कितना साकार हुआ स्‍वच्‍छ भारत का सपना

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आज का दिन राष्‍ट्रपिता को याद करने का एक अवसर प्रदान करता है । मोहनदास
करमचन्‍द गांधी एक समूचे दर्शन का नाम है, जिसकी ओर दुनियाभर में असंख्‍य
लोग आकर्षित हुए। हिंसा और मानव निर्मित घृणा से ग्रस्‍त दुनिया में
महात्‍मा गाँधी आज भी सद्भावना और शांति के नायक के रूप में अडिग खड़े
हैं और भी दिलचस्‍प बात यह है कि गाँधी जी अपने जीवनकाल के दौरान शांति
के अगुवा बनकर उभरे तथा आज भी विवादों को हल करने के लिए अपनी अहिंसा की
विचार-धारा से वे मानवता को आश्‍चर्य में डालते हैं।यह आश्‍चर्यजनक है कि
उनकी विचारधारा की सफलता का जादू आज भी जारी है। आज तमाम लोग गांधीवाद का
नारा बुलंद करतें मिल जायेंगें लेकिन ज़मीनी हकीकत मे उनके लिये गांधीवाद
की प्रासंगिकता केवल खादी पहन्‍ने तक ही सीमित है ।आज़ादी के बाद से भारत
मे एक दर्जन से अधिक प्रधानमंत्री हुये, जिनमे कई बड़े नाम भी थे , लेकिन
शांति के इस मसीहा के सपनों का भारत धरातल के आसपास भी नज़र नही आता ।हर
साल गांधी जयंती पर गांधीवाद पर बात होती तो होती है लेकिन अमल की नौबत
नही आती है ।आजकल तो कुछ संघटन शांति के इस मसीहा को सवालों के घेरे मे
भी खड़ा कर देतें हैं ।
गांधी के सपनों के भारत मे स्वच्छ भारत भी था । करीब 100 साल
पहले महात्मा गांधी ने भारत में अपने पहले सार्वजनिक भाषण मे गंदगी का
जिक्र किया था । 6 फरवरी सन 1916 को उन्‍होने वराणसी मे दिये अपने इस
भाषण मे आस्‍था नगरी की गंदगी का जिक्र करते हुये स्वच्छ भारत की वकालत
की थी ।आज सौ साल बाद भी इस मामलें मे शिव की नगरी काशी के हालात बहुत
नही बदलें हैं ।जबकि वहां के प्रतिनिधि खुद प्रधानमंत्री हैं ।बहरहाल
आज़ादी के 67 साल बाद एक साल पहले पहलीबार लाल किले की प्राचीर से किसी
प्रधानमंत्री ने गंदगी के खिलाफ आवाज उठाई। लाल किले से दिये अपने भाषण
में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत का नारा दिया था ।दो
अक्टूबर सन 2014 को यानी गांधी जयंति के दिन स्वच्छ भारत अभियान की
शुरुआत हुई। प्रधानमंत्री खुद हाथ में झाड़ू लेकर लोगों को साफ सफाई का
संदेश देने निकल पड़े।सफाई अभियान में मोदी का साथ देने उनके मंत्रिमंडल
के साथी निकल पड़े। प्रधानमंत्री ने वाराणसी के अस्सी घाट की गंदगी को
साफ करने के लिए फावड़ा चलाया था । करीब एक साल बाद कितना साफ हुआ भारत
, इसका सटीक आंकलन थोड़ा मुश्‍किल है ।लेकिन देश की राजधानी दिल्‍ली की
तस्‍वीर मे तो बदलाव दिखता है ।रेल्‍वे स्‍टेशन से लेकर हर वह जगह जहां
सार्वजनिक आवाजाही रहती है, एक साल मे कुछ बदला – बदला दिखता है ।लेकिन
राजधानी दिल्‍ली की तस्‍वीर से देश के सुदूर इलाकों की हालत का मिलान नही
किया जा सकता है ।केन्‍द्र सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने पूरे एक साल
देश भर के 476 शहरों की साफ-सफाई का जायजा लिया । ये पता करने की कोशिश
की कि सफाई के मामले में किस शहर को कितना सफर तय करना है । सर्वे के
मुताबिक साफ सफाई के मामले में टॉप पर है कर्नाटक का मैसूर और इसके अलावा
कर्नाटक के तीन और शहरों ने भी टॉप टेन में जगह पाई है ।सनद रहे कि
दक्ष्‍िण भारत पहले से ही हर मामले मे जागरूक रहा है ।इस लिये दिल्‍ली या
दक्ष्‍िण के कुछ शहरों को देख कर ये नही कहा जा सकता कि स्वच्छ भारत
अभियान करोड़ों के प्रचार के बाद भी परवान चढ़ रहा है ।बिहार ,उत्‍तर
प्रदेश , उड़िसा ,मध्‍य प्रदेश ,राजस्‍थान जैसे राज्‍यों के तमाम
