अमेरिका ने न्यूयार्क को लहूलुहान होने से दोबारा कैसे बचाया?

– हरिकृष्ण निगम

हाल में न्यूयार्क के टाइम्स स्क्वायर में कार विस्फोटक द्वारा हमले की साजिस में पाकिस्तानी मूल के युवा अमेरिकी 30 वर्षीय शहजाद की सारी आतंकवादी गतिविधियों का सूत्रधार व केंद्र बिंदू पाकिस्तान हीं है। अमेरिका ने फिर न्यूयार्क को लहूलुहान होने से किस तरह बचाया यह भारत जैसे आतंकवाद से पीड़ित देश के लिए आंखें खोलने वाला उदाहरण है। 9/11 के विश्व व्यापार केंद्र की अट्टालिकाओं के ध्वंश के बाद आतंकियों की हर कोशिश को अमेरिका ने कड़ाई से कैसे विफल किया यह ध्यान देने योग्य है।

इसके पहले सन 2007 में जॉन केनेडी अंतर्राष्ट्रीय हवाई और भूमिगत तेल की पाइप लाइनों के जाल व भंडारों के व्यापक विध्वंस का षड़यंत्र और फिर मैनहेटन के टाईम्स स्क्वायर पर हमलें की कोशिश एक कहानी से कम रोचक नहीं रहा है। साफ है कि मात्र पाकिस्तानी अतिरेकी समूह नहीं बल्कि इन षड़यंत्रों के पीछे प्रशासन व सेना के उच्च स्तरों का भी हाथ है जो वहाँ के सुविधा पूर्ण पश्चिमी जीवन शैली के आभिजात्य वर्ग के सम्पन्न युवाओं में भी आतंक का जहर घोल चुका है। गरीबी, अशिक्षा, पिछड़ेपन को आतंक का मूल कारण मानने वाला हमारे अंग्रेजी मीडिया का एक बड़ा वर्ग कदाचित इसीलिए शर्तुमुर्गी दृष्टि के साथ अमन की आशा जैसे राग अलापता रहा है जबकि अमेरिकी प्रशासन व सी. आई. ए. एवं एफ. बी. आई. अथवा होमलैंड सिक्यूरिटी जैसे एजेंसियां, बिना किसी राजनीतिक या प्रेस के दबाव के, निगरानी और जांच अपने तरह से करती रहती है। फैजल शहजाद के पिता पाकिस्तानी वायुसेना के सेवानिवृत एयर वाइस मार्शल बहारुल हक का पुत्र है और उसकी समाजिक और सरकारी पृष्ठभूमि यह सिद्ध करती हैकि वहाँ के उच्च पदों पर बैठे ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो आतंकवाद के समर्थक और पोषक हैं। शहजाद के पास सन 2003 से तीन पासपोर्टों में से दो पाकिस्तानी पासपोर्ट हैं और उनमें पहले कराची फिर बजीरिस्तान में विस्फोटकों का प्रशिक्षण लिया था। वैसे वह ब्रिजपोर्ट, कनेक्टीकट में रहने वाला अमेरिकी नागरिक बन चुका था। उसकी पत्नी हूमा डेनवेर के कोलरेडो से है। घटना के पहले शहजाद पाकिस्तान में पांच महीने रहकर 3 फरवरी, 2010 को अमेरिका लौटा था।सच तो यह है कि टाइम्स स्क्वायर जैसे पर्यटकों से सदैव व्यस्त रहने वाले जगह को गैसोलीन जैसे दूसरे विस्फोटकों से भी भरी ‘निसान पाथफाइंडर’ गाड़ी से उड़ाने के कुछ दिन पहले उसने टोह लेने के लिए व्यस्त ब्रॉडवे में भी एक रिहलसल या ड्राई रन किया था। साजिस को अजांम देने के बाद वह जॉन कै नेडी हवाई अड्डा से दुबई जाने वाले वायुयान में बैठ चुका था। पर एक खुफिया एजेंसी ने उसे वहीं दबोच लिया। शहजाद की पत्नी और दो बच्चे पहले हीं पाकिस्तान चले गए थे। उसके संबंधियों में जो लाहौर, रावलपिंडी, पेशावर और कराची में उच्च पदों पर रह चुके हैं उनकी जांच भी अमेरिका पाकिस्तान सरकार की मदद से करने का दावा कर रहा है। हमें भूलना नहीं चाहिए कि शहजाद 26/11 के मुंबई के नरसंहार जिसमें 166 से अधिक लोग मारे गए थे, उनके षड़यंत्रकारियों का भी मित्र रह चुका है जो जैशे-मोहम्मद से जुड़े थे। उनका मुखिया बैतुल्ला महसूद स्वयं शहजाद का परिवारिक मित्र रह चुका है।

