बेटी बचाओ का प्रहसन कब तक…?

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विनोद उपाध्याय

मध्य प्रदेश में बेटियों को बचाने के नाम पर सरकार द्वारा हर वर्ष करोड़ों रूपए स्वाहा किए जा रहे हैं लेकिन न तो बेटियां बच रही हैं और ना ही उनकी अस्मत। हालात यह है कि देश में बालिकाओं के साथ सवार्धिक बलात्कार और अत्याचार मध्य प्रदेश में हो रहा है। अब जब प्रदेश में हालात नाजुक हो गए हैं तो सरकार ने बेटी बचाओ अभियान शुरू किया है। सरकार के इस कदम को चहूं ओर सराहा जा रहा है। लेकिन विसंगति की एक तस्वीर यह देखिए की ‘बेटी बचाओ’ अभियान के नाम पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिस समय अपने निवास पर बेटियों की चरण वंदना कर खुश हो रहे थे, उसी समय एक ऐसी बच्ची भी खबरों में थी, जिसके तीन पिता हैं? प्राइमरी स्कूल में पढऩे वाली इस बच्ची के प्रमाण-पत्र में तीन ‘पिताओं’ के नाम दर्ज है? इन पिताओं की महानता यह है कि इन पर बच्ची की मां का बलात्कार का आरोप था।

मामले की तह तक जाने के लिए हमें आज से आठ साल पीछे जाना होगा। जबलपुर के डिंडोरी के निगवानी गांव में वर्ष 2003 पंद्रह साल की एक लड़की अपने गरीब बाप का हाथ बंटाने के लिए मजदूरी का काम करती है। मजदूरी कराने वाला ठेकेदार लड़की पर बुरी नजऱ रखता था और एक दिन मौका देखकर अपने दो साथियों के साथ उसकी अस्मत को तार-तार कर देता है। लड़की डर के मारे घर पर कुछ नहीं बताती,लेकिन कब तक ? खुद तो मुंह सिल सकती थी, लेकिन पेट में आई नन्ही जान को कब तक छुपाती। आखिर पिता को बताना ही पड़ा कि किन तीन वहशियों ने उसके साथ दरिंदगी की थी। ठेकेदार समेत तीनों आरोपियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई,लेकिन पैसे और रसूख के आगे बेचारी लड़की और उसके गरीब पिता की लड़ाई कहां तक चल पाती। पीडि़ता के पिता ने जिन तीन लोगों का नाम लिया, ठेकेदार- मल्लेसिंह, ओमप्रकाश और बसंत दास। मुकदमे के दौरान ही लड़की आरोपों से मुकर गई, क्योंकि परिवार झंझट में नहीं पडऩा चाहता था। पिताओं की महान परंपरा और पौरुषेय उद्दंडता का इससे असंवेदनशील वाकया सुना है क्या?

यहां तक तो थी लड़की की कहानी। लेकिन लड़की ने जिस मासूम को जन्म दिया उसके साथ क्या हुआ ये जानकार किसी का भी कलेजा मुंह को आएगा। मासूम का नाना निगवानी पंचायत से उसका जन्म प्रमाण पत्र बनवाने गया तो ऐसा भद्दा मज़ाक किया गया जिसका दर्द बलात्कार से भी बड़ा है। बच्ची का जो जन्म प्रमाणपत्र जारी किया गया उसमें पिता के नाम के तौर उन तीनों लोगों का नाम लिख दिया गया, जिन पर बलात्कार का आरोप लगा था।

आज सात साल की हो गई उस लड़की का कोई जायज पिता भले न हो, पर उसके जन्म प्रमाणपत्र में ‘पिता का नाम’ वाले स्थान में तीन लोगों के नाम हैं। लेकिन यह सवाल आज हर किसी को सोचने पर मजबूर कर रहा है कि उक्त जन्म प्रमाणपत्र जारी करते हुए एक बार भी नहीं सोचा गया कि बच्ची बड़ी होगा तो उस पर क्या बीतेगी। सात साल की मासूम अब दूसरी क्लास में पढ़ रही है। औसत बच्चों से वह ज़्यादा होशियार है। अभी उन बातों को मतलब नहीं समझता होगा जो उसकी मां के साथ बीती। लेकिन जैसे जैसे यह बच्ची बड़ी होगी, समझने लायक होगी तो भावनात्मक रूप से उस पर क्या असर होगा, ये सोच कर ही दहल उठता है। इस मामले को संवेदनहीनता की मिसाल मानते हुए एसडीएम (डिंडोरी) कामेश्वर चौबे ने कहा कि वे निजी तौर पर मानते हैं कि अगर यह प्रमाण पत्र सही है, तो भी यह कैसे जारी किया गया और इस मामले में सख्त कार्रवाई करेंगे। चौबे ने बताया कि जिस प्राइमरी स्कूल में बच्ची पढ़ती है, वहां के रिकार्ड में ‘पिता का नामÓ वाला कॉलम खाली रखा गया था। उसके जन्म प्रमाणपत्र में यह असमान्य प्रविष्टि उस समय सामने आई जब बच्ची को दाखिले के लिए स्कूल लाया गया। यह जन्म प्रमाणपत्र पंचायत ने जारी किया था। यह व्यथा भले ही एक बच्ची की है लेकिन इसी की तरह हजारों और बच्चियां हैं जो अपने अस्तित्व को लेकर संघर्षरत हैं।

