कैसे बने वास्तुशास्त्री—-

वास्तुशास्त्र का इस्तेमाल आज हर क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है। लोग अपने घरों में सुख, शांति, अच्छी नौकरी, करियर बिजनेस, धन, संपत्ति और स्वस्थ रहने के लिए वास्तु का प्रयोग कर रहे हैं। कई बार घर की समस्याओं को दूर करने के लिए भी वास्तु का प्रयोग किया जाता है वास्तुविज्ञान के नैशनल चैयरमेन तजेंद्र पाल त्यागी ने बताया कि जिस प्रकार अनुलोम-विलोम करने से जिस प्रकार शरीर को आंतरिक सफाई होती है उसी प्रकार 6 माह में एक बार घर को नमक डालकर धोने के बाद ठंडे पानी से धोना चाहिए। जिससे गर्म और ताप गर्म परिवर्तन की वजह से फ्लोर पर जमी हुए नेगेटिव एनर्जी खत्म हो जाती है। यह प्रॉसेस ऑफ स्ट्रेस रिमूवल कहलाता है। यह बिल्कुल उसी तरह है जिस प्रकार व्यक्ति स्ट्रीम बाथ के बाद नॉर्मल बाथ लेकर स्वयं को तरोताजा महसूस करता हैं।

आज सामान्य जनता या प्रख्यात वास्तुविद् प्राचीन काल की इमारतों, मंदिरों, किलों आदि को देखता है तो आश्चर्य व्यक्त करता है कि बिना आधुनिक साधनों के यह निर्माण कैसे और किस कुशल विशेषज्ञ की देखरेख में किया गया होगा.

वैदिक युग के प्रारंभ में एक शरीरधारी प्राणी ने जनम लिया. जो शिशु न होकर पूर्ण विकसित इंसान था. इन्द्र आदि देवता उसके जनम से भयभीत हो गए.जैसे-जैसे समय बीतता गया उसका शरीर बढ़ता गया.

एक दिन वह इतना बढ़ गया कि स्वर्ग में उसका सामना करना असंभव हो गया. तब देवताओं ने इस विशालधारी शरीर की मुक्ति के लिए एक बड़ा गढढ़ा तैयार करवाया और उसे तोड़-मरोड़ कर गाड़ दिया. गाड़ते वक्त उत्तरपूर्व की तरफ यानि कि इशान कोण पर सिर रखा, दाहिना घुटना एवं कोहनी पश्चिमेत्तर यानि कि वायव्य कोण की तरफ, पैर व मल द्वार दक्षिण की ओर एवं बायां हाथ व घुटना पूर्व की ओर था.

आज के वास्तु शास्त्र का आधार वास्तु पुरुष के रूप में विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है. ऋगवेद में स्थापत्य एवं वास्तु का स्पष्ट उल्लेख मिलता है. इससे स्पष्ट है कि प्रचीन काल में महिर्षियों ने वास्तु के बारे में चिंतन किया था. वास्तुशास्त्र की विशिष्टता के ज्ञान से यह स्पष्ट हो जाता है कि इन्द्रासन आकाश की वास्तु का उदाहरण हैं. जबकि वैदिक युग में मनुष्य के जीवन का केन्द्र धर्म था, इसीलिए अपनी समस्त रचनात्मक ऊर्जाओं का उपयोग धार्मिक स्थल के निर्माण कार्य में किया गया. उस समय मनुष्य अपने निवास स्थान को भी धर्म से जोड़कर बनाया करता था. उसमें सादगी भी थी और सौम्यता भी थी.

ह बात सर्वविदित है कि आज सामान्य जनता या प्रख्यात वास्तुविद् प्राचीन काल की इमारतों, मंदिरों, किलों आदि को देखता है तो आश्चर्य व्यक्त करता है कि बिना आधुनिक साधनों के यह निर्माण कैसे और किस कुशल विशेषज्ञ की देखरेख में किया गया होगा.