शहरों यहां तक कि वाराणसी के हालात भी जस के तस हैं। अस्पताल के बाहर
कूड़े का ढेर, स्कूल के बाहर गंदगी का अम्बार, सरकारी दफ्तर के बाहर कचरे
का जमावड़ा, बजबजाती नालियां, गन्दगी से पटी सड़कें, दीवारों पर पान की पीक
और गली मोहल्लों में घूमते आवारा जानवर ,आज भी यही देश के तमाम शहरों की
तस्वीर है ।नगर निगम से लेकर नगर पालिकाओं तक संसाधनों का अभाव है ।छोटे
शहरों मे तो कई दिन तक कूड़ा नही उठने की शिकायतें आम है ।बड़ी नदियों आज
भी प्रति दिन करोड़ों लीटर गंदगी समा रही है ।हां चित्रकूट जैसे पवित्र
स्‍थलों पर जरूर कुछ जागरूकता दिखती है ।सरकारी अफसरों सहित आम नागरिक
मंदाकनी को साफ करने और रखने मे आगे बढ़े हैं ।
इसी तरह देश भर के स्कूलों खास कर के सरकारी
स्‍कूलों मे छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय की दरकार लम्‍बे अरसे
से है ।क्‍यों कि छात्राओं के स्‍कूल छोड़ने की एक वजह सरकारी प्राइमरी
और जूनियर स्‍कूलों मे शौचालय का ना होना भी बताया जाता है ।
प्रधानमंत्री ने सभी स्कूलों में लड़के और लड़कियों के लिए अलग शौचालय
बनाने की बात की और देश को यह भरोसा दिलाया कि वह इस लक्ष्य को जल्द से
जल्द पूरा भी कर लेंगे। जाहिर है कि यह उनकी संवेदनशीलता और देश के शहरी
वा ग्रामीण इलाकों की समझ को दर्शाता है । पर सालभर बीत जाने के बाद भी
परिस्थितियों में कोई खास बदलाव नहीं आया है। हां, इस बारे में थोड़ी
हलचल तो है लेकिन यह केवल बात के स्तर पर ही देखी जा सकती है। इस बारे
में हकीकत में कुछ खास होता हुआ नहीं दिखता।कागज़ और आंकड़ों मे ज़रूर
लक्ष्‍य के नज़दीक पहु्ंचना बताया जा रहा है ।, स्वच्छ विद्यालय का
लक्ष्य देश के सभी स्कूलों में पानी, साफ-सफाई और स्वास्थ्य सुविधाओं का
पुख्ता इंतजाम रखा गया है ।ये अभियान सेकेंडरी स्कूलों में लड़कियों की
एक बड़ी आबादी को रोकने में अहम भूमिका निभा सकता है।एक आंकड़े के अनुसार
देश में 3.83 लाख घरेलू और लगभग 17,411 सामुदायिक शौचालयों का निर्माण
हुआ लेकिन बीते साल कितने स्कूलों में शौचालयों का निर्माण हुआ, इसका
जवाब न सरकारी विभागों के पास है और न ही किसी सामाजिक संगठन के पास
।सरकार के मुताबिक अभी देश के दो लाख स्‍कूलों मे शौचालय नही है ।
फिलहाल मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक,
2012.13 में देश के 69 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय
की व्यवस्था थी जबकि 2009.10 में यह 59 प्रतिशत थी । 2013.14 में हालांकि
करीब 80.57 प्रतिशत प्राथमिक स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय की
व्यवस्था है । स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने पन्द्रह अगस्त को ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से
सांसदों और कारपोरेट क्षेत्र से अगले साल तक देश भर के स्कूलों में
शौचालय, विशेषकर लड़कियों के लिए अलग शौचालयों के निर्माण में मदद करने
की अपील की थी ।लेकिन फिलहाल देश के करीब 38 प्रतिशत स्कूलों में
लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं है। हालांकि, 95 प्रतिशत स्कूलों में
पेयजल सुविधा उपलब्ध है।देश के स्‍कूलों मे 62 फीसदी स्‍कूलों मे
शौचालयें होने का दावा जरूर किया जा रहा है लेकिन ये आंकड़े दस्तावेजों
में ही सही दिखतें हैं ।कई ऐजेन्‍सियों के सर्वेक्षण के अनुसार, जिन
स्कूलों में शौचालय हैं, उनमें से अधिकांश बंद या जाम पड़े हैं। ये
शौचालय इस्तेमाल में लाने योग्य नहीं हैं और तमाम खस्ताहाल हैं।उत्‍तर
