जब देशभक्ति भी बोझ बन जाए ?
संजय द्विवेदी
आजादी छः दशकों ने आखिर हमें क्या सिखाया है ? हम राष्ट्र, एक जन का व्यवहार भी नहीं सीख पा रहे हैं। लोकतंत्र की अतिवादिता तो हमने सीख ली है किंतु मर्यादापूर्ण व्यवहार और आचरण हमने नहीं सीखा। वाणी संयम की बात तो जाने ही दीजिए। यूं लगता है कि देशभक्ति, देश की बात करना और कहना ही एक बोझ बन गया है। देश के हालात तो यही हैं कि कुछ भी कहिए शान से रहिए। क्या दुनिया का कोई देश इतनी सारी मुश्किलों के साथ सहजता से सांस ले सकता है। शायद नहीं, पर हम ले रहे हैं क्योंकि हमें अपने गणतंत्र पर भरोसा है। यह भरोसा भी तब टूटता दिखता है जब संवैधानिक पदों पर बैठे लोग ही अलगाववादियों की भाषा बोलने लगते हैं। बात जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर फारूख की हो रही है जिनका कहना है कि गणतंत्र दिवस पर भाजपा श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा न फहराए क्योंकि इससे हिंसा भड़क सकती है। आखिर एक मुख्यमंत्री के मुंह से क्या ऐसे बयान शोभा देते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर लालचौक में तिरंगा फहराने से किसे दर्द होता है। उमर की चेतावनी है कि इस घटना से कश्मीर के हालात बिगड़ते हैं तो इसके लिए भाजपा ही जिम्मेदार होगी। निश्चित ही एक कमजोर शासक ही ऐसे बयान दे सकता है। हालांकि अपने विवादित बयानों को लेकर उमर की काफी आलोचना हो चुकी है किंतु लगता है कि इससे उन्होंने कोई सबक नहीं सीखा है। वे लगातार जो कह और कर रहे हैं उससे साफ लगता है कि न तो उनमें राजनीतिक समझ है न ही प्रशासनिक काबलियत। कश्मीर के शासक को कितना जिम्मेदार होना चाहिए इसका अंदाजा भी उन्हें नहीं है। आखिर मुख्यमंत्री ही अगर ऐसे भड़काऊ बयान देगा तो आगे क्या बचता है। सही मायने में उमर अब अलगाववादियों की ही भाषा बोलने लगे हैं। एक आजाद देश में कोई भी नागरिक या समूह अगर तिरंगा फहराना चाहता है तो उसे रोका नहीं जाना चाहिए। देश के भीतर अगर इस तरह की प्रतिक्रियाएं एक संवैधानिक पद पर बैठे लोग कर रहे हैं तो हालात को समझा जा सकता है। उमर, भारत में कश्मीर के विलय को लेकर एक आपत्तिजनक टिप्पणी कर चुके हैं ऐसे व्यक्ति से क्या उम्मीद की जा सकती है? देश के भीतर तिरंगा फहराना आखिर पाप कैसे हो सकता है? देश के राजनीतिक दल भी भारतीय जनता युवा मोर्चा के इस आयोजन में राजनीति देखते हैं तो यह दुखद ही है। आखिर तिरंगा अगर किसी राजनीति का हिस्सा है तो वह देशभक्ति की ही राजनीति है। किंतु इस देश में तमाम लोगों को भारत माता की जय और वंदेमातरम की गूंज से भी दर्द होता है, शायद उन्हीं लोगों को तिरंगे से भी परेशानी है। आखिर क्या हालात है कि हम अपने राष्ट्रीय पर्वों पर ध्वजारोहण भी अलगाववादियों से पूछकर करेगें। वे नाराज हो जाएंगें इसलिए प्लीज आज तिरंगा न फहराएं। क्या बेहूदे तर्क हैं कि बड़ी मुश्किल से घाटी में शांति आई है। चार लाख कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा, अनेक उदारवादी मुस्लिम नेताओं की हत्याएं की गयीं, अभी हाल तक सेना और पुलिस पर पत्थर बरसाए गए और आज भी सेना को वापिस भेजने के सुनियोजित षडयंत्र चल रहे हैं। आप इसे शांति कहते हैं तो कहिए पर इससे चिंताजनक हालात क्या हो सकते हैं? अगर तिरंगा फहराने से किसी इलाके में अशांति आती है तो तय मानिए वे कौन से लोग हैं और उनकी पहचान क्या है।
