कब तक

poetry

कल भी मरी थी कल भी मरेगी

आखिर वो कितनी बार जलेगी ।

पहले तो तन को भेड़िया बन नोच डाला

शरीर से आत्मा तक जगह-जगह छेद डाला ।

लाश बच रही थी न जीएगी और न मरेगी

आखिर वो कितनी बार जलेगी ।।

घर से बाहर तक हर की याद दिलाता है

दर्द बांटना तो दूर दर्द को खरोंच-खरोंच नासूर बनाता है ।

क्या घर में भी वो इसी तरह लुटेगी ।

आखिर वो कितनी बार जलेगी ।

उसकी आंखों में सहमे आंसुओं के कतरे

टूट–टूटकर गिरते एक–एक कर सपने ।

कब तक ये मानसिक रोगियों की शिकार बनेगी ।

आखिर वो कितनी बार जलेगी ।।

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राघवेन्द्र कुमार 'राघव'
शिक्षा - बी. एससी. एल. एल. बी. (कानपुर विश्वविद्यालय) अध्ययनरत परास्नातक प्रसारण पत्रकारिता (माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय जनसंचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय) २००९ से २०११ तक मासिक पत्रिका ''थिंकिंग मैटर'' का संपादन विभिन्न पत्र/पत्रिकाओं में २००४ से लेखन सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में २००४ में 'अखिल भारतीय मानवाधिकार संघ' के साथ कार्य, २००६ में ''ह्यूमन वेलफेयर सोसाइटी'' का गठन , अध्यक्ष के रूप में ६ वर्षों से कार्य कर रहा हूँ , पर्यावरण की दृष्टि से ''सई नदी'' पर २०१० से कार्य रहा हूँ, भ्रष्टाचार अन्वेषण उन्मूलन परिषद् के साथ नक़ल , दहेज़ ,नशाखोरी के खिलाफ कई आन्दोलन , कवि के रूप में पहचान |

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