ऑनर किलिंग और खाप पंचायत

– अखिलेश आर्येन्दु

खाप पंचायतों का केंद्र सरकार से हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 को बदलने के मांग को कानून मंत्री वीरप्पा मोइली द्वारा खारिज कर दिया गया। इसके बावजूद पंचायतें बराबर हरियाणा सरकार पर इस अधिनियम में बदलाव करने की मांग पर अड़ी हुई हैं। केंद्र सरकार का मानना है कि खाप पंचायतों की सगोत्रीय विवाह पर प्रतिबंध लगाने की मांग न तो तर्क संगत है और न ही समाज के लिए व्यावहारिक ही है। गौरतलब है खाप पंचायतें सगोत्रीय और प्रेम विवाह करने वाले जोड़ों को सदियों से जान से मार डालने का फरमान जारी करती आईं हैं। और हर साल सैकड़ों की तादाद में हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसे प्रेमी युगलों की हत्या कर दी जाती है। पंचायतों का मामना है कि एक ही गोत्र और एक ही गांव में प्रेम विवाह करना परंपरा के खिलाफ ही नहीं, अपराध भी है। पिछले 13 अप्रैल को सर्वजातीय खाप पंचायतों में हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सैकड़ों गांवों के पंचायतों के प्रतिनिधि इक्ठठे हुए और सगोत्र और प्रेम विवाह के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया लेकिन इसमें कोई सर्वसम्मति से निर्णय नहीं हो पाया था। फिर 2 मई को पंचायतों के प्रतिनिधि जुटे और आठ प्रस्ताव पारित किए गए। जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा में बदलाव और प्रेम और सगोत्र विवाहों को मान्यता न देना शामिल है। तब से लेकर अब तक पंचायतें हरियाणा सरकार और केंद्र सरकार पर अपनी मांगों को मानने पर दबाव बनाती रही हैं। लेकिन केंद्र सरकार ने इनकी सारी मांगों को अस्वीकार करते हुए इन पंचायतों के कार्यों पर ही सवाल खड़े कर दिए। लेकिन हरियाणा में पंचायतें अपनी मांगों को लेकर अड़ी हुई हैं। गौरतलब है करनाल न्यायालय ने बहुचर्चित मनोज-बबली हत्याकांड में पांच दोषियों को फांसी की सजा सुनाई हुई है जिसको रद्द करने की मांग भी पंचायत की ओर से उठती गई। हरियाणा में पहली दफा किसी जिला न्यायालय ने ऑनर किलिंग के अपराधियों को फांसी की सजा सुनाई जिसका केवल देश में ही सराहना नहीं हुई बल्कि विदेश में इसे एक ऐतिहासिक फैसला करार दिया गया।

ऑनर किलिंग की कुप्रथा महज भारत के कुछ तथाकथित विकसित राज्यों में ही नहीं प्रचलित है बल्कि यह बंगला देश, सूडान, इराक, इरान, मिश्र, फिलिस्तीन, ब्राजील, अर्जेंटीना, इजराइल, जार्डन, पाकिस्तान, तुर्की, सीरिया और लेबनान सहित दुनिया के कई देशों में प्रचलित है। जहां हजारों की तादाद में प्रेमी-युगलों की हत्या कर दी जाती है। संयुक्त राष्ट्र पॉपुलेशन फंड की रपट के मुताबिक हर वर्ष दुनिया में कम से कम 5 हजार से ज्यादा प्रेमी-युगल मौत के घाट उतार दिए जाते हैं।

ऑनर किलिंग के खिलाफ पंचायतों के कई बेतुके तर्क है। इन्हीं में गोत्र विवाह की अनुमति हिंदू स्मृतियों में भी नहीं दी गई है, का हवाला देना भी शामिल है। क्योंकि इससे होनी वाली संतान में दोष पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन देश के प्रख्यात वायरोलॉजिस्ट और नेशनल इस्टीटयूट ऑफ वायरोलाजी (एनआईवी) के पूर्व निदेशक डॉ. कल्याण बनर्जी पंचायतों की इस मान्यता को अवैज्ञानिक ठहराते हैं और इससे ऊपर उठकर इंसानियत के हित में कार्य करने की सलाह देते हैं। उनका मानना है गोत्र की जांच के बजाय स्त्री-पुरुष में जीन्स की अदला-बदली की जांच करनी चाहिए। इससे अनेक घातक थैलेसिमिया और कोएलिक होने की संभावना काफी कम हो जाती है। उनका यह तर्क भी उचित लगता है कि भारतीय समाज में कई समुदायों में सदियों से माता के वंश में शादियां होती रहीं हैं, लेकिन ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि होने वाली संताने दोषपूर्ण पैदा होती रही हैं। उदाहरण के तौर पर भृगुवंशी सदियों से अपने ही गोत्र में शादियां करते आ रहे हैं लेकिन ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि उनकी संताने दोषपूर्ण हों।

दरअसल, सगोत्रीय विवाह पर प्रतिबंध संतान के दोषपूर्ण होने के कारण नहीं स्मृतियों में लगाया गया है बल्कि इससे खून और जीन्स में बदलाव न होने से उच्च बुध्दिमान संतानें नहीं पैदा होती हैं, इसके कारण लगाया गया है। लेकिन इसके भी अपवाद रहे हैं। मुसलमानों में तो सगे दादा-चाचा में विवाह होना आम बात है। इसी तरह पंजाबियों में भी सगे मामा, फुफा के भाई बहनों में विवाह होने का आम प्रचलन है। इससे क्या उनमें दोष पैदा हो जाते हैं?

हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खाप पंचायतों का प्रचलन सदियों से रहा है। इनके जरिए अनेक सांस्कृतिक, धार्मिक, वैवाहिक, कृषि संबंधी, घरेलू, गांव संबंधी और दूसरे अनेक समस्याओं को निपटाने के कार्य किए जाते रहे हैं। समाज में इनकी हैसियत बहुत ही मायने रखती रही है। लेकिन सरकारी कानून की नजर में इनकी कोई हैसियत नही रही है। इनके जरिए किए गए फैसले मुसलमानी फतवे से किसी मायने में कम नहीं रहे हैं। और जो इसके फतवों के खिलाफ जाता है उसे गांव निकाला, जाति निकाला या मौत की सजा दी जाती रही हैं। एक ही गोत्र और प्रेम विवाह के मामले में तो मौत की ही सजा देने के फतवे जारी होते रहे हैं। अब जबकि समाज में हर स्तर पर बदलाव आया है और मान्यताएं तथा अनेक परंपराएं टूट रहीं हैं, ऐसे में पुरानी मान्यता और परंपरा को ढ़ोते रहना किस तरह उचित ठहराया जा सकता है? दूसरी बात गोत्र विवाह या प्रेम विवाह को इज्जत से जोड़कर देखना महज मूढ़ता और अहंकार के सिवा क्या कहा जा सकता है? जिन हिंदू धर्म-ग्रंथों का पंचायतें हवाला देती हैं उसी में युवा-युवती को अपने मन और इच्छा के मुताबिक प्रेम विवाह करने की खुली छूट दी गई है। अथर्ववेद में कहा गया है-जब युवा और युवती शिक्षा और विद्या हासिल कर चुके, तो वे अपनी इच्छा के मुताबिक गुण, कर्म और स्वभाव के अनुकूल अपने जीवन साथी का चुनाव कर लें। यदि विवाह में परिवार के लोग शामिल होते हैं तो बहुत अच्छा, अन्यथा संतान की इच्छा का मान रखते हुए उन्हें इजाजत दे देनी चाहिए। यानी एक भी मंत्र वेद में ऐसा नहीं आया है जिसमें प्रेम विवाह को नजायज ठहराया गया हो। इस लिए खाप पंचायतों का धर्म-ग्रंथों की दुहाई देना बकवास के सिवा कुछ नहीं है। अब तक कि खाप पंचायतों के जरिए किए जा रहे निर्णय विवाद के घेरे में आते जा रहे हैं इनकी प्रासंगिकता पर ही सवाल उठाए जाने लगे हैं। हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जन्मगत जाति प्रथा और ऊंचनीच का भेदभाव बहुत अधिक है, इसलिए प्रेम विवाह यहां कभी स्वीकार नहीं किए जाते हैं। जबकि इन दोनों इलाके के लोग खुद को ज्यादा एडवांस भी मानते रहे हैं। जाहिरातौर पर खुद को उच्च मानने की मानसिकता एक मूढ़ता से ज्यादा कुछ नहीं है। एडवांस तो वह होता है जो जमाने के मुताबिक अपनी मान्यताओं और धारणाओं में बेहिचक बदलाव के लिए तैयार रहता है। यदि खाप पंचायतें अपनी प्रांसगिकता बनाए रखना चाहतीं हैं तो जमाने के मुताबिक अपनी गलत मान्यताओं रूढ़ियों और परंपराओं में बदलाव लाना होगा। समाज सुधार का कार्य इस तरह से नहीं होता जैसा कि खाप पंचायतें करना चाह रही हैं। सामूहिक निर्णय ऐसे नहीं होने चाहिए कि जिससे इंसानियत का गला ही घोट उठे। यदि प्रेम विवाह अपराध है तो हर तरह के प्रेम पर खाप पंचायतों को प्रतिबंध लगा देना चाहिए, और खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों और दूसरे लोगों को अपराधी घोषित कर हर किसी से कू्ररता के साथ पेश होने की परंपरा डालनी चाहिए। खाप पंचचायतों के फरमान कितने घिनौने होते हैं इसके एक नहीं सैकड़ों उदाहरण हमारे सामने हैं। इसको देखते हुए केंद्र सरकार ने खाप पंचायतों को ही अप्रासंगिक ठहरा दिया है। इसी अपैल में राजस्थान के बाड़मेर जिले के भीमड़ा गांव की पंचायत ने एक प्रेमी युगल को विवाह विच्छेद करने का दबाव ही नहीं डाला बल्कि ऐसा न करने पर उन्हें 5 लाख रुपये का जुर्माना भरने का भी दंड दिया। इससे तंग आकर दोनों ने जिलाधिकारी से इच्छामृत्यु की इजाजत मांगी। जाहिर है पंचायतों के इस तरह के फैसले न केवल परिवारों को तोड़ने का कार्य करते हैं बल्कि आत्महत्या करने के लिए भी मजबूर करते हैं। इस लिए अब समय आ गया है कि यदि पंचायतों को जिंदा रहना है तो उन्हें अपनी पुरानी कार्यशैली को ही नहीं बदलना होगा बल्कि नए जमाने के मुताबिक खुद को ढालना भी होगा। तभी ऑनर किलिंग और दूसरी कू्रर समस्याओं को खत्म किया जा सकता है।

* लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकर और अनुसंधानकर्ता हैं।

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