पाकिस्तान के झंडे और “गो इंडियंस” का बैनर लेकर प्रर्दशन करने वालों को खुश करने के लिए हमारी सरकार सेनाध्यक्षों के विरोध के बावजूद आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट में बदलाव करने का विचार करने लगती है। सेनाध्यक्षों के विरोध के बावजूद आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट में बदलाव की गंदी राजनीति से हमारे सुरक्षाबलों के हाथ बंध जाएंगें। हमारी सरकार इस माध्यम से जो करने जा रही है वह देश की एकता-अखंडता को छिन्न-भिन्न करने की एक गहरी साजिश है। जिस देश की राजनीति के हाथ अफजल गुरू की फांसी की फाइलों को छूते हाथ कांपते हों वह न जाने किस दबाव में देश की सुरक्षा से समझौता करने जा रही है। यह बदलाव होगा हमारे जवानों की लाशों पर। इस बदलाव के तहत सीमा पर अथवा अन्य अशांत क्षेत्रों में डटी फौजें किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकेंगीं। दंगों के हालात में उन पर गोली नहीं चला सकेंगीं। जी हां, फौजियों को जनता मारेगी, जैसा कि सोपोर में हम सबने देखा। घाटी में पाकिस्तानी मुद्रा चलाने की कोशिशें भी इसी देशतोड़क राजनीति का हिस्सा है। यह गंदा खेल,अपमान और आतंकवाद को इतना खुला संरक्षण देख कर कोई अगर चुप रह सकता है तो वह भारत की महान सरकार ही हो सकती है। आप कश्मीरी हिंदुओं को लौटाने की बात न करें, हां सेना को वापस बुला लें।क्या हम एक ऐसे देश में रह रहे हैं जिसकी घटिया राजनीति ने हम भारत के लोगों को इतना लाचार और बेचारा बना दिया है कि हम वोट की राजनीति से आगे की न सोच पाएं? क्या हमारी सरकारों और वोट के लालची राजनीतिक दलों ने यह तय कर लिया है कि देश और उसकी जनता का कितना भी अपमान होता रहे, हमारे सुरक्षा बल रोज आतंकवादियों-नक्सलवादियों का गोलियां का शिकार होकर तिरंगें में लपेटे जाते रहें और हम उनकी लाशों को सलामी देते रहें-पर इससे उन्हें फर्क नहीं पड़ेगा। किंतु अफसोस इस बात का है कि गणतंत्र को चलाने और राजधर्म को निभाने की जिम्मेदारी जिन लोगों पर है वे वोट बैंक से आगे की सोच नहीं पाते। वे देशद्रोह को भी जायज मानते हैं और उनके लिए अभिव्यक्ति के नाम पर कोई भी कुछ भी कहने और बकने को आजाद है। कश्मीर में पाकिस्तानी झंडे लेकर घूमने से शांति और तिरंगा फहराने से अशांति होती है – शायद छः दशकों में यही भारत हमने बनाया है। ऐसे में क्या नहीं लगता कि देशभक्ति भी अब एक बोझ बन गयी है शायद इसीलिए हमारे संविधान की शपथ लेकर बैठे नेता भी इसे उतार फेंकना चाहते हैं। कश्मीर का संकट दरअसल उसी देशतोड़क द्विराष्ट्रवाद की मानसिकता से उपजा है जिसके चलते भारत का विभाजन हुआ। पाकिस्तान और द्विराष्ट्रवाद की समर्थक ताकतें यह कैसे सह सकती हैं कि कोई भी मुस्लिम बहुल इलाका हिंदुस्तान के साथ रहे। किंतु भारत को यह मानना होगा कि कश्मीर में उसकी पराजय आखिरी पराजय नहीं होगी। इससे हिदुस्तान में रहने वाले हिंदु-मुस्लिम रिश्तों की नींव हिल जाएगी और सामाजिक एकता का ताना-बाना खंड- खंड हो जाएगा। इसलिए भारत को किसी भी तरह यह लड़ाई जीतनी है। उन लोगों को जो देश के संविधान को नहीं मानते, देश के कानून को नहीं मानते उनके खिलाफ हमें किसी भी सीमा तक जाना पड़े तो जाना चाहिए।
खतरा: लाल बत्ती, लाल झंडी दिखाना चाहता हूं।
(१)चीन तिब्बत जाकर भी अपना झंडा बल पूर्वक फहरा आया, तो क्या हम अपने कश्मीर में
तिरंगा नहीं फहरा सकते?