आतंकवाद विरोधी अमेरिकी अभियान की रणनीति में ऐसी क्या बात है कि एक बार चोट खाने के बाद आज तक वे किसी भी हादसे की पुनरावृत्ति को रोक लेते हैं और अपनी पुलिस, सुरक्षा एजेंसियों व सैन्य बलों के मनोबल पर न किसी राजनीबाज या कथित प्रभावी मीडिया था। मानवाधिकार संगठनों के दबाव को बाधा के रूप में नहीं आने देते हैं। इस स्थिति की हद हम अपने देश के रूझानों से तुलना करें तो स्पष्ट है कि हमारे देश में बातें और नाटकीयता अधिक होती है साथ ही साथ सुरक्षा बलों व जाँच एजेंसियों के मनोबल से खिलवाड़ भी अधिक किया जाता है।

कुछ दिनों पहले चाहे नई दिल्ली के इंदिरा गांधी के नाम वाले अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे या देश के दूसरे बड़े हवाई अड्डों को आतंकवादियों की धमकी भरे ई-मेल की बात हो अथवा सुरक्षा एजेंसियों को गुप्त सूचनाएं या चेतावनी मिलने का प्रश्न हो, हमारी सरगर्मी या कवायद शुरू होकर थोड़े ही दिनों में भूला दी जाती है। इसी तरह कभी ई-मेल, टेलीफोन या समाचार-पत्रों अथवा टी. वी. की समाचार चैनलों द्वारा भी देश के विशिष्ट स्थानों को बम से उड़ाने की धमकियाँ या आगामी संदेश आते रहते हैं। सम्मानित आतंकवादी हादसों के टलने के बाद हम फिर सो जाते हैं। फिर अचानक किसी स्थान पर बम विस्फोट होता है तब कुछ दिनों तक हम शांति बनाए रखने के लिए और यथावत अपनी दिनचर्या चलाने के लिए अपनी पीठ ठोंकते हैं। अग्रिम सूचना जो लॉग मनोविद् या खिलवाड़ के बहाने भी पाते हैं उसमें चाहे अवयस्क हों या विक्षिप्त या मनोरोगी उन्हें सामान्यतः मुख्य रूप से हमारी सुरक्षा एजेंसियां नादानी या लापरवाही से तुरंत छोड़ भी देती हैं। असफल आतंकी कोशिशों को भी हमारी पुलिस बहुधा नजर अंदाज कर देती है और हमारे मीडिया वर्ग तो शक के दायरे में आए लोगों के पक्ष में बयानबाजी कर उल्टे पुलिस को हीं जांच समाप्त होने के पहले कटघरे में खड़ी कर देती है। हम फिर सो जाते हैं जब तक कि अगला आतंकवादी हादसा न हो जाए।

