हिन्दुत्व और विश्व बंधुत्व : विपिन किशोर सिन्हा

वेदान्त का सर्वविदित सूत्र है – एकं सद विप्रा बहुधा वदन्ति – एक ही सत्य विद्वान अनेक तरह से कहते हैं। बाइबिल में भी सत्य है, कुरान में भी सत्य है, वेदों में भी सत्य है। ये सभी सत्य अन्त में जाकर परम सत्ता के परम सत्य में विलीन हो जाते हैं। यह कहना कि मेरे ग्रन्थ में प्रतिपादित सत्य ही अन्तिम सत्य है, बाकी सब मिथ्या, घोर अज्ञान है। आज दुनिया में फैली अशान्ति और हिंसा का यही मूल कारण है। इतिहास साक्षी है कि इस विश्व में जितना नरसंहार धर्म के नाम पर हुआ है, उतना प्रथम-द्वितीय विश्वयुद्ध और हिरोशिमा-नागासाकी पर अणु बम के प्रहार से या किसी सुनामी से नहीं हुआ है। एक सुशिक्षित, सभ्य और विकसित विश्व में क्या पुनः धर्म के नाम पर खून की नदियां बहाने की इज़ाज़त दी जा सकती है? ईश्वर करे, वह दिन कभी न आए। यह प्रकृति जिसने हम सभी को बनाया है, वही जब चाहे, जैसे चाहे हमारा विध्वंश करे, यह तो स्वीकार है, लेकिन इस विध्वंश की जिम्मेदारी किसी मनुष्य पर आए, कम से कम मैं यह नहीं चाहता। तकनिकी दृष्टि से आज पूरा विश्व एक गांव जैसा हो गया है, लेकिन गांव के परस्परावलंबन और शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व के सिद्धान्त का पालन करने की दिशा में हम अग्रसर हैं क्या? यह एक यक्ष प्रश्न है, जिसका समय रहते उत्तर अपेक्षित है।

गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो भी, जैसे भी, जिस रूप में मेरे पास आता है, मैं उसे उसी रूप में स्वीकार करता हूं, क्योंकि इस ब्रह्माण्ड के सारे रास्ते, चाहे वे कितने भी अलग-अलग क्यों न हों, मुझमें (परम सत्य) ही आकर मिलते हैं। स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो की धर्मसभा के उद्घाटन भाषण में गीता का संदर्भ देते हुए जब श्रीकृष्ण की उपरोक्त उक्ति दुहराई, तो हाल तालियों कि गड़गड़ाहट से गूंज उठा। सबके लिए यह रहस्योद्घाटन सर्वथा नया था। उनके संबोधन के दौरान दो बार जबर्दस्त करतल ध्वनि हुई – पहली बार जब उन्होंने उपस्थित जन समुदाय को Sisters and brothers of America कहकर संबोधित किया और दूसरी बार जब गीता की उपरोक्त सूक्ति का भावार्थ अपनी ओजपूर्ण वाणी में प्रस्तुत किया। ये दोनों चीजें शेष विश्व के लिए नई थीं लेकिन भारत और विशेष रूप से हिन्दुओं के लिए चिरपरिचित थीं और हैं। विश्व को एकता, भाईचारा, शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व, समानता और सौहार्द्र के मज़बूत धागे में पिरोकर एक सुन्दर पुष्पहार बनाने की क्षमता मात्र हिन्दू धर्म में है।

गीता के उपदेशों का भारत पर इतना गहरा प्रभाव था कि भारतवर्ष में अनेक संप्रदायों के जन्म और विस्तार होने के बाद भी परस्पर सांप्रदायिक सद्भाव था। जबसे कुछ विदेशी हमलावरों ने हिंसा के द्वारा जबर्दस्ती अपना संप्रदाय दूसरों पर थोपना शुरु किया, तबसे सांप्रदायिकता का जन्म हुआ। भारतवर्ष में धर्म सर्वव्यापक था। हिन्दू धर्म ने सभी प्राणियों को समान अवसर देते हुए, सम्मान के साथ जीने की व्यवस्था दी है। धर्मान्तरण को किसी रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं –

“श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात।

स्वधर्मे निधनम श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥”

अच्छी प्रकार आचरण में लाए हुए दूसरे के धर्म से गुणरहित भी अपना धर्म उत्तम है। अपने धर्म में मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय देनेवाला है।