प्रदेश में लाडली को बचाने की योजना का फायदा आम जनता को कितना हो रहा है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि जिस दिन मुख्यमंत्री ने बेटी बचाओ योजना की शुरूआत की उसके अगले दिन बुरहानपुर जिले के शिकारपुरा थाना क्षेत्र के बोहरड़ा गांव में एक नवजात बालिका को जिंदा जमीन में दफनाने का मामला सामने आया। हालांकि नवजात बच्ची को बचा लिया गया। यही नहीं मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के पूर्व विधायक और कांग्रेस जिला अध्यक्ष पीसी शर्मा ने कुछ ऐसी बच्चियों को सामने लाकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से सवाल करते हैं कि इन बेटियों को बचाने के लिए सरकार कब कदम उठाएगी। शर्मा कहते हैं कि भाजपा सरकार और उसके मुख्यमंत्री द्वारा बेटी बचाने का आह्वान करने वाले विज्ञापनों और होर्डिगों से किस क्रांति की कल्पना की जा रही है, यह तो प्रदेश का मुखिया ही बता सकता है। समूचे देश में ही औरतों की ऐसी दुर्दशा है कि हर तरफ बचाओ-बचाओ की पुकार मची है।

सवर्ण समाज पार्टी की अध्यक्ष अर्चना श्रीवास्तव कहती हैं कि औरत और मर्द को ऊपर वाले ने एक ही माटी से रचा है, लेकिन मां के गर्भ में आने के साथ की औरत (कन्या भ्रूण) को बचाओ-बचाओ का सहारा लेना पड़ता है जो जीवन पर्यंत जारी रहता है। आखिर इस बचाओ-बचाओ से कब तक मुक्ति मिलेगी। वे कहती हैं कि सूचना प्रसारण मंत्रालय को किसी फिल्म में नायिका के वक्ष की नग्नता कुछ दृश्यों में इतनी खटकी है कि उसे यह स्त्री को अपमानित करने वाली लगती है, जिसके खिलाफ वह गंभीर कदम उठाने को उतावला हो जाता है। लेकिन उनको बच्ची के प्रमाण पत्र पर चस्पा तीन बाप नहीं दिख सकते, इनके नामों से किसी को जलालत नहीं होती।

राज्य की पूर्व मुख्य सचिव तथा बाल अधिकार संरक्षण (चाइल्ड राइट ऑब्जर्वेटरी) की निर्मला बुच कहती हैं कि योजनाओं व रैलियों से बालिकाओं की रक्षा नहीं होने वाली है। इसके लिए जरूरी है कि कानून का सहारा लिया जाए।

मध्य प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष अर्चना जायसवाल कहती हैं कि भाजपा का बेटी बचाओ अभियान महज छलावा मात्र है। सरकार ने प्रदेश में बच्चियों तथा महिलाओं के संरक्षण के लिए पीछले आठ सालों से दावे कर रही है लेकिन पिछले तीन सालों में ही साढ़े तीन सौ महिलाओं को जिन्दा जलाए जाने के मामले प्रकाश में आए हैं। व कहती हैं कि पिछले तीन सालों में ग्वालियर में 23, दतिया में 21, इंदौर में 20, सागर में 17, छिंदवाड़ा और विदिशा में 15 -15, सतना में 13, राजधानी भोपाल में 12, नरसिंहपुर में 11 तो संस्कारधानी जबलपुर में 10, देवास, छतरपुर, भिण्ड, शिवपुरी में 9-9, डिंडोरी, धार कटनी में 8-8, मुरेना, मंदसौर, उज्जैन एवं बड़वानी में 7-7, हरदा, गुना, टीकमगढ़ और खरगोन में 6-6, मण्डला, अशोक नगर, सीहोर और होशंगाबाद में 5-5, शाजापुर और नीमच में 4-4, बैतूल व खण्डवा में 3-3, रीवा बुरहानपुर में 2-2 तथा रतलाम, सिंगरोली, उमरिया, पन्ना और झाबुआ में 1-1 महिलाओं को जिन्दा जला दिया गया। ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि भाजपा सरकार का बेटी बचाओ अभियान की हकीकत क्या है।

