इंसान पर भारी खेल

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-सतीश सिंह

राष्‍ट्रमंडल खेल के शुरु होने से पहले खेल की तैयारी को लेकर जिस तरह से रोज नाटक हो रहे हैं, वह निश्चित रुप से अफसोसजनक है। भारत विश्‍व का ही एक हिस्सा है और यहाँ पर होने वाले हलचलों से विश्‍व के अन्य देश भी बखूबी अवगत हैं। ऐसे में दिल्ली को सजाने-संवारने और खेल गांव व स्टेडियम को माकूल तरीके से चाक-चौबंद करने के लिए जिस तरह से रंगमंच पर रोज पक्ष-विपक्ष में महाभारत के समान घमासान हो रहा है। उसकी जितनी भी निंदा की जाए, वह कम है।

भारत जैसे तथाकथित विकासषील देष में जहाँ विकास आंकड़ों की बाजीगरी के द्वारा किया जाता है में राष्ट्रमंडल खेल के आयोजन की बात सोचना ही एक क्रूर मजाक करने के समान है, क्योंकि आज भी भारत के 60 फीसदी लोग प्रतिदिन दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने के लिए संघर्ष करने के बावजूद भी आधे पेट पानी पीकर सो जाते हैं।

इसे विडम्बना ही कहेंगे कि दिल्ली के गरीबों की गरीबी दूर करने के बजाए दिल्ली को सुंदर बनाने की कवायद में और दुनिया के सामने अपनी झूठी शान बघारने के लिए दिल्ली एवं केन्द्र सरकार दिल्ली को भिखारियों से मुक्त करना चाहती है। शुतूरमुर्ग की तरह रेत के ढेर में मुँह छिपाने से क्या सच को हम बदल सकते हैं? भारत के क्या हालत हैं, क्या यह दुनिया के देषों से छुपा है?

सूत्रों के मुताबिक राष्ट्रमंडल खेल के लिए 24 फ्लाई ओवर, 3 स्टेडियम, 1,070 किलोमीटर लंबी लेन, 31 फुट ओवर ब्रिज, 450 किलोमीटर लंबी स्ट्रीट में प्रकाष का इंतजाम, 150 किलोमीटर के रेंज में साईनेज की व्यवस्था, 1 पावर प्लांट, 1 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, 1 वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट,1 बस पार्किंग, जहाँ तकरीबन 1000 बसों की पार्किंग की जा सके आदि का निर्माण अभी भी होना बाकी है। उल्लेखनीय है कि अभी तक किसी भी परियोजना को अंतिम रुप नहीं दिया जा सका है।

इसके अलावा एनसीआर में भी सौंर्दयीकरण के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे हैं, पर वहाँ भी बदलाव कहीं दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है।

इन भानुमती के पिटारों को नफासत के साथ खोलने लिए शुरु में कुल 63,284 करोड़ रुपयों के खर्च होने का अनुमान लगाया गया था। इसमें दिल्ली सरकार अपना योगदान 16,580 करोड़ रुपयों की शक्ल में देने वाली थी। पर अब ताजा आकलन के अनुसार सभी परियोजनाओं को पूरा करने में 80,000 करोड़ से भी ज्यादा के खर्च होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

अक्टूबर में राष्ट्रमंडल खेल होना है, पर इसका निर्णय 8 साल पहले लिया गया था। फिर भी अभी तक पुराने स्टेडियमों के मरम्मत का कार्य चल ही रहा है। खेल गाँव के तैयार होने में और वक्त लगने की संभावना है। खेल गाँव से जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम तक सुरंग का निर्माण अभी भी अधर में लटका हुआ है।