सर्वधर्म समभाव के सिद्धान्त को हिन्दू अपने जन्म से पाए संस्कार के कारण स्वभाविक रूप से स्वीकार करता है। उसे तनिक भी भय नहीं है कि अज़मेर शरीफ़ पर चादर चढ़ाने से वह विधर्मी घोषित किया जा सकता है। ऐसा हो भी नहीं सकता क्योंकि यहां फ़तवा जारी करने की न तो परंपरा है और न स्वीकार्य है। ईश्वर की परम सत्ता में उसे अटूट श्रद्धा और विश्वास है। वह मज़ार पर जा सकता है, गुरुद्वारा में अरदास कर सकता है, चर्च में प्रार्थना कर सकता है, बौद्ध मठ में ध्यान लगा सकता है और वापस लौटकर मन्दिर में निर्विघ्न पूजा भी कर सकता है। उसे यह बताने कि आवश्यकता नहीं कि ईश्वर एक है और सर्वव्यापी है। मज़ार पर चादर चढ़ाने या चर्च में प्रार्थना करने मात्र से वह धर्मभ्रष्ट नहीं हो सकता। क्या ऐसी छूट ईसाइयत या इस्लाम दे सकते हैं? कदापि नहीं। हिन्दू धर्म अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण मानव धर्म या विश्व धर्म प्राप्त करने कि पात्रता स्वयमेव प्राप्त कर लेता है। स्वामी विवेकानन्द ने इसकी स्पष्ट घोषणा की थी कि आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, जब दुनिया तमाम धार्मिक संघर्षों से ऊबकर चिरस्थायी शान्ति के लिए दृष्टि उपर उठाएगी, तो वह भारत पर आकर ही ठहरेगी। निश्चित रूप से भारतवर्ष और हमारा हिन्दू धर्म ही विश्व और संपूर्ण मानवता को वांछित समाधान देगा, क्योंकि हिन्दुत्व ही विश्व बन्धुत्व का संदेशवाहक है।

विश्व के सभी धर्म महान हैं। देश काल और तात्कालीन परिस्थिति के अनुसार उनमें नियम और उपनियम बनाए गए, जो उस विशेष समय के लिए उचित भी थे लेकिन बदलते समय के अनुसार वे अपने में किसी भी तरह का परिवर्तन करने के लिए तैयार नहीं हैं। वे सभी से अपनी पुस्तक में वर्णित नियमों और उपनियमों के पालन की अपेक्षा रखते हैं, अन्यथा की स्थिति में उन्हें जबर्दस्ती तलवार के बल पर दूसरों पर अपना धर्म थोपने की सब प्रकार की छूट है। वस्तुतः धर्म होने की अर्हताएं हिन्दू धर्म के अतिरिक्त, कोई दूसरा धर्म पूरा ही नहीं करता। एक पुस्तक और एक देवदूत को ही अन्तिम सत्य मानने वाले एक संप्रदाय विशेष का निर्माण तो कर सकते हैं, धर्म का नहीं। धर्म बड़ा व्यापक शब्द है। इसे किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता। जो भी अच्छा धारण करने योग्य है, वह धर्म है। हिन्दुत्व अच्छे कर्त्तव्य को भी धर्म की संज्ञा दी गई है – राजा के लिए राजधर्म, प्रजा के लिए प्रजाधर्म, पिता के लिए पितृधर्म, पुत्र के लिए पुत्रधर्म, देवता के लिए देवधर्म और मानव के लिए मानव धर्म। हिन्दू धर्म के अतिरिक्त, संप्रदाय होने के कारण, किसी भी धर्म में समग्र चिन्तन का अभाव स्पष्ट दीखता है। सबने खण्ड-खण्ड में चिन्तन किया है लेकिन संपूर्ण पृथ्वी को अपना कुटुंब या परिवार मानने का आह्वान बिना धर्म परिवर्तन के किसी ने भी नहीं किया है।

“अयं निज परोवेति गणना लघुचेतसाम।

उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम ॥”

यह मेरा है, वह तेरा है, ऐसा छोटे चिन्तन वाले कहते हैं; उदार चरित्र और चिन्तन वालों के लिए तो समस्त पृथ्वी ही एक परिवार है।

क्या उपरोक्त सूत्र की व्याख्या की आवश्यकता है? दो पंक्तियों में हिन्दू मनीषियों ने विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान दे दिया है।

