हिंदुत्व के, एक योद्धा का महाप्रयाण|

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हिंदुत्व के, एक योद्धा का महाप्रयाण|

—गौरांग वैष्णव

जैसे जैसे विष्णुभाई पटेल जी के महाप्रयाण का समाचार मेरी अंतश्चेतना में उतरते गया, सोच में पड गया, कि, क्यों मुझे उनसे इतनी निकटता का अनुभव हुआ करता था? इस पत्र द्वारा, कुछ सांत्वना पाने हेतु ही, लिख रहा हूँ, कि, अब उनका दैहिक व्यक्त स्वरूप हम कभी देख नहीं पाएंगे।

 

पहला परिचय, विष्णुभाई से मेरा, नवम्बर १९८६ में,हुआ था; जब वि. हिं. परिषद, अमरिका की, कार्यकारिणी की वार्षिक बैठक ट्रॉय के भारतीय मन्दिर में सम्पन्न हुयी थी। वे उसी समय, वि. हिं. प. में रूचि लेकर, त्वरित सदस्य भी बने थे।

संध्या-मिलन के समय, उन्हों ने, उनकी बार बार स्फुलिंगो की बौछार करने वाली विशिष्ट भाषण शैली से, और समसामयिक हिंदु समस्याओं के हल पर अपने वेधक विचारों से , सभीका ध्यान खिंच लिया था।

पश्चात के, वर्षों में उनसे अनेक बार, अनेक आयोजित कार्यक्रमों के अवसर पर, मिलना हुआ, मित्रता भी बढती गयी; परंतु ,हमेशा मुझे उन्होंने अपने मुक्त विचारों से एवं निर्भीकता से, प्रभावित किया ।

१९९५ में वे वि. हिं. प. अमरिका के, संवर्धक(Patron) सदस्य भी बने.

१९९५ के डिसम्बर में विष्णुभाई, स्व. चंद्रकान्त भाई पटेल, और मैं, साथ साथ विश्व संघ शिविर के लिए, वडोदरा के निकट के एक गाँव गए थे, जहाँ शिविर आयोजित किया गया था।

शिविर के, उन पाँच दिनो में उन्हों ने वहाँ की, सारी कार्यवाही सूक्ष्मता पूर्वक देखी, आकलन की, वार्तालाप सुने, प्रतिष्टित संघाधिकारियों के बौद्धिक सुनें, विदेशों के वृत्तान्त आकलन किए; संवाद और चर्चाएं; सब कुछ सुना। पर, सभी कार्यवाही से उन्हों ने दिखाउ विनम्रता एवं अनुशासन हेतु , चुपचाप सहमति नहीं दर्शायी।

और भी कुछ घटने वाला था, उसके बाद वाले शिविर में; जो २००० में जो मुम्बई निकट के एक उपनगर, भायंदर में आयोजित था।

उस शिविर में, उस समय के, गुजरात के मुख्य मन्त्री केशुभाई पटेल, एक विशेष सत्र में वक्ता थे।

जब उन्हों ने,अपने भाषण में, अपने शासन की उपलब्धियों को चमका चमका कर मुखरित करना प्रारंभ ही किया, कि, विष्णु भाई तडाक से,ऊठ खडे हुए, सभी का ध्यान, उनकी ओर खिंच गया;वे केशु भाई की ओर ताक कर बोले, कि उन के शासन में घोर भ्रष्टाचार है।शब्द सुनते ही,पंडाल में, सन्नाटा छा गया।

केशु भाई आरोप को, उनके विरोधकों की कुटिल चाल बताकर, टालने का प्रयास करने लगे। विष्णुभाई भी, एक बाघ जैसे गर्ज रहे थे, वे उसी गुजरात के चरोतर क्षेत्र से आते थे, जहाँ पर, सरदार पटेल की जन्मस्थली है, अपना स्वर ऊंचा ऊठा कर उन्हों ने केशुभाई को उनके मुंह पर,जूठे घोषित किया।अपने पास के पर्याप्त पुष्टि और प्रमाणों का उल्लेख किया।

विष्णुभाई एक गाँव में, शाला स्थापित करना चाहते थे, जिस के लिए, उन से बडी राशि माँगी गयी थी। वे उस शाला का, सारा खर्च भी उठानेवाले थे।

विफलता के कारण, केशुभाई लडखडाते रहे, शब्द टटोलते रहे, पर विष्णुभाई ने उनका पिछा नहीं छोडा।

बहुत तनाव भरा दृश्य था वह,जब एक राजनेता को समस्त प्रवासी भारतियों के मध्य,अपनी प्रतिष्ठा भंग होती देखने को बाध्य होना पडा।सभी के सामने अपनी तुच्छता का दर्शन करने विवशता का अनुभव हुआ।

पिछले कुछ वर्षों में उनका स्वास्थ्य गिर रहा था, पर वे अपना उत्साह सदा की भाँति अक्षुण्ण रख पाए थे।

