अब इसमें दिग्विजय सिंह का क्या दोष!

-प्रवीण गुगनानी-
digvijay

कांग्रेस के घोषणापत्र में समलैंगिता को वैधानिक बनाने का वादा और इसके पूर्व कई बार भारतीय संस्कृति की उपेक्षा का इतिहास, दिग्विजय जैसे कई कांग्रेस नेताओं को उकसाता है! हाल ही में जब देश के सामने दिग्विजय-अमृता राय का प्रकरण उजागर हुआ, तब पूरा देश और मीडिया इनके सम्बंधों की चर्चा-आलोचना में लग गया. मैं इस विषय में दिग्विजय सिंह को कुछ छूट या सुबोध रूप से यह कहें कि कुछ कन्सेशन देना चाहता हूं तो पाठक गण इस लेख को नाराज होकर पढ़ना न छोड़े और वस्तुस्थिति को समझनें का प्रयास करें! स्वतंत्रता प्राप्ति और गुलामी की तंद्रा के बीच उठ रहा देश जब जवाहर लाल नेहरु और लेडी माउंट बैटन के प्रेम प्रकरणों को मजबूर होकर देख रहा था तब इन प्रकरणों की चर्चा परिवार में तो छोड़िये बैठकों में भी लोग दबी जबान और शर्मसार होकर करते थे। सामाजिक वर्जनाओं के घनघोर युग में सोशल मीडिया और अभिव्यक्ति के ऐसे साधन उस समय होतें तो निस्संदेह नेहरु को अवसाद ग्रस्त होकर स्वयं के जीवन के विषय में बहुत सारें विकल्पों पर गंभीरता से विचार करना पड़ता! कांग्रेस में नेहरु के बाद के छः दशकों में इस प्रकार के नेताओं की श्रंखला के अंतरिम मणि दिग्विजय सिंह इस नेहरूवादी सोच, पाश्चात्य प्रेम, भारतीय संस्कृति के नेहरु शैली के विरोध का ही तो परिणाम है. कांग्रेस की इस परम्परा को आगे बढ़ानें वाले दिग्विजय का क्या दोष ! देश को तब सोचना चाहिए था जब नेहरु ने कहा था कि “आई एम एक्सीडेंटली हिन्दू”! इस एक्सीडेंटली हिन्दू हो जाने की जवाहरी-कांग्रेसी सोच का ही परिणाम दिग्विजय और उन जैसे अनेकों कांग्रेस के नेता और कांग्रेस के घोषणा पत्र में समलेंगिकता की वकालत! ये सब अचानक नहीं हुआ, -एक सुदीर्घ इतिहास है भारतीय आदर्शों का मखौल उड़ाने और पाश्चात्यीकरण से भारतीय समाज को बीमार और पंगु बना देने की कांग्रेसी परम्परा का. मैं क्षमा चाहता हूं, कांग्रेस में मोहवश बने हुए उन कुछ चुनिन्दा नेताओं से जो हिंदुत्व और भारतीय परम्पराओं का पोषण की इक्छा तो रखतें हैं किन्तु कांग्रेस के पश्चिमी शैली के और आजकल तो केवल रोम की शैली में चल रहे नक्कार खाने में जिनकी तूती को कोई सून नहीं रहा. मैं उन चंद कांग्रेसी नेताओं से आग्रह करना चाहता हूं जो कांग्रेस के पोपकरण या पाश्चात्य संस्करण का विरोध करने वाले कांग्रेसी नेताओं से की, वे उठें और विरोध करें इन कुत्सित प्रयासों और बेहयाई नेताओं का! या स्वयं ही बाहर आ जाएं और उत्तम राजनैतिक विचारधारा के विकल्प की तलाश करें!

देश में चल रहे लोकसभा चुनावों के लिए देश के सबसे पुराने राजनैतिक दल कांग्रेस ने अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी किया, इस घोषणापत्र में जिस प्रकार समलैगिकता के अधिकार की बात लिखी गई हैं, वह भारतीय समाज को चिंता में डालने वाली और राष्ट्र के माथे पर बल डालने वाली है. भारतीय लोकतंत्र विश्व का सबसे पुराना और सबसे बड़ा लोकतंत्र है जिसकी ओर पूरा विश्व का लोकतांत्रिक इतिहास और वर्तमान आशा से देखता है, इसके आगे चलें तो मेरे जैसे धुर कांग्रेस विरोधी भी इस देश के लोकतांत्रिक इतिहास में कांग्रेस की भूमिका के महत्व को स्वीकारते हैं और स्वस्थ भारतीय लोकतंत्र के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय के साथ सांस्कृतिक चरित्र के बने रहने की कामना भी करते हैं! कांग्रेस विरोध में इस देश का कोई भी व्यक्ति यह कदाचित ही विस्मृत करता होगा कि कांग्रेस का अपना एक सुदृढ़ आधार –स्वस्थ परम्परा और संपन्न इतिहास रहा है. किन्तु लोकसभा चुनावों के लिए जारी घोषणापत्र में जिस प्रकार प्रगतिशीलता का दंभ भरते हुए जब कांग्रेस ने बड़ी ही बेशर्मी और बेहयाई से समलैंगिकता के अधिकार की वकालत की तब लगा कि कांग्रेस को अपने समृद्ध इतिहास और महान दिवंगत कांग्रेसी नेताओं के विचारों और स्वप्नों की कोई चिंता है ही नहीं! वर्तमान कांग्रेस ने अपने महान नेताओं में से यदि किसी को याद रखा है तो केवल लेडी माउंट बैटन वाले नेहरु को!