इस संसार के समस्त मानवों को कैसा होना चाहिए – उनका आचरण कैसा होना चाहिए, उनका चिन्तन कैसा होना चाहिए और उनका विकास किस तरह होना चाहिए, संपूर्ण संस्कृत वांगमय इसी की चर्चा करता है। हिन्दू धर्म का उद्देश्य न तो किसी साम्राज्य की स्थापना है और ना ही अनावश्यक विस्तार। इसने मनुष्य को एक पूर्ण इकाई माना है और उसका विकास ही इसका परम उद्देश्य है। मनुष्य के विकसित होते ही सारी समस्याओं का समाधान अपने आप निकल आता है। सारे वेद, पुराणों और उपनिषदों का कालजयी सार संपूर्ण मानवता के लिए महर्षि वेद व्यास ने निम्नलिखित श्लोक की दो पंक्तियों में भर दिया है –

“अष्टादस पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम।

परोपकारम पुण्याय पापाय परपीडनम॥”

परोपकार ही पुण्य है और दूसरों को दुःख पहुंचाना सबसे पड़ा पाप।

पाप और पुण्य की संपूर्ण मानवता के हित के लिए इतनी सरल और व्यापक व्याख्या अन्यत्र दुर्लभ है। अगर सभी इसे हृदयंगम कर लें और अपने आचरण में उतार लें, तो क्या पूरे विश्व में कहीं भी हिंसा के लिए तनिक भी स्थान शेष रह जाएगा? विश्व बन्धुत्व के लिए किसी भी मनीषी द्वारा प्रतिपादित यह सबसे महत्वपूर्ण, उल्लेखनीय और अनुकरणीय सूत्र है।

एक सच्चे विद्वान या इन्सान के आवश्यक गुणों का वर्णन करते हुए हिन्दू धर्म शास्त्रों में कहा गया है –

“मातृवत परदारेषु परद्रव्येषु लोष्टवत।

आत्मवत सर्वभूतेषु य पश्यन्ति स पण्डितः॥”

दूसरे की स्त्रियों को माता के समान, दूसरे के धन को मिट्टी के ढेले के समान और संसार के सभी प्राणियों को अपने समान जो देखता और मानता है, वही विद्वान है, पण्डित है, इन्सान है।

दुनिया की सारी अशान्ति, अराजकता और असंतोष का समाधान उपरोक्त सूक्ति में है। मनुष्य में इन सद्गुणों की जो कल्पना की गई है वह पूजा पद्धति और विचारधारा के बंधनों से सर्वथा मुक्त है। एक सच्चा हिन्दू, सर्वशक्तिमान ईश्वर की प्रार्थना करते हुए किसी भौतिक उपलब्धि की याचना नहीं करता। वह कहता है –

“हे प्रभो, आनन्ददाता, ज्ञान हमको दीजिए,

लीजिए अपनी शरण में, हम सदाचारी बनें,

ब्रह्मचारी, धर्मरक्षक, वीर, व्रतधारी बनें।”

स्वयं यानि व्यष्टि के लिए परमात्मा की शरण और ज्ञान की कामना करते हुए एक सनातनी हिन्दू समष्टि के हित की भी कामना अपने हृदय के अन्तस्तल से करता है –

“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे शन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चितदुःखभाग्भवेत॥”

ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।

सभी सुखी हों, सभी निरापद हों, सभी शुभ देखें, शुभ सोचें; कोई कभी भी दुःख को प्राप्त न हो। वह सबके लिए शान्ति की कामना करता है। इसीलिए एकमात्र हिन्दुत्व ही विश्व बन्धुत्व लाने में सक्षम है।

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विपिन किशोर सिन्हा
जन्मस्थान - ग्राम-बाल बंगरा, पो.-महाराज गंज, जिला-सिवान,बिहार. वर्तमान पता - लेन नं. ८सी, प्लाट नं. ७८, महामनापुरी, वाराणसी. शिक्षा - बी.टेक इन मेकेनिकल इंजीनियरिंग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय. व्यवसाय - अधिशासी अभियन्ता, उ.प्र.पावर कारपोरेशन लि., वाराणसी. साहित्यिक कृतियां - कहो कौन्तेय, शेष कथित रामकथा, स्मृति, क्या खोया क्या पाया (सभी उपन्यास), फ़ैसला (कहानी संग्रह), राम ने सीता परित्याग कभी किया ही नहीं (शोध पत्र), संदर्भ, अमराई एवं अभिव्यक्ति (कविता संग्रह)

2 COMMENTS

  1. सिन्हा जी जब कोइ यह कहता है की गीता कुरान बाइबल में एक ही बात है तो यह इसका प्रमाण है की उसने तीनो में कोइ भी ग्रन्थ नहीं पढ़ा है .

  2. सिन्हा जी,
    आप की सदाशयता पर कोई शंका नहीं की जा सकती…

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