लगभग 125 किलोमीटर तक टाईल्स लगनी है। दिलचस्प बात यह है कि एक तरफ से टाईल्स लगायी जा रही है तो दूसरी तरफ से वही टाईल्स उखड़ भी रही है। महँगे निर्माण सामग्रियों का खुलेआम चोरी हो रहा है। फ्लाई ओवरों के नीचे रहने वाले गरीबों को हटाकर वहाँ पर गमलों को रखने का काम जोर-शोर से चल रहा है। दरअसल सरकार चाहती है कि एक स्टेडियम से दूसरे स्टेडियम जाने के क्रम में खिलाड़ियों को गरीब या झुग्गी-झोपड़ी न दिखायी दें।

आज की तारीख में पूरी दिल्ली खुदी पड़ी है। खुदाई के कारण एमटीएनएल से लेकर दुरसंचार की सेवा उपलब्ध करवाने वाली हर कंपनी और उपभोक्ता टेलीफोन के तारों के कटने के कारण हैरान-परेषान हैं। खुदाई और मलबों की वजह से रोज कोई न कोई दुर्घटना हो रही है। दिल्ली का दिल कहे जाने वाले क्नॉट सर्कस की हालत बदतर है। वह सचमुच का सर्कस बन गया है। ठीक-ठाक बारिश का आना अभी बाकी है। जब बारिश दिल्ली आ जाएगी तो दिल्ली वासियों का क्या हाल होगा, इसकी कल्पना करना भी दु:स्वप्न के समान है?

तुर्रा यह है कि राष्ट्रमंडल खेल को सुचारु रुप से संचालित करने के लिए नये कानून बनाये जा रहे हैं। साथ ही पुराने कानूनों में भी फेर-बदल किया जा रहा है। बाहर से आने वाले आराम से और सस्ती दरों में दिल्ली में रह सकें इसके लिए 1000 रुपयों में पेइंग गेस्ट रखने वालों को कर से मुक्त करने का प्रस्ताव है। नये पाँच सितारा होटल खोलने के लिए लाइसेंस दिये जा रहे हैं। दिल्ली विश्‍वविद्यालय के हॉस्टल तक को 2-3 महीनों के लिए खाली करवाये जाने की योजना है।

अथितियों को ठहरने के लिए पहले 40,000 कमरों की जरुरत बताई जा रही थी। लेकिन लगता है कि अब नेता व अधिकारी गणित भूल गये हैं। सभी ने वास्तविक कमरों की जरुरत बारे में चुप्पी साध ली है। सचमुच ऐसी स्थिति का निर्माण किसी विडम्बना से कम नहीं है।

विपक्ष, समाज और इंसानियतपरक खेल आयोजन की बात कह रहा है। उनकी सुर में सुर मिलाते हुए सत्ता पक्ष के पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिषंकर अय्यर भी इस खेल के ढीले पेचों को कसने की जरुरत पर बल दे रहे हैं। इन सभी का मानना है कि राष्ट्रमंडल खेल के लिए जो तैयारी चल रही है, उससे दिल्ली के मात्र 20 फीसदी हिस्से को ही फायदा पहँच रहा है। 80 फीसदी दिल्ली वाले, जहाँ अधिकांशत गरीब लोग निवास करते हैं आज भी बिजली, पानी, सड़क, सीवर, अस्तपताल, और स्कूल जैसी बुनियादी और आधारभूत कमियों से जुझ रहा है।

दिल्ली और केन्द्र सरकार द्वारा लगातार लिए जा रहे मूर्खता पूर्ण निर्णयों के कारण अब दिल्ली सरकार की फजीहत हो रही है। रही-सही कसर को पूरा कर दिया है हाल ही के दिनों में हुई बारिश और केन्द्रीय सर्तकता आयोग(सीवीसी) द्वारा प्रकाशित की गई हालिया रपट ने। सीवीसी के द्वारा की गई जांच में यह तथ्य उभर कर सामने आया है कि निर्माण कार्यों में भीषण तरीके से अनियमितता बरती गई है साथ ही साथ स्थापित मानकों का भी जमकर उल्लघंन किया गया है।