पर अमेरिका में ऐसी धमकियाँ या अफवाह फैलाने वालों को या किसी संभावित हादसे को निष्फल करने के बाद भी क्या होता है इसका हमारे देश में लोगों को अनुमान नही है। गुमनामी में रहकर ऐसे धमकी भरे संदेश देने वालों को या सुरक्षा एजेंसियों को बरगलाने के मंतव्य से ऐसी सूचनाएँ भेजने वाले को भी संभावित आतंकवादी की शृंखला का हिस्सा मानकर उसके मूल स्रोत तक पहुंचने की गंभीरता पूर्वक कोशिश की जाती है जिसमें चाहे कितना समय लग जाए। चाहे किशोर हो या बालक अथवा निरीह या मानसिक रोगी जैसा दिखने वाला सामान्य नागरिक हो यदि उसको एसी सूचना प्रेषित करने में लिप्त पाया जाता है तब सर्वप्रथम सुरक्षा एजेंसियों को संदेह होता है कि वह किसी दुर्दांत आतंकवादी समूह का मोहरा तो नहीं बनाया गया है। यही हमारे देश की सुरक्षा एजेंसियों को कार्यप्रणाली और अमेरिकी ‘होमलैंड सिक्यूरिटी’ की व्यवस्था में फर्क है।

यह जून, 2007 की बात है जब न्यूयार्क के जॉन एफ. कै नेडी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को आतंकवादियों द्वारा विस्फोटकों से उड़ाने की साजिस की गई थी। जहां हमारे देश में ऐसी धमकी पर सुरक्षा एजेंसियों मुस्तैद तो हो जाती हैं पर कुछ दिनों बाद खतरा टलने पर भूल जाती हैं पर अमेरिका में इसे उनकी प्रतिष्ठा पर आघात करने वाला मानकर एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर चुनौती के रूप में लिया गया क्योंकि यह सर्वाधिक महत्व के हवाई पारगमन बिंदू की रक्षा का प्रश्न था। फिर क्या था लगभग सारा देश सजग हो गया। यद्यपि यह षड़यंत्र विफल हो कर दिया गया जिसकी शुरूआत कई महीनों पहले नीचे स्तर के दिग्भ्रमित युवाओं द्वारा कराई गई थी और यदि यहां की सुरक्षा एजेंसियों ने इसे गंभीरता से न लिया होता तब बाद में वे अपने हिसाब से समय को चुनकर के एक ऐसा वीभत्स नरसंहार कर सकते थे जो शायद फिर सारे अमेरिका को हिला कर रख सकता था।

इस साजिस में हवाई अड्डे के साथ भूमिगत तेल की पाइपलाइनों को उड़ाना भी सम्मिलित था जो मीलों दूर से आकर अनेक स्टोरेज सुविधाओं के साथ विमान तल व उड़ान पहियों के नीचे से जाती हैं। कैनेडी एयरपोर्ट के तेल के टैंक ‘क्वींस’ नामक दरों से होकर आने वाली पाइपलाइनों से जुड़े हैं जिनका नेटवर्क न्यूजर्सी से शुरू होकर स्टेटन आईलैंड, ब्रूकलिन और प्रसिद्ध क्वीन्स से जुड़कर हवाई अड्डे तक जाता है। कई दिनों तक ‘न्यूयार्क टाईम्स’ व दूसरे प्रमुख दैनिकों में यही चर्चा होती रही थी कि हवाई अड्डे से लगी पाइप लाइनों व टैंकों की ध्वस्त करने से क्या दूसरे टैंकों की शृंखला में भी बिध्वंसकारी आग लग सकती थी।

इस संभावित हादसे के षड़यंत्र के पीछे छिपे लोगों का पर्दाफाश करने में ‘न्यूयार्क टाइम्स’ के 3 जून, 2007 के अंक में पूरे तीन पृष्ठों का विवरण एक शोध रिपोर्ट के रूप में उसके दस संवाददाताओं की अपनी रिपोर्टों के आधार पर छापा गया था जिनमें से कुछ दूरदराज बैठकर संबंधित आतंकवादी समूहों के अध्ययन के विशेषज्ञ भी थे। किस तरह सामान्य दिखने वाले स्थानीय लोगों के तार कहाँ तक जुड़े हो सकते हैं तथा किन आतंकवादी समूहों ने अतिरेकी इस्लामी विश्वासों की हिंसक प्रवृत्ति की घुट्टी उन्हें पिला रखी थी, इसका विस्तृत उल्लेख इस रिपोर्ट में है।

