देश कैसे आगे बढ़ेगा?

0
169
आरक्षण

aarakshanदेश में आरक्षण वादी व्यवस्था के मूल में कुछ जातियों का देश के आर्थिक संसाधनों पर बना रहा सामंती एकाधिकार था। जिसे तोडऩे के लिए इस व्यवस्था को लागू किया गया था। जिन जातियों ने देश के आर्थिक संसाधनों पर अपना एकाधिकार स्थापित कर लिया था उन्होंने चुपचाप देश में जातिवाद को प्रोत्साहन दिया और समाज के अन्य वर्गों के लोगों को प्रतिभा संपन्न होते हुए भी आगे बढऩे का मार्ग नही दिया। वास्तव में ऐसी प्रवृत्ति एक सामाजिक अपराध था।

अब राजपूतों को ही लें। राजपूतों को अगड़ी जाति माना जाता है। इनके विषय में ‘क्षत्रिय साम्राज्य’ नामक संगठन ने अपनी ओर से कुछ आंकड़े जारी किये हैं। जिनके अनुसार राजपूतों की संख्या जम्मू कश्मीर में दो लाख+चार लाख विस्थापित, पंजाब में 9 लाख, हरियाणा में 14 लाख, राजस्थान में 78 लाख, गुजरात में 60 लाख, महाराष्ट्र में 45 लाख, गोवा में पांच लाख कर्णाटक में 45 लाख, केरल में बारह लाख, तमिलनाडु में 36 लाख, आंध्र प्रदेश में 24 लाख, छत्तीसगढ़ में 24 लाख, उड़ीस में 37 लाख, झारखण्ड में 12 लाख, बिहार में 90 लाख, पश्चिम बंगाल में 18 लाख, मध्य प्रदेश में 42 लाख, उत्तर प्रदेश में दो करोड़, उत्तराखण्ड में 20 लाख, हिमाचल प्रदेश में 45 लाख, सिक्किम में 1 लाख, आसाम में 10 लाख, मिजोरम में 1.5 लाख, अरूणाचल में एक लाख, नागालैंड में 2 लाख, मणिपुर में 7 लाख, मेघालय में 9 लाख, त्रिपुरा में 2 लाख राजपूत हैं। इस संगठन के आंकड़ों के अनुसार सबसे ज्यादा राजपूतों का राजनैतिक वर्चस्व पश्चिम बंगाल में है, जबकि सबसे ज्यादा जनसांख्यिकीय प्रतिशत वाला राज्य उत्तराखण्ड है जहां राजपूतों की जनसंख्या कुल जनसंख्या का 20 प्रतिशत है। सबसे ज्यादा राजपूत मुख्यमंत्री राजस्थान में बने हैं। सबसे अच्छी आर्थिक स्थिति में राजपूत आसाम में हैं, जबकि राजपूतों के सबसे अधिक विधायक उत्तर प्रदेश में हैं। संगठन का अपना निष्कर्ष है कि भारत की लोकसभा में राजपूत 48 प्रतिशत है, जबकि राज्यसभा में 36 प्रतिशत हैं। देश में राजपूत कैबिनेट सचिव 33 प्रतिशत, मंत्री सचिव 54 प्रतिशत, अतिरिक्त सचिव 62 प्रतिशत, पर्सनल सचिव 70 प्रतिशत, यूनिवर्सिटीज में वाइस चांसलर 51 प्रतिशत, सुप्रीम कोर्ट में राजपूत जज 40 प्रतिशत, राजपूत 41 प्रतिशत, पब्लिक अंडर टेकिंग (केन्द्रीय) 57 प्रतिशत, राज्य-82 प्रतिशत, बैंकों में 57 प्रतिशत, एयरलाइंस में 61 प्रतिशत, आईएएस 72 प्रतिशत, आईपीएस 61 प्रतिशत, टीवी कलाकार 83 प्रतिशत, सीबीआई कस्टम 72 प्रतिशत हैं।

