घर मेरा है नाम किसी का
और निकलता काम किसी का
मेरी मिहनत और पसीना
होता है आराम किसी का
कोई आकर जहर उगलता
शहर हुआ बदनाम किसी का
गद्दी पर दिखता है कोई
कसता रोज लगाम किसी का
लाखों मरते रोटी खातिर
सड़ता है बादाम किसी का
जीसस, अल्ला जब मेरे हैं
कैसे कह दूँ राम किसी का
साथी कोई कहीं गिरे ना
हाथ सुमन लो थाम किसी का
रिश्ता भी व्यापार
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रोटी पाने के लिए, जो मरता था रोज।
मरने पर चंदा हुआ, दही, मिठाई भोज।।
बेच दिया घर गांव का, किया लोग मजबूर।
सामाजिक था जीव जो, उस समाज से दूर।।
चाय बेचकर भी कई, बनते लोग महान।
लगा रहे चूना वही, अब जनता हलकान।।
लोक लुभावन घोषणा, नहीं कहीं ठहराव।
जंगल में लगता तुरत, होगा एक चुनाव।।
भौतिकता में लुट गया, घर, समाज, परिवार।
उस मिठास से दूर अब, रिश्ता भी व्यापार।।