हाल ही में जब दिग्विजय अमृता का प्रकरण समाज के सामनें उजागर हुआ तब पूरे देश में लोग स्वाभाविक ही छिछि करने लगे ऐसी छिछि करने के अवसर देने वाले कांग्रेस के वे कोई पहले नेता नहीं है! नेहरु के बाद कांग्रेस में इस प्रकार का आचरण करने वालों की लम्बी पंक्ति है, जिनके नाम लिखे बिना भी वे पाठक समाज के बलात स्मरण में आ जायेंगे और मैं भी यहां उनके नाम लिखने की अरुचि को निभा लूंगा!

भारत में प्रति पांच वर्ष में होने वाले लोकसभा चुनाव एक आमूल चूल चिकित्सकीय परिक्षण की तरह ही होते हैं. इस परीक्षण में चिकित्सक कई बार उन बढ़ती मानसिक या शारीरिक बीमारियों का भी पता कर लेता है जो मरीज के भीतर पल-बढ़ रही होती है. अधिकांश अवसरों पर बीमार व्यक्ति को इन बीमारियों का पता नहीं होता यह मान लिया जाता है, किन्तु डॉक्टरों का स्पष्ट कहना होता है कि कोई बीमारी ऐसी नहीं होती जो आने से पहले शरीर की घंटी न बजाये और आने की पूर्वसूचना या चेतावनी न दे दे. यह हमपर निर्भर करता है कि हम इन संकेतों और घंटियों पर कितना मन-मानस से ध्यान दे पाते हैं. हाल ही में घटित दिग्विजय सिंह और अमृता राय का प्रकरण भी इसी प्रकार की एक घंटी है जो बज रही है और निरंतर बजती ही जा रही है किन्तु हमारा वर्तमान समाज उसे सून नहीं पा रहा है. मैं व्यक्तिगत निजता का घनघोर पक्षधर हूं किन्तु निजता का अधिकार शब्द से आप उतनी ही निज स्वतंत्रता ले सकते हैं जितनी की आपकी सामाजिक पृष्ठभूमि ने आपकी “निज” की परिधि तय की है. आजकल तो प्रत्येक राजनेता न जाने क्या क्या कर डालता है और फिर उस आचरण के लिखे पढ़े जाने को निजता का हनन बताकर बेचारा बनने का प्रयास करने लगता है.

ठीक इसी प्रकार का उदाहरण हमारे समाज और संस्कृति का भी है! समाज शास्त्रियों और समाज विज्ञानियों का स्पष्ट कहना होता है कि समाज में आने वाली या आ गई विकृतियां और पतन के दौर यूं ही नहीं आते वे आने के पहले छोटी-छोटी घंटियां नहीं, बल्कि चेतावनी के बड़े-बड़े घंटनाद और नगाड़े बजाते हुए आते हैं, किन्तु हम प्रगतिशीलता नाम के छद्म शब्द में इतना डूबें- मदमस्त और गौरवान्मत्त होते हैं कि इन सांस्कृतिक चेतावनियों को सुन ही नहीं पाते हैं. परिणाम वही होता है जो हम भुगतते आये हैं- मूल्यों का ह्रास- संस्कृति का क्षरण– रिश्तों में गिरावट– समाज का अधोपतन और अंत में राष्ट्र की गुलामी।

4 COMMENTS

  1. नेहरू का यह बयान कि आई एम एक्सीडेंटली हिंदु दरअसल उस मजबूरी का बखान है जिसके कारण उन्हें मुस्लिम होते हुए भी प्राण रक्षा के लिए हिंदु बनना पड़ा। इसके लिए लिंक अटैच्ड है जिसे जरूर पढ़ें

    https://nehrufamily.wordpress.com/

  2. बहुत दिनों के उपरान्त विचार एवं भाषा की दृष्टि से एक अच्छा उच्च कोटि का लेख पढ़ने को मिला। प्रबुद्ध लेखक एवं सम्पादक दोनों ही अत्यन्त बधाई के पात्र हैं। आभारी हैं हम उन दोनों के। धन्यवाद, अतिधन्यवाद।

    डा० रणजीत सिंह

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here