ये आंकड़े बता रहे हैं कि राजपूत वर्ग किसी प्रकार के आरक्षण का अधिकारी नही है। क्योंकि वह लेने की स्थिति में नही है-अपितु उसने बहुत कुछ ले लिया है और वह अब देने की स्थिति में है। हमारा मानना है कि देश में आरक्षण के आधार पर सीटें निर्धारित करना तो मूर्खता हो जाएगी अर्थात किसी जाति की जनसंख्या में प्रतिशतता के आधार पर उसे नौकरियों में सीटें देना उचित नही है। इसके विपरीत हर स्थान पर योग्यता को ही पैमाना माना जाना चाहिए। यदि योग्यता के आधार पर राजपूत भी आगे बढ़ रहा है तो बढऩे दिया जाए। परंतु यदि आगे बढ़ा हुआ राजपूत पीछे से आने वाले किसी ओबीसी का या एससी, एसटी का रास्ता रोके और उसे आगे बढऩे ही न दे, तो यह मानवता के विरूद्घ भी एक अपराध है। दुख के साथ कहना पड़ता है कि जो जातियां किसी भी क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित कर गयीं उन्होंने अन्य जातियों के लोगों के आगे बढऩे के रास्ते रोके हैं। अन्यथा क्या कारण रहा कि देश की सरकारी सेवाओं में किसी एक जाति का ही वर्चस्व रहा? क्या अन्य जातियों में योग्यता समाप्त हो गयी थी? हम किसी जातिवादी दृष्टिकोण से यह लेख नही लिख रहे हैं और न हमारा लक्ष्य किसी जाति को कोसना है। हमारा लक्ष्य है उस विसंगति की ओर संकेत करना जिसके कारण एक जाति देश के हर क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित करके फूली नही समा रही है और दूसरी जातियां उसके वर्चस्व को चुनौती देते हुए यह खोजने का कार्य कर रही हैं कि अंतत: अगड़ी जातियां किस प्रकार गरीब वर्गों के पेट पर लात रखकर आगे बढ़ गयीं? उन्होंने अपनी उन्नति में कितने लोगों के अधिकारों का हनन किया है? जब ये जातियां इस प्रकार के शोधपूर्ण आलेख प्रकाशित करती कराती हैं तो ये अपने लोगों में अगड़ी जातियों के लोगों के प्रति आक्रोश उत्पन्न करती हैं। जिससे समाज में कटुता का परिवेश निर्मित होता है। भला यह बात किसी पिछड़ी जाति या अनुसूचित जाति, जनजाति के व्यक्ति को कैसे रास आ सकती है कि एक ही जाति के आईएएस, आईपीएस देश में छा जाएं? तर्क दिया जा सकता है कि जब योग्यता ही उनके भीतर है तो क्या किया जा सकता है? हमारा मानना है कि यह तर्क खोखला है। योग्यता तो हर स्थान पर है, पर हमारी तंग नजरें उन्हें खोजती नही हैं। वे उन्हें किसी सीमित दायरे में से खोजकर लाने की अभ्यस्त हो गयी हैं। हमने योग्यताएं उत्पन्न करने में भी जातिवादी विभेदकारी परिस्थितियां उत्पन्न की हैं। शिक्षा को हमने गरीब  की शिक्षा और धनिक वर्ग की शिक्षा में बांट दिया है, यह ठीक है कि आरक्षणवादी व्यवस्था से निकलकर कई अधिकारी भी अयोग्य ही रह जाते हैं, इसलिए हम स्वयं नही चाहते कि ऐसे अयोग्यों को योग्यों पर वरीयता दी जाए। हमारा कहना है कि योग्यता के लिए सबको तराशने और तलाशने का कार्य निष्पक्षता से हो। योग्यता को राजपूती सामन्ती प्रथा से तराशने की प्रवृत्ति को छोडऩा होगा। अब वे दिन लद गये जब राजा का बेटा ही उसका उत्तराधिकारी होता था। पर हम देख रहे हैं कि हमारे देश में तो कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी भी एक परिवार में ही योग्यता देखने के लिए अभिशप्त है। यही स्थिति अन्य क्षेत्रों में है। जब तक ऐसी मानसिकता बनी रहेगी तब तक देश अनिष्ट की ओर निरंतर बढ़ता रहेगा और उसे अपना अभीष्ट प्राप्त नही हो पाएगा।

अब आते हैं जाटों के आरक्षण संघर्ष पर। जिसने हरियाणा में लोगों को रूलाकर रख दिया है। सारा आंदोलन इस निर्ममता के साथ चलाया गया है जैसे हम किसी शत्रु देश से युद्घ कर रहे हैं। इसको देशभक्ति तो कहा नही जा सकता। स्वार्थ में अंधे होकर लोगों ने अपनी देशभक्ति को भी कुचल दिया और अपने ही भाईयों की दुकानों में आग लगाकर उन्हें बेरोजगार कर दिया।  देश को 20,000 करोड़ की चपत लगा दी, और अब इतने बड़े राष्ट्रीय अपराध में से हम कुछ नेता निकलते देखेंगे, जिन्हें मानवता का हत्यारा न कहकर गरीबों का मसीहा या किसान नेता, जैसे खिताब दिये जाएंगे।

हरियाणा में भी जाटों की स्थिति देखी जाए तो पता चलता है कि जो कुछ भी हुआ है वह केवल मुठमर्दी दिखाने के लिए किया गया है। यहां पर 63 प्रतिशत जाट मंत्री हैं, 71 प्रतिशत जाट हरियाणा सिविल सर्विसेज में हैं। 60 प्रतिशत जाट आईएएस हैं, 69 प्रतिशत जाट आईपीएस हैं, 58 प्रतिशत जाट एलाईड ऑफिसर हैं, जबकि 71 प्रतिशत जाट अदर गवर्नमेंट एम्पलौयी हैं। हरियाणा के 43 प्रतिशत पेट्रोल पंप जाटों के हैं, 41 प्रतिशत गैस एजेंसी जाटों की हैं, 39 प्रतिशत रीयल एस्टेट प्रॉपर्टी जाटों के पास है और 69 प्रतिशत हथियारों के लाइसेंस जाटों के पास हैं। इतनी संपन्न जाति और देशभक्ति का इतिहास ली हुई जाति भी आज आरक्षण की भीख मांग रही है-देश कैसे आगे बढ़ेगा? क्या ही अच्छा होता ये संघर्ष देश से जातिवाद को मिटाने के लिए होते।

Previous article…लेकिन बाजी पलट गई!
Next articleमोहन भागवत की तो सुनो!
राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here