गीत कैसे बनाऊँ

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                                   बेसुरी सी ज़िन्दगी मे,

स्वर मै कैसे लगाऊँ।

गति ही जब रुक गई हो

ताल कौन सी बजाऊँ

वीणा के हैं तार टूटे,

साज़ सारे मुझसे रूठे,

संगीत को कैसे मनाऊँ,

आज गीत गा न पाऊँ,

कल शायद गुनगुनाऊँ।

इन्द्रधनुषी सात स्वर,

आज मै कहाँ से लाऊँ।

शून्य हों जब भावनायें,

दिखे ना संभावनायें,

हो अंधेरा ही अंधेरा,

सूर्य पे बादल का घेरा,

लेखनी अपनी उठाऊँ

कविता लिख तो ली है,

गीत इसे कैसे बनाऊँ

बेसुरी सी ज़िन्दगी मे,

स्वर मै कैसे लगाऊँ।

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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