जॉन. एफ. कैनेडी अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट न्यूयार्क का एक राष्ट्रीय केंद्र बिंदू है।लगभग उसी तरह हमारी देश की राजधानी का भूतपूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर दिल्ली का विमान तल है। यहाँ से हर वर्ष लगभग 45 मिलियन यात्री गुजरते हैं जब कि न्यूयार्क में ही अंदरूनी उड़ानों के लिए नरगुर्डिया सहित एक और नौसेना का टर्मिनल है। दूसरा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा नवार्क में है जो न्यूर्याक से लगता है। सिर्फ केनेडी हवाई अड्डा से प्रतिदिन लगभग 1000 से अधिक उड़ानें भरी जाती हैं। सारा षड़यंत्र प्रारंभिक अवस्था में ही था और षड़यंत्रकारी विस्फोटकों व दूसरे संसाधनों का जुटाने की अपनी विस्तृत योजना अभी बना ही रहे थे।

इस प्रकरण में मूल रूप से चार व्यक्तियों पर साजिस का आरोप था। उनमें से गायना की पार्लियामेंट का एक मुस्लिम सदस्य 55 वर्षीय अब्दुल कादिर था जो गायना में मेयर भी रह चुका था। एक जमाने में वह कैनेडी हवाई अड्डे पर कार्गो लाने और ले-जाने को काम भी कर चुका था। इस आतंकवादी जाल में न्यूयार्क के ही ब्रूकलीन इलाके में रहने वाले दो और व्यक्ति थे जिनको ट्रिनिडाड में हिरासत में लिया गया था। यह सब इतनी शीघ्रता व सावधानी से न्यूयार्क की फे डरल ब्यूरोऑफ इन्वेस्टीगेशन के कार्यालय द्वारा किया गया कि सारा प्रकरण एक कहानी जैसा लगता है। वे चारों व्यक्तियों गायना और ट्रिनिडाड कई बार गए थे जहां ट्रिनिडाड कई बार गए थे जहाँ ट्रिनिडाड और टेबिंगो द्वीप में कर्यरत प्रभावी आतंकवादी संगठन जमात-अल-मुसलमीन से परामर्श और सहायता की चर्चा चल रही थी। यह वही संगठन है जिसने 1990 में ट्रिनिडाड में हिंसक वारदातों द्वारा सत्ता हथियाने की कोशिश की थी।

क्रिकेट के खेल से परिचित लोग भली भांति जानते होंगे कि वेस्ट इंडिज वेन्जुएला के उत्तरी पूर्वी समुद्र तट पर स्थित है जिसकी राजधानी पोर्ट-ऑफ स्पेन है और कुछ ही दूर आगे उत्तर पूर्व में टोबेगो द्वीप है। इन दिनों यहाँ लगभग 48 प्रतिशत अफ्रिकीमूल के लोग हैं और 40 प्रतिशत एशियाई देशों से हैं। आतंकवादी योजना को अंजाम दिए जाने के पहले अमेरिकी प्रशासन व एजेंसियों का कदम एक बड़े हिंसक हादसे को टालने में कारगर सिद्ध हुआ था।

सारे विवरण में एक हीं बात उभरती है कि सुरक्षा एजेंसियों के छोटे-से-छोटे कर्मचारी को अपने काम में न तो किसी स्थानीय राजनीतिज्ञ का हस्तक्षेप का भय या उनके कदम उठाने के पहले मीडिया को अनावश्यक टिप्पणी की और जांच प्रक्रिया के दौरान उनके अनपेक्षित उत्साह दिखाने का। राष्ट्रीय सुरक्षा पर किसी भी रूप में कोई समझौता यहाँ स्वीकार नही है। ‘जे. एफ. के एयरपोर्ट केस के नाम से पन्ने भी रंगे जा सकते हैं पर सारे प्रकरण के मूल में यह बात है कि यदि आतंकवाद से जूझने के लिए सही मायनों में कुछ करना होगा तो हमें पश्चिमी देशों से सीखना होगा।

एक सुरक्षा विशेषज्ञ की यह टिप्पणी कई बार दोहरायी गयी है – इजराइल या अमेरिका से सीखो, यदि आतंकवाद के राक्षस पर नकेल लगाना है तो।

* लेखक, अंतराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं।

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