नाक पकड़ ,सारी मत बोलो

आद्ध्या बोली,नाक पकड़ सारी मत बोलो दादाजी|

नियम कायदे नहीं जानते ,पोल न खोलो दादाजी|

कान पकड़कर ही तो सारी ,बोला जाता है हरदम,

किंतु ताज्जुब है दादाजी ,अक्ल आपमें इतनी कम|

अब तो कान पकड़कर सारी ,सबको बोलो दादाजी|

नियम कायदे नहीं जानते ,पोल न खोलो दादाजी|

नहीं थेंक यू अब तक बोला , कितने काम किये मैंने,

दिन भर घर में घूमा करते, लुंगी एक फटी पहने|

‘थेंक्स थेंक्स’ के मधुर शब्द ,कानों में घोलो दादाजी|

नियम कायदे नहीं जानते ,पोल न खोलो दादाजी|

जब जाता है कहीं कोई भी, बाय बाय टाटा कर‌ते|

कभी अचानक‌ मिले कोई तो ,उसको हाय हलो कहते|

नई सभ्यता अपना, अपना हृदय टटोलो दादाजी|

नियम कायदे नहीं जानते पोल न खोलो दादाजी|

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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