डा. वेद प्रताप वैदिक
डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति तो बन गए लेकिन अमेरिका और सारी दुनिया के देश अभी भी यह समझ नहीं पाए हैं कि ट्रंप कैसे राष्ट्रपति सिद्ध होंगे? ट्रंप अपने चुनाव-अभियान के दौरान और उसके पहले भी इतने अधिक विवादास्पद रहे हैं कि वे अगला कदम क्या उठाएंगे, कोई नहीं जानता। कल जब ट्रंप व्हाइट हाउस में शपथ ले रहे थे, तब वाशिंगटन डी.सी. तथा अन्य शहरों में उनके विरुद्ध धुआंधार प्रदर्शन हो रहे थे लेकिन ट्रंप को अपने विरोधियों की जरा भी परवाह नहीं है। उन्होंने जो भाषण दिया, उसमें वे अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपतियों और सरकारों को भी रगड़ा लगाए बिना नहीं रहे।
उन्होंने कहा कि अभी तक सभी राष्ट्रपति चुनाव जीतकर सारी शक्ति वाशिंगटन में केंद्रित कर लेते थे लेकिन आज से ही यह शक्ति अब वाशिंगटन से निकल कर अमेरिका की जनता के हाथ में चली जाएगी। ट्रंप-प्रशासन वाशिंगटन के भले की बजाय अब जनता का भला सोचेगा। अब हर नीति का लक्ष्य होगा- ‘अमेरिका पहले’। चाहे विदेश नीति हो, विदेशी व्यापार हो, बाहरी लोगों का आना हो- सभी मामलों में सबसे पहले अमेरिका का ध्यान रखा जाएगा।
अब तक अमेरिका ने दूसरों देशों की सुरक्षा और व्यवस्था पर अरबों-खरबों डालर बहा दिए लेकिन उसकी अपनी सुरक्षा खतरे में पड़ती जा रही है। दुनिया के कई देश अमेरिकी पैसे पर मस्ता रहे हैं लेकिन अमेरिकी परेशानियां भुगत रहा है। अब यह नहीं चलेगा। ट्रंप ने दावा किया कि कल से नक्शा बदल जाएगा।
ट्रंप की ऐसी और इससे भी ज्यादा शेखचिल्लीपने की बातों के कारण ही अमेरिकी जनता ने उन्हें व्हाइट हाउस में ढेल दिया है। ट्रंप को राजनीति का कोई अनुभव नहीं है। वे अब तक कोरे धन-पशु रहे हैं। 70 वर्षीय ट्रंप ने तीन शादियां की हैं और चारित्रिक दृष्टि से भी वे कमजोर रहे हैं। उनके मंत्रिमंडल में कितने लोग अपनी योग्यता के कारण हैं और कितने लोग धन-पशु होने के कारण, यह जानना अभी मुश्किल है।
उम्मीद है कि अब जब उन्हें दुनिया के इस सबसे शक्तिशाली देश की हुकूमत चलानी पड़ेगी तो वे कुछ नया सीखेंगे और अपने को मर्यादित व संतुलित करेंगे। यदि वे ऐसा कर सके तो हो सकता है कि उन्हें इतिहास में उंचा स्थान मिल जाए। प्रवासी भारतीयों ने उनकी सक्रिय सहायता की है। भारत के बारे में उन्होंने अच्छी टिप्पणियां की हैं लेकिन पाकिस्तान के बारे में वे अचानक और भी अच्छा बोल पड़े हैं। यदि वे दक्षिण एशिया में सदभाव और सहयोग का माहौल बना सकें तो उनका स्वागत होगा। रुस के प्रति उनके संकेत मधुर हैं, नाटो देशों के प्रति अरुचिकर और चीन के प्रति कटु लेकिन देखना है कि अब राष्ट्रपति पद संभालने के बाद उनका बर्ताव कैसा रहता है?