सिवनी। नगरपालिका चुनावों में कांग्रेस के पक्ष में दिख रहे माहौल के बाद भी अध्यक्ष पद के इंका प्रत्याशी संजय भारद्वाज की हार को लेकर विश्लेषण का दौर जारी हैं। इस चुनाव में जीतने वाली भाजपा में भी स्वयं यह चर्चा हो रही है कि आखिर राजेश त्रिवेदी जीत कैसे गये?
पहली बार जहां भाजपा में खुले आम फूट दिखायी दे रही थी तो दूसरी ओर कांग्रेस अपेक्षाकृत अधिक संगठित दिखायी दे रही थी। जिला भाजपा अध्यक्ष सुदर्शन बाझल और नगर भाजपा अध्यक्ष सुजीत जैन स्वयं टिकिट की दौड़ में शामिल थेजिन्हें पूर्व विधायक नरेश दिवाकर का समर्थन हासिल था। विधायक नीता पटेरिया का दांव अन्य लोगों पर लगा हुआ था।लेकिन टिकिट लाने में राजेश त्रिवेदी सफल हो गये। परंपरा के विपरीत जिले के भाजपा के संगठन मंत्री ने स्वयं चुनाव की कमान संभाली और सभी को एक जुट करने का प्रयास किया। राजेश समर्थकों की बात को यदि सही माने तो उनका आज भी यह मानना हैं कि जिला भाजपा सहित सभी प्रथम पंक्ति के नेता सिर्फ चुनावी औपचारिकता निभा रहे थे। उनका यह भी मानना हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यहां आनार ही राजेश के लिये निर्णायक एवं एक मात्र कारण रहा जिसकी वजह से वे चुनाव जीते।
दूसरी तरफ इंका प्रत्याशी संजय भारद्वाज के पक्ष में इस बार कांग्रेस कुछ अधिक ही संगठित दिखायी दे रही थी। लेकिन चुनाव शुरू होने के पहले से ही कांग्रेस के अंदर खेले गये माइनरटी कार्ड के डेमैज को रोका नहीं जा सका। यह कार्ड कैसे और किसने चलाया? इसे लेकर तरह तरह की चर्चायें व्याप्त हैं। प्रदेश इंका के उपाध्यक्ष एवं जिले के इकलौते इंका विधायक हरवंश सिंह ने भी शहर की सड़कों पर घूम घूम कर जनता से वोट मांग कर संजय को जिताने की अपील की थी। अपनी रणनीति के तहत उन्होंने ठाकुर,जैन,अग्रवाल समाज की बैठके भी लीं। मुस्लिम समाज के चंद नेताओं से भी चर्चा कर कांग्रेस के पक्ष में काम करने की पहल भी की थी। लेकिन शहर में मुस्लिम समाज के बाद सबसे बड़े वोट बैंक ब्राम्हण समाज की बैठक क्यों नहीं ली? जबकि सर्ववर्गीय ब्राम्हण समाज के अधिकांश पदाधिकारियों की पहचान हरवंश समर्थकों के रूप में ही हैं। इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण फेक्टर यह भी था कि भाजपा का उम्मीदवार ब्राम्हण समाज का ही था और उसके लिये सामाजिक मतदाता लामबंद हो रहे थे। राजनीति और कूटनीति में महारथ रखने वाले हरवंश सिंह का यह कदम कई सियासी संकेतों को देनें वाला साबित हुआ हैं।
इंका प्रत्याशी का जन संपर्क और निकली विशाल रैली से ऐसा प्रतीत होने लगा था कि जीत कांग्रेस की ही होगी। लेकिन पिछले पंद्रह सालों से कांग्रेस में अपना एक तरफा वर्चस्व कायम रखने वाले हरवंश सिंह के कई समर्थ इंका नेता और पदाधिकारियों की भूमिका इस चुनाव में रस्म अदायगी की तरह ही रही। इसे लेकर जहां एक ओर हरवंश समर्थक नेताओं का कहना हैं कि उन्होंने तो उन तमाम नेताओं को बहुत समझाया और कांग्रेस का काम करने के लिये कहा लेकिन वे माने ही नहीं। जबकि कुछ अन्य नेताओं का यह मानना है कि हरवंश सिंह ने भी अपने समर्थकों को मनाने की रस्म अदायगी ही की थी वरना सालों से उनके इशारे पर नाचने वाले ये नेता उनका कहा टालने का साहस जुटा ही नहीं सकते हैं। अब यह तो एक खोज का विषय बन कर रह गया है कि हरवंश सिंह ने अपने समर्थकों को बहुत मनाया और वे नहीं माने या उन्होंने मनाया ही नहीं।