सीवीसी ने यह भी कहा है कि अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत के चलते न सिर्फ तय गुणवत्ता को नकारा ही गया है, वरन् अरबों-खरबों रुपयों की हेराफेरी भी की गई है। वैसे तो घपला करने वालों की फेहरिस्त बहुत लंबी है, फिर भी दिल्ली विकास प्राधिकरण, लोकनिर्माण विभाग, नगर निगम इतदि का नाम इनमें से प्रमुखता के साथ लिया जा सकता है।

सीवीसी की रपट में स्पष्ट रुप से कहा गया है कि परियोजनाओं के लागत को बढ़ाने और अतिरिक्त धन मंजूर करवाने के लिए सुनियोजित तरीके से खेल खेला गया है। ठेके देते समय और निविदा को अंतिम रुप देते हुए अनुभव और विशेषज्ञता का तनिक भी ख्याल नहीं रखा गया है। जांच में निर्माण का कार्य ऐसे लोग करते पाए गए हैं, जिनका कभी भी निर्माण के कार्य से दूर-दूर तक का रिष्ता नहीं रहा है।

भ्रष्टाचार के इस खेल में निविदाएं मंजूर करने के बाद भी कंपनियों और ठेकेदारों को अतिरिक्त धन मुहैया करवाया गया। रात की पाली में काम करने के लिए ठेकेदारों को 100 की जगह 200 रुपये दिये गये। बावजूद इसके रात की पाली में कभी भी काम नहीं हो सका। सरकार ने अपना खजाना खोल रखा है। किंतु राष्ट्रमंडल खेल के लिए दिल्ली सितम्बर तक तैयार हो जाएगी इसकी भविष्यवाणी पॉल बाबा भी नहीं कर सकते हैं।

यह जरुर है कि जब राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन की जिम्मेदारी भारत को मिली थी और दिल्ली की सरकार ने जिस तरह से समय पर सफल आयोजन करवाने का दम भरा था, उसकी आज पूरी तरह से हवा निकल चुकी है।

‘रस्सी जल जाए पर ऐंठन न जाए’ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति के अध्‍यक्ष श्री सुरेश कलमाडी ने सिरे से सीवीसी के आरोपों को खारिज कर दिया है। ये वही सुरेश कलमाडी हैं जिन्होंने खेल की तैयारी को मूर्त देने की जिम्मेदारी से भी अपना पल्ला झाड़ लिया है।

सीवीसी के बाद अब प्रवर्तन निदेशालय भी आर्थिक घोटले की जांच करने वाली है। निदेशालय इसके लिए खेल के समापन तक इंतजार करने के मूड में नहीं है। निदेशालय के अनुसार इस महाघोटाले में लंदन की एक विवादित कंपनी ए .एम. फिल्म भी शामिल है। राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति के दो सदस्य श्री टी. एस. दरबारी और श्री संजय महेन्द्रू के तार इस कंपनी से जुड़े हुए हैं।

इसके बरक्स में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसी राष्ट्रमंडल खेल के आयोजन के लिए दिल्ली सरकार ने परिवहन किराया, संपत्ति कर, रसोई गैस, पीने का पानी इत्यादि तक के दाम बढ़ा चुकी है।

ज्ञातव्य है कि इस खेल के लिए अनुसूचित जाति कल्याण कोष के करोड़ों रुपयों तक की बलि दे दी गई है। यह तथ्य सूचना के अधिकार तहत जानकारी मांगने के पष्चात् हमारे समक्ष आई है।

सवाल यह है कि खेल की तैयारी को लेकर जिस तरह से इंसानों की अनदेखी की गई है, उसकी भरपाई कौन करेगा? गरीब जनता के खून-पसीने की कमाई का इस तरह से बेजा इस्तेमाल करना सरकार के दोगलेपन का परिचायक है। पर जो सरकार अब तक मंहगाई पर लगाम नहीं लगा पाई, वह दिल्ली के गरीब और मुफलिसी में जीने वाले इंसानों का कुछ भला करेगी, ऐसा सोचना मूर्खता के सिवाए कुछ नहीं होगा।

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