंढ़ते हैं।
हां, हम आज भी इंतज़ार सिर्फ उनका करते हैं।।
हिन्दी इस देश की जनभाषा है,इस के लिए माननीय नरेंद्र मोदी की जीत एक सबूत है॰
गांधीजी को हिन्दी के कारण स्वदेश और भारतवंशियों के बीच ज्यादा लोकप्रियता मिली थी॰
भारतीय राजनीति में ही नहीं,जनसंचार,व्यापार,पर्यटन,प्रबंधन सूचना,प्रशासन,सभी क्षेत्रों में
हिन्दी ही सब से प्रभावी माध्यम है,अब नयी सरकार को इस तथ्य को समझकर कुछ ठोस काम करना चाहिए।लेख के लिए मधुसूदनजी को बधाई॰
Beaytiful.
Welcome.
Touches inner corner of heart.
Dr.R Kumar
Thanks.