कहने का तात्पर्य यह कि वास्तुशास्त्रानुसार बने प्राचीन भवनों का साकार रूप मंदिरों में देखने को मिलता है. धीरे-धीरे जन लोगों में भौतिक सोच बढऩे लगी तो अपने निवास को वैभव व संपन्न बनाने के लिए एक परिवार में सुख-शांति के लिए वास्तुशास्त्र का उपयोग किया जाने लगा. परिवार व अपने घर की सुख-शांति के लिए वास्तुशास्त्र का उपयोग हर कोई करने लगा है. किंतु यह सही है कि वास्तुशास्त्र को थंबरूल ( अटल निर्णय) के हिसाब से न मानें . यदि सचमुच में सही और सकारात्मक प्रभाव पाना चाहते हैं तो इसके साथ अपनी जन्म पत्रिका का भी अध्ययन करवा लें जिससे जीवन में सदैव सुख-शांति बनी रहे.

 

कार्य संस्कृति—-

वास्तुशास्त्री का कार्य परामर्श का है। भवन निर्माण करने के इच्छुक लोग यह जानना चाहते हैं कि उनके नक्शे में ड्राइंगरूम कहां हो, किचन कहां हो, बाथरूम कहां हो, ताकि उन पर या उनके परिवार पर किसी प्रकार का नकारात्मक असर न हो और उनकी सुख-समृद्घि बढ़ती रहे। वास्तुशास्त्री का काम जमीन का टुकड़ा देख कर इमारत की कौन-सी चीज कहां बननी चाहिए, इसकी जानकारी इमारत बनाने वाले का उपलब्ध कराना होता है।

स्किल—-

सबसे जरूरी बात यह है कि इसके मूलभूत सिद्घांतों की जानकारी होनी चाहिए। वास्तुशास्त्री बनने वाले के लिए यह जानना जरूरी है कि भवन निर्माण में इसकी क्या भूमिका होती है, वास्तु पुरुष मंडल क्या होता है। कौन-सी दिशा या कौन-सा कोण किस किस स्वामित्व में होता है और उसकी क्या विशेषताएं होती हैं। उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि यदि वास्तु के मुताबिक भवन निर्माण में कोई कठिनाई आ रही है तो उसका हल क्या है।

योग्यता—

पहले वास्तु विद्या के लिए किसी औपचारिक शिक्षा की अनिवार्यता नहीं थी, लेकिन अब कुछ कॉलेज व इंस्टीटय़ूट्स में बकायदा इसकी पढ़ाई होने लगी है। वास्तुशास्त्र में करियर बनाने के लिए अभ्यर्थी कम से कम 12वीं पास जरूर हो। अगर विज्ञान संकाय से पढ़ाई की है तो इसमें करियर बनाना बेहतर रहेगा। सामान्य ज्ञान, भौगोलिक प्रक्रियाओं की समझ हो, शास्त्रों का थोड़ा-बहुत ज्ञान हो, परंपराओं को समझने वाला नजरिया हो।

कोर्स —-

जहां तक वास्तुशास्त्र की पढ़ाई का सवाल है तो एक तरफ स्वाध्याय है तो दूसरी तरफ गुणीजनों से सीखा भी जा सकता है। सीखने-सिखाने का सिलसिला परंपरागत परिधियों से बाहर निकल कर आधुनिक कक्षाओं तक जा पहुंचा है, जहां सर्टिफिकेट कोर्स इन वास्तु विद्या, डिप्लोमा इन वास्तुशास्त्र, प्रोफेशनल डिप्लोमा इन वास्तुशास्त्र और डिग्री कोर्स करवाए जाते हैं। इसमें वास्तुशास्त्र का इतिहास, उनका अनुप्रयोग, पंचभूत और उनका मनुष्य से संबंध, दिशाएं, वास्तुपुरुष, वास्तुमंडल, महामंत्र इत्यादि के बारे में जानकारी दी जाती है, जिनके आधार पर वास्तविक भूखंड में स्थान निर्धारण वगैरह किया जाता है।

