अपने डेथ- वारंट पर हस्ताक्षर कौन करेगा !

प्रो  ए. डी. खत्री

मेरा प्रश्न अजीब लग सकता है परन्तु इसका उत्तर ढूंढना ही होगा . आजकल आन्दोलनों का बाजार गर्म है . बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के आंदोलनों से देश आंदोलित हो रहा है . अन्ना जी चाहते हैं ऐसा लोकपाल बिल जो भ्रष्टाचार करने पर पटवारी से लेकर कैबिनेट सचिव तक और पंच से लेकर प्रधानमंत्री तथा उच्चतम न्यायालयों के जजों को फांसी पर लटका सके अथवा आजीवन कारावास की सजा दे सके . यदि गणितीय प्रमेय के आधार पर व्याख्या करें , तो यह मांग इसलिए उठाई गई है कि नीचे से ऊपर तक सब भ्रष्टाचार में लिप्त हैं .सारे सांसद भी लिप्त हैं , मंत्री भी लिप्त हैं . मान लिया सचमुच में सारे मंत्री लिप्त हैं . यदि ये बिल पास करवाएंगे तो सबसे पहले फंदे में लटकने का सौभाग्य भी इन्हीं को मिल सकता है . यदि ये अपना प्रायश्चित करने के लिए लटकने को तैयार भी हो जाएँ तो क्या बाकी लोग भी तैयार हो जायेंगे ? और अनेक भ्रष्टाचारी सांसद जिन्हें इस बिल को पास करना है, भी अपने डेथ -वारंट को स्वीकार कर लेंगे ? सभी कहेंगे कि यह शत प्रतिशत असंभव है . तो फिर अन्ना हजारे के लोकपाल बिल का क्या होगा ! यदि वे समझते हैं कि वे पटाकर , बहलाकर , फुसलाकर , धमकाकर मंत्रियों से अपनी बात मनवा लेंगे और वे इसमें सफल भी हो गए तो क्या लोकपाल का जन्म हो जायगा !उसको जन्म देने वाले सांसद पहले ही इसकी भ्रूण हत्या कर देंगे और अभी जो राजनीतिक व्यक्ति कूद- कूद कर उनका समर्थन कर रहें हैं सबसे पहले इसके विरोध में खड़े हो जायेंगे .

बाबा रामदेव काले धन , विदेशों में जमा अवैध धन और भ्रष्टाचार के लिए आमरण अनशन पर हैं . जो कानून बनाने वाले हैं और जो बनवाने वाले हैं , उन्ही का पैसा विदेशों में जमा है . वे उसे राष्ट्रीय संपत्ति मानते , तो धन विदेशों में ही क्यों ले जाते ? पता नहीं किस -किस के हिस्से का धन बड़ी मेहनत से लूट कर उन्होंने अकूत संपत्ति बनाई होगी . वे कानून बना कर या बनने दे कर कंगाल होना चाहेंगे या फांसी पर लटकना चाहेंगे ? समाज में खोमचे वालों तथा परचून वालों से लेकर महान व्यवसायी, उद्योगपति तक नंबर दो का पैसा कमाने और उसे सहेज कर रखने में व्यस्त हैं . इसलिए ऐसी मांग रखना जो कभी पूरी ही न हो सके और उसके लिए आमरण अनशन करना सर्वथा आधारहीन एवं अनुचित है . जैसे किसी डाकू से सामना हो जाये , वह हमला कर देता है, किसी चोर को भागने का मौका न दें तो वह हमला कर देता है , किसी गुंडे- लुटेरे को लूटने से मना करें तो वह हमला कर देता है , किसी डान के क्षेत्र में कोई दूसरा वसूली करने लगे तो वह जान लेवा हो जाता है , वैसे ही बाबा के तम्बू में आधी रात में सोते हुए लोगों पर पुलिसिया लूट संपन्न हुई . बाबा को इसे भली भांति समझना चाहिए और ऐसी मांग नहीं करनी चाहिए जो संभव न हो या उन लोगों से नहीं करनी चाहिए जो इसके लिए सक्षम न हों . बाबा जी के विचार उत्तम हैं , राष्ट्र हित के प्रयास भी प्रशंसनीय हैं , परन्तु उनके क्रियान्वयन का ढंग सही नहीं है . मेरी बात समक्ष रख कर बाबा जी और अन्ना हजारे लोगों से पूँछें कि उसमें कितने प्रतिशत गलत है . यदि सभी लोग इसे सत्य माने तो वे उतना ही दबाव बनाएं जितना सामने वाला सह सके तथा व्यावहारिक रूप से कोई क़ानून बन सके . गांधीजी ने भी आन्दोलन किये परन्तु कभी ऐसी जिद नहीं की . वे अंग्रेजों को थोड़ा – थोड़ा कर के मनाते गए .गाँधी जी क्रमिक परिवर्तन की दिशा में बढ़ते गए . सन १९४२ के ‘भारत छोड़ो ‘ आन्दोलन में भी उन्होंने सहजता का परिचय दिया . उसके ५ वर्ष बाद देश आजाद हुआ . राष्ट्रीय आंदोलनों में उन्होंने कभी अहम् को नहीं आने दिया . असफलता के पश्चात वे पुनः चिंतन करते और नवीन पथ खोजकर आगे बढ़ते गए . क्या बाबा रामदेव और अन्ना हजारे ऐसा नहीं कर सकते ? यदि उनके ये आन्दोलन उनकी जिद्द के कारण बिना किसी परिणाम के समाप्त हो गए तो इससे समाज की अपूरणीय क्षति होगी और आर्थिक अपराध सीना तान कर होने लगेंगे .

 

2 COMMENTS

  1. सच पूछिए तो यह राजनीति करने वालों के सम्पूर्ण वर्ग के लिए इधर कुआँ उधर खाई वाली परिस्थिति है,पर इस माहौल में जनता का कर्त्तव्य हो जाता है की वह इस वर्ग को ऐसा मजबूर कर दे जिससे उनको विष पान के लिए तैयार होना ही पड़े

  2. आपकी बात सही ही सही पर किया क्या जाये ? चुपचाप बैठे रहें ? वैसे बाबा व्यवस्था परिवर्तन की बात कर रहे हैं .वर्तमान व्यवस्था चलने दी जाये ? गांधीजी के भी कई आन्दोलन विफल हुए थे और कई बार आपकी तरह उस वक्त भी चूका मन लिया था .यह लम्बी क्रांति यात्रा के कुछ शुरुवाती पड़ाव भर हैं ,जो जन जागरण तो कर ही रहे हैं .

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