भारत के कई राज्य में यह दावा किया जाता है कि 96 फीसदी शौचालय इस्तेमाल
योग्य हैं। अगर हालात छोड़कर इन तथ्यों पर भरोसा किया जाए तो फिर राज्य
के ग्रामीण इलाकों में लड़कियां पढ़ाई बीच में ही क्यों छोड़कर चली जाती
हैं?शहरी इलाकों मे हालात गांव जितने खराब नही है । दूसरी बात, अगर इन
शौचालयों में से अधिकतर बुरे हाल में हैं तो इसका अर्थ यह है कि राज्य
सरकार शौचालयों के रख-रखाव के लिए बजट मुहैया नहीं कराती। ग्रामीण इलाकों
के स्कूलों में शौचालयों में पानी की अनुपलब्धता बड़ी चिंता का विषय है ।
स्वच्छ भारत अभियान की सफलता या असफलता का रास्‍ता
ग्रामीण भारत से ही हो कर जाता है ।सनद रहे कि देश मे इससे पहले भी
स्वच्छ भारत अभियान चला था ।सन 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव
गांधी ने केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम की शुरुआत की थी। 1999 में
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे थोड़ी ऊंचाई देते हुए पूर्ण
स्वच्छता अभियान का नाम दिया। मोदी सरकार ने इसका पुनर्निर्माण करते हुए
फ्लश सिस्टम वाले शौचालयों पर ध्यान केंद्रित किया और खुले में शौच बंद
करने और मानव द्वारा मल उठाने पर रोक लगाने की बात की थी। इसके अलावा ठोस
अपशिष्ट प्रबंधन और पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने की भी बात शुरू की
गई।दरअसल नये र्निमाण मे तो सरकारी और गैर सरकारी दोनो स्‍तर पर रूची ली
जाती है ।लेकिन पहले से बने शौचालयों के रख-रखाव में कोई दिलचस्पी नहीं
दिखती ।इसी लिये तमाम राज्‍य सरकारें वास्तव में स्कूलों के शौचालय के
लिए बजट मुहैया कराने में बहुत कंजूसी दिखाती हैं ।यही कारण है कि
ग्रामीण क्षेत्र के स्‍कूलों मे बड़ी संख्‍या मे शौचालयों मे ताला मिलने
की शिकायतें आती हैं ।वास्‍तव मे भारत को स्वच्छ बनाने के लिए बहुत बड़े
बदलाव की दरकार है।पूरी व्‍यवस्‍था को बदलने के जमीनी तौर पर जरूरत है
।बड़ी सामान्‍य सी बात है कि जब जब घरों के शौचालयों के गड्ढे सूख जाते
हैं या फिर चेंबर पूरी तरह भर जाते हैं तो ऐसे हाल में फंड की कमी
समस्याओं को और ज्यादा बढ़ा देती है ।तो स्कूल के शौचालय भी इन्हीं
दिक्कतों से ज्‍यादा जूझ रहे हैं ।स्‍थानिय स्‍तर पर किसी भी मद से पैसे
का बंदोबस्‍त होना बड़ा मुश्‍किल होता है ।
सरकार का दावा है कि आगामी चार साल में स्वच्छता
अभियान के तहत 52 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे । कंपनी अधिनियम 2013
में सुधार करके कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के जरिये स्वच्छ भारत कोष
तैयार किया गया है । जिसके जरिये एकत्रित किए गए धन से ढ़ाई लाख से अधिक
शौचालयों का रख-रखाव किया जाएगा ।हांलाकि इस पूरे हालात के लिये अकेले
प्रधानमंत्री को कठघरे मे खड़ा नही किया जा सकता है।राज्‍य सरकारें और
जिम्‍मेदार अमला इसके लिये ज्‍़यादा दोषी नजर आता है।पीएम मोदी की तो
इसके लिये तारीफ की जानी चाहिए कि बापू के सपनों को साकार करने के लिये
उन्‍होने एक आवाज़ दी है । बहरहाल प्रधानमंत्री अब ज़रूर इस बात को महसूस
कर रहे होंगे कि स्वच्छ भारत कहना और सपना देखना तो आसान था पर पूरा करना
कठिन है।लेकिन तमाम देशवासियों को ये जानने के लिए 2019 तक इंतजार करना
होगा कि स्वच्छ भारत अभियान एक ठोस पहल था या कि केवल राजनीतिक वादा और
नेताओं का गुब्बारा था? यानी इस मामले मे भी अभी देश को लम्‍बा सफर तय
करना है ।
शाहिद नकवी

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