वेतन —-

शुरुआती सैलरी 25 से 30 हजार होती है। किसी भी इंटीरियर डेकोरेटर, बिल्डर, कंस्ट्रक्शन कंपनी आदि जगहों पर एक अच्छे वास्तुकार की खासी डिमांड रहती है। खास बात यह कि इसमें सेल्फ इम्प्लॉयमेंट बहुत ही बेहतर है।

 

जीवन में कौन नहीं चाहता कि सुख-समृद्घि आए। इसके लिए यदि थोड़ी-बहुत हेर-फेर करनी पड़े या कुछ चीजें लगानी पड़ें या खास दिशा की तरफ मुंह करके बैठना पड़े तो हर्ज क्या है। बेडरूम दक्षिण-पश्चिम में होना चाहिए, उत्तर-पश्चिम या पश्चिम में बच्चों का कमरा होना चाहिए, किचन के लिए दक्षिण-पूर्व की दिशा सबसे बेहतर रहती है। और भी ऐसी तमाम बातें हैं, जो वास्तुशास्त्र को अनिवार्य की श्रेणी में रखती हैं, ताकि जीवन में खुशी आए, समृद्घि आए। यह सब एक ट्रेंड वास्तुशास्त्री ही बता सकता है। आजकल ऐसे अनेक कोर्स चलन में हैं, जो वास्तु से संबंधित स्किल्स में पारंगत बनाने में सक्षम हैं।

 

प्यार के रंगो में भी वास्तु का वास —-

रंग किसी भी इंसान के जीवन में बेहद महत्वपूर्ण होते है जो कि इंसान के जीवन को प्यार से भर देते है। इसी तरह वास्तु में लव कलर्स का चयन करके जीवनर में खुशियां भर देते हैं। उत्तर दिशा में हरे रंग, पश्चिम दिशा में नीले रंग, साउथ में लाल और ईस्ट में पीले रंग का प्रयोग किया जाना अति उत्तम होता है। इन दिशाओं के अंदर यह कलर शामिल किए जाने से वाइबेशन मिलती है। इनसे निकलने वाली फ्रिक्वेंसी व्यक्ति की बॉडी से मैच किए जाने से पॉजीटिव एनर्जी मिलती हैं। इसके अलावा वास्तु के अनुसार लाल रंग से खोया हुआ प्यार वापस मिलता है। ऑरेंज कलर शुद्घता का प्रतीक, नीला कलर प्यार बढा़ने का कार्य, पिंक कलर हमेशा दिमांग को ठंडा रखता हैं। चटख रंगों से रिश्तों में रोमानियत ला सकते हैं।

 

वास्तु के अनुसार रुम —-

कपल्स और शादीशुदा जोड़े के बीच आपसी प्यार बढ़ाने के लिए साउथ-ईस्ट में होना चाहिए जबकि हेड ऑफ फैमिली का साउथ वेस्ट में होना चाहिए। छोटे बच्चें का बैडरुम ईस्ट और पैसा कमाने वाले का नॉर्थ में होना चाहिए। एनसीआर रिजन में किचन की दिशा साउथ-ईस्ट में होनी चाहिए। ऐसा किए जाने से पश्चिमी हवा किचन में खाना बनने से इस्तेमाल होनी वाली एनर्जी की दुर्गंध को ईस्ट की खिड़की से बाहर निकाल देती हैं। बताया गया है कि इन डायरेक्शन से इंफ्रारेड रेज आती है। जिससे व्यक्ति की ग्रोथ भी होती है और एनर्जेटिक भी होता हैं। अपने कमरे की दीवारों पर हल्का हरा, हल्का गुलाबी या नीले रंग का पेंट करवाएं। हल्कें रंगों से आपको सुकून का एहसास होगा। कपल्स और शादीशुदा जोड़े कमरे में समुद्र , झरनों या इठलाती नदियों की पेटिंग्स लगा सकते हैं। ऐसी पेटिंग्स कपल्स के बीच रूमानियत पैदा करती हैं। बेडरुम में हमेशा हल्के कलर की बेडशीट और जिसमें फूलों के डिजाइन बने हुए हो। पिंक और रेड कलर की बेडशीट उन लोगों के लिए खासतौर से अच्छी रहती हैं, जो शादी करने की प्लानिंग कर रहे हैं। घर में शांति और प्यार बढ़ाने के लिए बेडरूम हमेशा स्कवेयर और त्रिकोणीय होना चाहिए। साथ ही बेडरूम में रखी हुई चीजें हमेशा साफ-सुथरी होनी चाहिए। उन पर कभी भी धूल नहीं होनी चाहिए।