(२) जिस कूटनीति के आधारपर सोचना हो, सोचिए; पर कश्मीर सीमापर होनेसे हमारे लिए अति महत्व रखता है। कश्मीर गया, तो भारत जाने का रास्ता सुकर बन जाएगा।
(३) जैसे पाकीस्तान का अस्तित्व स्वीकारने से समस्याएं, आतंक, लडाइयां, इत्यादि सहते आए हैं। यह क्यों हुआ? इस लिए कि विभाजन स्वीकृत किया। और नहीं तो क्या?
(४) कश्मिर समस्या के मच्छर को मारने के लिए अब हथौडा ही चाहिए। और क्षेत्रीय आपातकाल घोषित कर काम तमाम करना चाहिए। नहीं तो भारी पड सकता है।
(५) तिरंगा ना फहराओ! तो क्या हरा फहराए?
(६) देशकी एकात्मकता के लिए सारा देश यह निर्णय करेगा। कल आपका दाहिना हाथ कहेगा कि मैं अलग होना चाहता हूं। तो क्या आप उसे अलग होने देंगे? इसे अंगागी भाव कहते हैं। किसी भी अंग को ऐसी स्वतंत्रता नहीं, कि अन्य सभी अंगोंसे मुक्त हो सके।
(७) सुरक्षा की दृष्टिसे कश्मीर बहुत बहुत क्रीटीकल स्थिति में है। ढीली ढुलमुल नीति के फल भारत के लिए एक ऐसी सडन पैदा करेंगे, जिसके कारण आने वाले कल को “भारतके जीवम मरण का प्रश्न” खडा हो सकता है।समय चला ही गया है, अब तो चेतिए।
देश में कठपुतली प्रधानमंत्री बेठा हो तो यह सब होना कोई बड़ी बात नहीं है.जब तक देश में कोई दमदार व राष्ट्रभक्त प्रधानमंत्री नहीं आयेगा तब तक राष्ट्र विरोधियों के होसले बुलंद ही रहेंगे.देश की जनता का भी नैतिक दायित्व बनता हे की देश की एकता को अक्षुण रखना है तो राष्ट्रीय विचारधारा वाली मजबूत पार्टी को ही सत्ता में लाने के लिए प्रयास\ करें व सहयोग देवे.
सही कहा संजय जी .तिरंगा झंडा हमारी राष्ट्रीयता का-आजादी ,लोकतंत्र ,धर्म- निरपेक्षता और भारतीयता का प्रतीक है ;हम अपने देश में अकेले कश्मीर ही क्यों चाहे जहां उसे फहराने के लिए यदि आजाद नहीं तो ये आजादी अधूरी है .तिरंगा झंडा सिर्फ तीन रंगों के गज भर टुकड़े का नाम नहीं यह भारत राष्ट्र की उस अवधारणा का जीवंत देव्त्क है ;जिसे आजदी के दौरान स्वाधीनता सेनानि इन शब्दों में व्यक्त किया करते थे …
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ,झंडा ऊँचा रहे हमारा .
प्रेम सुधा वरसाने वाला ,वीरों को हरसाने वाला .
सदा शक्ति सरसाने वाला .मात्रभूमि का तन -मन -सारा .