और कितना समय चाहिए….?

झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगे हुए कई महीने हो चुके हैं और इसमें कोई शक नहीं कि इस दौरान राष्ट्रपति और उनके सलाहकार अच्छा काम कर रहे है। रातू ब्लॉक का औचक निरीक्षण हो या भष्ट्राचार में लिप्त कई अधिकारियों को निलंबित करना, सभी काम झारखंड के राज्यपाल और उनकी टीम ने बखूबी किए है। इतना ही नहीं राष्ट्रपति शासन लगते ही यहां पहले से चल रही योजनाओं की भी जांच पड़ताल कर रहे हैं। मनरेगा में गड़बड़ी की बात अभी खत्म भी नहीं हुई कि झारखंड में चल रहे री-स्टक्कर्ड एक्सलेरेटेड पावर डेवलपमेंट एंड रिफॉर्म प्रोग्राम(आरएपीडीआरपी) में मनमानी की बात सामने आई है। इसके तहत झारखंड के शहरों में विद्युत घाटा (टीएंडडी लॉस) को कम किया जाना है । यह योजना दो भागों में  पूरी की जानी है, पहले भाग में ऑटोमेशन के तहत वितरण सिस्टम को सूचना तकनीक से जोड़ा जाना है, तो दूसरे भाग में ट्रांसमिशन लाइन का रिफॉर्म किया जाना है, जिससे उत्पादन के बाद पहले संचरण और फिर वितरण स्तर के लॉस पर नजर रखी जा सकेगी ।

विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार ने बेस लाइन डाटा, जवाबदेही का निर्धारण, एटी एंड सी नुकसान में कमी की स्थापना पर ध्यान देने के उद्देश्य से जुलाई 2008 में पुनर्गठित त्वरित विद्युत विकास एवं सुधार कार्यक्रम की शुरूआत थी। लेकिन इस योजना की कार्य प्रगति बहुत धीमी है, जिस कारण अभी तक राजधानी रांची का भी काम बाकी है। फिर भी केंद्र सरकार ने सकारात्मक रूख अपनाते हुए झारखंड में री-स्टक्कर्ड एक्सलेरेटेड पावर डेवलपमेंट एंड रिफॉर्म प्रोग्राम को पूरा करने के लिए और डेढ़ साल का समय दिया है। ज्ञातव्य है कि आरएपीडीआरपी का काम तीन वर्ष में पूरा होना था, लेकिन करीब साढ़े तीन वर्ष बाद भी काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है। दुर्भाग्य की बात तो ये है कि  अभी तक फेज वन का ही काम पूरा नहीं हुआ है, पता नहीं दूसरे फेज का काम कब शुरू होगा?

इतना ही नही, अगर अतिरिक्त मिले समय में काम पूरा नहीं हुआ तो  इस योजना के लिए राज्य को अनुदान में मिले 265 करोड़ रूपए ऋण में तब्दील हो जाएंगे , जो राज्य के लिए वाकई चिंता की बात है। इसलिए अभी भी झारखंड के पास समय है, समय रहते योजना का काम पूरा कर दे। नहीं तो लेने के देने पड़ सकत है।

केंद्र सरकार ने झारखंड को एक मौका दिया है, जिसका झारखंड बखूबी लाभ उठा सकता है।

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