एक जिले की आग ने…………जलाया हिंदुस्तान को

0
163

जीवन प्रकाश

कोकराझाड से शुरू हुई हिंसा पूरे भारत के लिए माथे का घाव बन गयी है| बोडो समुदाय के दो छात्रों की मौत के बाद गैर-बोडो समुदाय के लोगों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी|जिसने एक सामुदायिक हिंसा का रूप ले लिया|एक जिले से दूसरे जिले, दूसरे से तीसरे जिले पहुँचते इस हिंसा को समय नहीं लगा| 80 से अधिक लोग मारे गये तीन लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गये| प्रशासन के कुछ समय तक बेखबर रहने का परिणाम यह हो सकता है , शायद ! प्रशासन ने भी नहीं सोचा होगा| राज्य प्रशासन ने पहले अपने से स्थिति संभालने की पूरी कोशिश की,जब स्थिति काबू से बाहर हो गई तब उसने सेना से मदद की गुहार लगाई | सेना भी औपचारिकता पूरी करने लगी| जिससे हिंसा का मुँह और फैलता गया| सेना द्वारा काफी मशक्कत के बाद स्थिति पर काबू पा लिया गया|हिंसा के दौरान बेघर हुये लाखों लोगों को सरकार ने राहत शिविरों में शरण दी फिर भी लोगो के अंदर खौफ था| एक राहत शिविर में लगभग तीस हज़ार लोग शरण लिए हुए थे| प्रशासन ने उनके खाने पीने का इंतजाम तो किया लेकिन इसके अलावा लोगो को बिजली ,सफाई ,शौचालय,स्वास्थ्य कर्मी आदि की जरुरत होती है जो कि नहीं के बराबर थी| एक तरह से कहे तो स्थिति बद से बदतर हो चुकी थी| राहत शिवरों में महिलाओं और बच्चों की स्थिति और भी ज्यादा खराब थी|प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह , यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी, विपक्ष नेता एल. के. आडवाणी,आदि ने भी प्रभावित क्षेत्रो का दौरा किया , पर परिणाम कुछ भी नहीं निकला|इसे आप क्या कहेंगे ?

शिविरों में बदहाल स्थिति के बावजूद हिंसा से प्रभावित लोगों के अंदर दहशत इस तरह व्याप्त थी कि वे शिविर छोड कर जाने को तैयार नहीं थे| सरकार ने पुनर्वास का ढाढस बंधा कर मना तो लिया लेकिन उनके अंदर बसी दहशत को कैसे निकालेगी यह विचारणीय है ?

बोडो और गैर बोडो के बीच हिंसा लड़ाई झगडे का सिलसिला तो आज़ादी के बाद ही प्रारंभ हो गया था |इसका मुख्य कारण है ,पडोसी देश (बंगलादेश )से लोगों का आना |जिससे बोडो समुदाय के लोगों को लगता है कि हमे इससे नुकसान है|लगे भी क्यों नहीं ?क्योंकि उस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति जस की तस है लेकिन सामाजिक स्थिति में बदलाव आ गया| केन्द्र या राज्य सरकार ने भी कभी इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं उठाया जिसका खामियाजा आज हर पूर्वोत्तरवासी को झेलना पड़ रहा है|

कोकराझाड की हिंसा का विरोध सबसे पहले मुंबई के आजाद मैदान से कुछ मुस्लिम संघठन द्वारा 11 अगस्त को दिए गये भड़काऊ भाषण से शुरू हुआ और यहीं से उपद्रव शुरू हुआ |उपद्रवियों ने दुकानों के शीशे तोड़े,अन्य वर्गों के लोगों के साथ बदसलूकी की , शहीदों के समाधि स्थलों पर तोड़-फोड़ की , मीडिया की ओवी वैन को जला दिया गया|आजाद मैदान में इतने लोगो की भीड़ जमा होगी , इसकी जानकारी ना तो खुफिया एजेंसी को थी, और ना ही प्रशासन को| ये सोचने वाली बात है? मुंबई में हुए विरोधाभाषी प्रदर्शन के बाद चेन्नई ,बेंगलुरु, आन्ध्र-प्रदेश में मैसेज ,ई-मेल आदि के द्वारा पूर्वोत्तर के लोगो को डराया गया|साइबर क्राइम के बढ़ते कदम का एक और उदाहरण इन घटनाओं से उभर कर आया है |क्यूं नहीं आज तक इस पर नियंत्रण किया गया? जिससे पूर्वोत्तर के लोग अपने घर जाने को मजबूर हो गये अभी तक कई शहरो से लगभग 25000 लोग पलायन कर चुके है | हिंसा की आग युवा मुख्यमंत्री के नाम से प्रसिद्ध अखिलेश यादव के राज्य यू पी में भी भड़की| लखनऊ,कानपुर ,इलाहबाद आदि शहरों में प्रदर्शनकारियों द्वारा उपद्रव मचाया गया|

आन्ध्र-प्रदेश ,बेंगलोर,चेन्नई आदि जगहों से पलायन करने वाले अधिकतर लोग सेवा क्षेत्र(एयर लाइन ,होटल स्पा आदि )में काम करने वाले थे जिससे सेवा कंपनी को काफी नुकसान हो रहा है|पढने वाले छात्र अपनी पढाई छोड कर अपने घर जाने को मजबूर हो गये है |अफवाह पर नियंत्रण नहीं कर पाने से हमारी साइबर शक्ति के आलावा लोकतांत्रिक शक्ति का भी खुलासा हो गया है|अभी तक प्रशासन का हर कदम नाकामी भरा रहा है | सरकार का कहना है कि यह अफवाह पाकिस्तान की तरफ से फैलायी गयी है |यह अगर पाकिस्तान प्रायोजित अफवाह है तो भारतीय खुफिया एजेंसी को क्यों नहीं पता चला ? अगर पता था तो समय रहते प्रशासन को अलर्ट क्यों नहीं किया गया?

सोशल नेटवर्किंग साईट , एस.एम.एस. , आदि द्वारा फैलायी गयी अफवाह को और नहीं भडकने देने के लिए प्रशासन ने साईट कि निगरानी शुरू कर दी है और एक मोबाइल ग्राहक को 24 घंटे में मात्र पांच एस.एम.एस. भेजने की अनुमति दी गयी है |जिससे आम आदमी को नुकसान तो हो ही रहा है साथ-साथ दूरसंचार कंपनी को भी करोडो का नुकसान हो रहा है| जिसका असर हमारी आर्थिकी पर पड़ रहा है|

एक जिले की आग किसी ना किसी तरह से देश के हर लोगों को नुकसान पहुचायेगी|इसका अंदाजा शायद ही किसी को था|

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here