 

बेकार सामान को बाहर का रास्ता दिखाएं —-

वास्तु के अनुसार घर का इंटीरियर जितना खूबसूरत और करीने से लगाया जाएगा, रिश्तों में उतनी ही ताजगी रहेगी। मजबूत और अच्छे रिलेशनशिप के लिए घर पर कभी भी बेकार की चीजों का ढेर नहीं लगाना चाहिए। घर में किताबे, कपड़े और एंटिक चीजों को छोड़कर एक वर्ष से इस्तेमाल नहीं हुई खूबसूरत, जिंदा चीजों को बाहर कर दें या किसी को दान कर दें। ऐसा करने से सोशल एंगल से फायदेमंद होगा बल्कि डिग्री ऑफ फ्रीडम और मूवमेंट को बढ़ावा मिलेगा। डस्ट भी इकट्ठा नहीं होने से आपके दिमाग का भारीपन भी कम होगा।

 

दक्षिण दिशा की ओर सोएं और स्टडी रुम पश्चिम दिशा में —-

सोते समय मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए क्योंकि मनुष्य के अंदर हीमोग्लोबीन में आयरन होता है। आयरन स्वयं ही चुंबकीय गुण रखता है। यह चुंबकीय गुण पृथ्वी के मैग्नेटिक फील्ड के साथ मैच करने से ब्लड प्रेशर और ब्लड सर्कुलेशन की बीमारियों से छुटकारा मिलता हैं। स्टडी करने वाले बच्चे का स्टडी रुम पश्चिम दिशा में होना चाहिए। ऐसा करने से सूर्य की लाल किरणें मिलने के कारण बच्चें की पढ़ाई की टेंडेंसी बढ़ती है और चीजों को जल्दी से कवर करता हैं।

 

पूजा के मंदिर और तुलसी पर भी ध्यान दें —-

पूजा के मंदिर को उत्तर या पूर्व या उत्तर पूर्व के बीच की दिशा में रखें। ड्राइंग और किचन रुम में भी इसे रखा जा सकता है। पवित्र माने जाने के कारण इसे बैडरु म में रखें जाने से परहेज करें। तुलसी में एंटीसेप्टिक गुण पाए जाते हैं। इसलिए इससे जहरीली कीड़े-मकोड़ो साप और बिच्छू से तो बचाव होता है और शीतलता प्रदान करती हैं। इसलिए इसे उत्तर-पूर्व के बीच की दिशा ईशान कोण के आसपास रखना चाहिए। सूर्य की इंफ्रारेड रेज मिलने से तुलसी की ग्रोथ और बढ़ती हैं।

 

भारी और हल्के फर्नीचर सहित दीवारों को भी वास्तु के हिसाब से —-

कोशिश करे कि फर्नीचर डिवाइन ज्यूमैट्रिकल रेशों में बने होने के कारण शुभ माना जाता हैं। भारी फर्नीचर ड्राइग टेबिल, अल्मीरा आदि को साउथ और वेस्ट के बीच की दीवार, हल्के फर्नीचर मूड़ा, चेयर और सिंगल सोफा को उत्तर और पूर्व की दीवार से सटाकर रखें। अगर तीन सीट का सोफा है तो साउथ-वेस्ट ओर सिंगल को नॉर्थ और ईस्ट की दीवार पर रखें। क्योंकि इस प्रकार के फनीर्चर रखें जाने से अल्ट्रावॉयलेट रेजों से बचाव होता है। यह रेंज मनुष्य के सेहत से काफी खतरनाक मानी जाती हैं।

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