एनसीआरबी द्वारा 2009-10 के आंकड़ों के अनुसार मप्र में 1071 बालिकाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं हुईं। यह देश में हुई इन घटनाओं का 20 प्रतिशत थी। उधर, राष्ट्रीय महिला आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा बाल विवाह भी मप्र में ही होते हैं। इसके अनुसार मप्र में लगभग 70 प्रतिशत बालिकाओं का विवाह 18 वर्ष के पहले हो जाता है। ये सभी आंकड़े मप्र में बच्चों एवं महिलाओं से संबंधित चल रहे विभिन्न कल्याणकारी कार्यो पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं।

शिवराजसिंह ने ‘लाड़ली’ को बचाने के लिए यह अच्छी तरकीब तजवीज की है और इसके नतीजे अच्छे आ सकते हैं। इसके लिए सरकार को सजग होना पड़ेगा। अभी हाल ही में राज्य सरकार ने लड़कियों की आबादी बढ़ाने की गरज से लड़कियों के मां-पिता को पेंशन देने की योजना शुरू की है।

पेंशन की धनराशि ही तय करेगी कि बच्ची का पैदा होना कम होगा या ज्यादा। फिर पचपन साल के होने पर मिलेगी यह पेंशन। तब तक तो लड़की ‘परायी’ कर दी जाएगी। इतना धैर्य अगर मां-पिता देखने लगे तो बेटी-हत्या बंद ही हो जाए। यह भी सच है कि पेंशन के लिए कोई बेटी पैदा नहीं करना चाहेगा, लेकिन यह जरूर हो सकता है कि पेंशन के लालच में बेटी को पैदा होने दिया जाए। यहां यह विचार आ सकता है कि बेटी के बदले पेंशन क्या इसलिए दी जा रही है कि बेटा होता तो मां-बाप की सेवा करता, उन्हें अपने पास रखता या पालता क्या सारे बेटे ऐसे ही होते हैं क्या बेटों के मां-पिता भी अनाथालय में दिन नहीं गुजार रहे हैं क्या जमीन-जायदाद के लिए मां- पिता को ठिकाने लगाने वाले बेटों के नमूने कम हैं सबसे अहम बात यही है कि बेटे और बेटी का फर्क महसूस करने वाली मानसिकता को बदलना होगा। क्या आज भी पढ़े-लिखे और अपने आपको बुद्धिजीवी समझने और कहलाने वाले लड़के की चाह में लड़कियां पैदा नहीं करते रहे हैं इस वक्त में एक परिवार-एक बच्चे की सबसे ज्यादा जरूरत है…फिर वह लड़की ही क्यों न हो। चीन को हम और किसी तरह तो नहीं लेकिन हां, आबादी के मामले में जरूर पछाडऩे जा रहे हैं। सरकार तो पैसा दे सकती है, लेकिन अच्छे-बुरे के फैसले हमें खुद ही करना होंगे। मध्यप्रदेश में लड़कियों की घटती आबादी को रोकने के लिए हमारी समझ ज्यादा जरूरी है…बजाय किसी लालच के!

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विनोद उपाध्याय
भगवान श्री राम की तपोभूमि और शेरशाह शूरी की कर्मभूमि ब्याघ्रसर यानी बक्सर (बिहार) के पास गंगा मैया की गोद में बसे गांव मझरिया की गलियों से निकलकर रोजगार की तलाश में जब मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल आया था तब मैंने सोचा भी नहीं था कि पत्रकारिता मेरी रणभूमि बनेगी। वर्ष 2002 में भोपाल में एक व्यवसायी जानकार की सिफारिश पर मैंने दैनिक राष्ट्रीय हिन्दी मेल से पत्रकारिता जगत में प्रवेश किया। वर्ष 2005 में जब सांध्य अग्रिबाण भोपाल से शुरू हुआ तो मैं उससे जुड़ गया तब से आज भी वहीं जमा हुआ हूं।

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