कैसी जल नीति

राष्ट्रीय जल नीति ड्राफ्ट 2012 में सरकार जल का निजीकरण करने और जल को आर्थिक वस्तु बनाने पर तुली है। जल के रख-रखाव और वितरण के लिए सार्वजनिक निजी साझेदारी (पीपीपी मॉडल) को अपनाने की योजना बनाई गई है।

 

जल एक प्राकृतिक संसाधन है। जिस पर हर वर्ग का अधिकार है, लेकिन अब यह प्राकृतिक संसाधन कुछ प्रभावशाली लोगों और निजी कंपनी तक ही सिमट जाएगा। पिछले एक दशक से जिस तरह पानी माफिया बढ़ रहा है और मुनाफा कमा रहा है। नई जल नीति से पानी माफियों को और बढ़ावा मिलेगा।

 

नई नीति में जल से अधिकतम लाभ कमाने का उद्देश्य रखा गया है और इसमें बिजली और पानी दोनों को महंगा करने को भी कहा गया है, ताकि इनका दुरुपयोग कम हो सकें। इस नीति के तहत सरकार की भूमिका केवल नियमन तक सीमित रहेगी। वहीं, एक स्वायत्त इकाई का गठन भी किया जाएगा, जो जल कंपनी के लिए लागत और उचित लाभ मुक्त मूल्य निर्धारित करेगी। यह स्वायत्त इकाई जनदबाव और सरकारी नियंत्रण से मुक्त होगी।

 

इन प्रावधानों को देखकर कहा जा सकता है कि सरकार अब जल को मुनाफे की वस्तु के तौर पर देख रही है, जो सही नहीं है। जल के निजीकरण के पीछे सरकार का तर्क है कि जैसे बिजली की हालत में सुधार आया है और बिजली का दुरुपयोग कम हुआ है। वैसे ही अब जल की हालत में भी सुधार आयेगा। क्या सिर्फ जल के निजीकरण और कीमतों को बढ़ाकर ही पानी के दुरुपयोग को रोका जा सकता है। जबकि हकीकत तो यह है कि जो प्रभावशाली तबका है, वहीं जल का दुरुपयोग कर रहा है और वह कीमतें बढ़ने के भी जल की कीमत को नहीं समझेगा। क्योंकि जो दूसरा तबका है, उसे इतना जल मुहैया ही नहीं हो पा रहा है कि वह जल का दुरुपयोग कर पाए। ऐसे में जब जल की कीमतें और बढ़ जाएंगी, तो उसे जल से पूरी तरह वंचित होना पड़ेगा, जोकि मानवाधिकारों का हनन है। जल को हर तबके को उपलब्ध करना सरकार का दायित्व है। जल को केवल वस्तु नहीं माना जा सकता, यह जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है।

 

वहीं, जब स्वायत्त इकाई जनदबाव और सरकारी नियंत्रण से मुक्त रहेगी, तो मनमर्जी से कीमतों में बढ़ोतरी की जाएगी जैसे आज बिजली के क्षेत्र में हो रहा है, एक तरफ बिजली कंपनियां घाटा दिखती है, जबकि उन्हें मुनाफा हो रहा है।

इस ड्राफ्ट के बाद अभी हाल ही में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि एक से डेढ़ साल में निजीकरण की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। तो वहीं पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर मालवीय नगर, वसंत विहार और नरेला में मीटर रीडिंग व बिलिंग का काम पहले ही निजी हाथों में सौंपा जा चुका हैं। यानि जल निजीकरण की प्रक्रिया को अंजाम देने की पूरी तैयारियां कर ली गई है।

 

जल के निजीकरण से असमानता बढ़ेगी और जल गरीब तबके की पहुंच से दूर हो जाएगा। अब जल का उपयोग वहीं कर पायेगा, जो उसकी कीमत चुका पायेगा और जल के निजीकरण की मार सबसे ज्यादा उस किसान पर पड़ेगी, जो पहले ही फसल की लागत भी नहीं निकाल पाता है। अब उस किसान के लिए खेती और महंगी होगी।

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