२००७ के मई में, चिकागो में, अनेक हिंदु संस्थाओं ने मिलकर एक विशाल निदर्शन आयोजित किया था; जो, उस समय के, आंध्र के मुख्य-मन्त्री, स्व. Y S R रेड्डी के विरोध में आयोजित हुआ था। Y S R रेड्डी ने लाखों हिंदुओं के धर्मांतरण में कुटिल भूमिका निभायी थी; जो खुलकर सामने आ गई थी। उनकी ऐसी अन्यायी राष्ट्र द्रोही,भूमिका के विरोध में, एवं उनके तिरुपति के परिसर की भूमि का अनधिकार ग्रहण करवाने के,विरोध में, एक भव्य निदर्शन आयोजित किया गया था।

विष्णुभाई, डिट्रॉइट से चिकागो का प्रवास, अपने साथियों का जथ्था, ले कर, अपने बिगडते स्वास्थ्य की तनिक भी चिन्ता ना करते हुए, उस निदर्शन में सम्मिलित हुए थे। गिरते स्वास्थ्य के उपरान्त, आपने उस निदर्शन में, अंत तक, घंटो, खडे रहकर भाग लिया। यह था, उनका लक्ष्य के प्रति कटिबद्धता, और समर्पण का भाव।

फिर, मैं उनसे मिलने गया २००८ में। ”बृहद अमरिका के, सभी मंदिर संचालकों का २००८ का सम्मेलन ” डिट्रॉइट में सम्पन्न होने जा रहा था। वहां के भारतीय मंदिर ने ही, उस सम्मेलन के निमंत्रक के नाते सारी व्यवस्था का भार संभाला था। वि. हिं. परिषद की, केन्द्रीय कार्यकारिणी से, उन्हें इसकी स्वीकृति भी मिल चुकी थी। उसके पूर्व नियोजन और व्यवस्थापन की दृष्टिसे मैं डिट्रॉइट गया , तो उनसे सहज भेंट करने, मिलने भी पहुंच गया। उस समय ही, आपने बताया, कि ,अब वे कुछ समय के ही महिमान हैं, और उन की, अधिक समय, जीवित रहने की अपेक्षा नहीं है। कारण, न उनका हृदय, ठीक काम कर रहा था, न उनके गुर्दे साथ दे रहे थे।

मैं कुछ विषण्ण और निराश होकर ही लौटा था, इस विचार से, कि शायद उन्हें अब नहीं देख पाऊंगा। सौभाग्य से उन्हों ने उस समय उन व्याधियों से सफलता पूर्वक कडी टक्करें ली, तथा उसके अनंतर भी, उनसे कई स्मरणीय भेंटे हो पायीं।

इन भेंटों में, मैं ने उनके द्वारा, भारत में चलाए जाने वाले, अनेक विस्तृत सेवा कार्यों को जान पाया ।

वे न अपना शंख बजाते थे, न उन्हें नाम, या प्रसिद्धि की कामना ही थी।

वे इस दृष्टि से, एक सच्चे कर्मयोगी ही माने जाएंगे।

आज व्यवहार में, जहाँ, सभी कूटनैतिक दृष्टि से सही प्रमाणित होना चाहते हैं, वहाँ, विष्णुभाई, जो विष्णुदादा के नामसे जाने जाते थे, सारी रूढ औपचारिकताओं से दूर,अलग थलग खडे हुए पाता हूँ।

वे शब्दों की काट छाट करते नहीं थे, और आप के मुंह पर, खरी खरी सुनाने में, और स्पष्ट वक्तव्य देने में, वे डरते नहीं थे; फिर जो होना हो, सो हो।

अपने ठोस प्रमाणों को ठीक जानते थे, और उनका आवेश उनके शब्दों से ही प्रकट हो जाता था।

उन्हें न पहचानने वाला, उनकी ऐसी शैली से, अवश्य, कुछ अस्वस्थता अनुभव कर सकता था, पर उन्हें पहचानने वाले जानते थे, कि वे एक संवेदनशील हृदय रखते थे, जिस में किसी के, द्वेष के लिए जगह थी नहीं।

जैसे सरदार पटेल एक विरली व्यक्ति ही थी, जो विरला ही जन्म लेती हैं, विष्णुदादा भी एक ऐसे ही अनोखी और विरली व्यक्ति थी।

वे एक निडर नेता थे, किसी से क्षमा माँगने में विश्वास करने वाले हिंदु-नेता नहीं थे, यही उनकी छवि, उन सभी मित्रों के हृदय में जगह बनाये हुयी है, जिन जिनके सम्पर्क में वे अपने दीर्घ, जन जीवन में आए थे।

मैं ने एक प्रेरणा स्रोत खोया है, जिससे हमेशा प्रेरणा लेता रहा था, जब जब भी मैं किसी हिंदु हित के लिए लडता रहता था।

अब ऐसे विरला व्यक्तिमत्व जन्माए नहीं जाते।

विष्णु भाई, आपने अनथक, अविराम काम किया है; अब समय आ गया है, परमात्मा के चरण कमलो में, विश्राम का।

परमात्मा आपको चिर शांति प्रदान करें।

अनुवाद: मधुसूदन

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