भ्रष्टाचारी पति की पत्नी को भी मिली सजा

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corruptionप्रमोद भार्गव

भ्रष्टाचारी पतियों की पतिनयों को भी सजा दिये जाने का सिलसिला देश में आगे बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश में पहली बार विशेष नयायालय ने आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में पति के साथ पत्नी को भी 3 साल की कैद और 25 हजार के जुर्माने की सजा सुनार्इ है। उनके पति एवं वन परिक्षित अधिकारी हरिशंकर गुर्जर को 4 साल की कैद और एक करोड़ के जुर्माने की सजा दी है। खण्डवा जिले के कालीभीत तहसील में तैनात इस रैंजर के यहां 13 जुलार्इ 2009 को लोकायुक्त ने छापामार कार्यवाही कर 1.28 करोड़ अनुपात हीन संपत्ति बरामद की थी। इस फैसले ने तय किया है कि काली कमार्इ करने वाले लोकसेवकों के परिजनों पर भी अब कानून का शिकंजा कसेगा। इन्हें अब भ्रष्टाचार पर परदा डालने का आरोपी बनाया जाकर जुर्म में बराबर का भागीदार माना जाएगा।

इस तरह के फैसले देने की शुरुआत दिल्ली की सीबीआर्इ अदालत ने अनूठा फैसला सुनाकर की थी। दण्ड का भय कायम करने की दृष्टि से यह शानदार मिशाल थी। दिल्ली में सीबीआर्इ विशेष न्यायालय के जज धर्मेश शर्मा ने दिल्ली नगर निगम के इंजीनियर आर के डवास को रिश्वत तथा भ्रष्टाचार का दोषी पाते हुए तीन साल की सश्रम कैद और पांच लाख के जुर्माने की सजा दी थी। साथ ही आरोपी की पत्नी को एक साल की साधारण कैद अथवा ढार्इ लाख रूपए जुर्माने की सजा सुनाकर ऐतिहासिक फैसला दिया था। जज ने स्पष्ट किया था कि आरोपी की पत्नी घरेलू महिला जरूर है, लेकिन वह अपने पति को काली कमार्इ के लिए उकसाती थी और इस कमार्इ से चल व अचल संपत्ति जोड़ती थी। इस सिलसिले में पर्याप्त प्रमाण पुष्टि के लिए अदालत में पेश किए गए हैं। तय है पत्नी को पति के भ्रष्ट कदाचरण की जानकारी थी। इस हालत में पत्नी का फर्ज बनता था कि वह अपने पति को गलत काम करने से रोके। लेकिन ऐसा न करते हुए वह पति की काली करतूत में भागीदार बनकर संपत्ति जोड़ने में शामिल हो गर्इ। लिहाजा पत्नी भी सजा की बराबर हकदार है।

इस फैसले के बाद मुबंर्इ उच्च न्यायालय ने 4 अप्रैल 2008 को भास्कर बाग की पत्नी मंगला को तीन साल की सश्रम कैद तथा 2 लाख के जुर्माने की सजा सुनार्इ थी। 8 मर्इ 2008 को जम्मू कश्मीर की भ्रष्टाचार रोक अदालत ने एक इंजीनियर को उसकी पत्नी के साथ सजा दी थी। अब खण्डवा की विशेष अदालत ने इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए नया इतिहास रच दिया है।

यदि अदालतें विवेक से फैसला लेते हुए भ्रष्टाचारी पतियों की पतिनयों और बालिग बच्चों को सजा देने लगेंगी तो निश्चित रूप से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने की उम्मीद की जा सकती है। लगता है कि यह सिलसिला अब शुरू हो जाएगा। केंद्रीय मंत्री बीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को भी भ्रष्टाचार के एक 23 साल पुराने मामले में शिमला उच्च न्यायालय ने आरोपी बनाया है। प्रतिभा सिंह हिमाचल प्रदेश के उधोगपतियों से धन वसूली में पति के साथ बराबर की भागीदारी करती थीं, ऐसे साक्ष्य अदालत ने पेश किए गए थे। भ्रष्टाचार को अमरबेल बना देने वाले आला नौकरशाह अब दंडित होने लगे हैं। बेबस नागरिकों को यह खबर निश्चित रूप से सुकून देने वाली है। भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष को ऐसे ही कठोर और दूरगामी फैसलों से सार्थक अंजाम तक तो पहुंचाया जा सकता है, साथ ही जनता में यह भरोसा भी पैदा किया जा सकता है कि जनता दबाव बनाए और कानून साथ दे तो भ्रष्ट से भ्रष्ट तीसमारखा भी पत्नी व बच्चों समेत सीखचों के पीछे होंगे।

वैसे भी अब भ्रष्टाचारियों के बावत तमाम मुगालते टूटे रहे हैं। कुछ समय पहले ही भारतीय प्रशासनिक सेवा की महिला अधिकारी नीरा यादव को चार साल के कठोर कारावास की सजा सुनार्इ गर्इ थी। नीरा देश की पहली आर्इएएस महिला अधिकारी थीं। इस फैसले ने बहतरीन नजीर पेश करते हुए इस भ्रम को तोडा़ था कि किसी आर्इएएस अफसर को सजा नहीं हो सकती ? क्योंकि यह देश के न्यायपालिका के इतिहास में पहला प्रकरण था, जिसमें किसी आर्इएएस को सजा सूनाने के साथ ही तत्काल जेल भेज दिया गया था। निश्चित रूप से ये सजाएं भ्रष्टाचारियों के मन में खौफ पैदा करेंगी और किसी हद तक बेलगाम भ्रष्टाचार पर अंकुश भी लगेगा। लेकिन जो वैकलिपक कानून भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देते हैं, उनमें यदि कसावट ला दी जाए, कुछ कानूनों का विलोपीकरण कर दिया जाए तो देश भ्रष्टाचार से मुक्ति की दिशा में मुड़ सकता है।

इस बाबत हम चीन को बतौर बानगी अनुकरण करते हुए भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता में भ्रष्टाचार के सिलसिले में ऐसे और कठोर दांडिक प्रावधान भी ला सकते हैं, जिनकी पहुंच भ्रष्टाचारी के पारिवारिक सदस्यों को भी दायरे में लाने वाली हों। क्योंकि आखिर कोर्इ भी व्यक्ति भ्रष्टाचार से जो अकूत संपत्ति जुटाता है उसका लाभ परिवार के सदस्य ही उठाते हैं। लाभ-लीला की यह गति निरंतर बनी रहे इस दुषिट से पत्नी व संतानें भी व्यक्ति को नाजायज कमार्इ के लिए उकसाने का काम करते हैं। लिहाजा दण्ड के दायरे को लाभानिवत व्यक्तियों की पहुंच तक विस्तार देने की जरूरत है।

चीन में उन्नति की इस गति के सरोकार केवल औधोगिक-प्रौधोगिक विकास पर अवलंबित नहीं हैं। कानून में सख्त और फौरी दण्डात्मक कार्रवाही भी आर्थिक विकास की दर को बढ़ाने में सहायक बनी है। हाल ही में चीन में भ्रष्टाचार के आरोप साबित होने पर दो अधिकारियों को मृत्युदण्ड तो दिया ही गया, उनकी चल-अचल संपत्ति भी जब्त कर ली गर्इ। यही नहीं एक अधिकारी की पत्नी को भी आठ साल की सजा दी गर्इ। बीजिंग के एक वरिष्ठ बैंक अधिकारी वांग र्इ पर 18 लाख अमेरिकी डालर की रिश्वत का आरोप साबित हुआ और सजा मिली मौत ! इसी तरह एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी वेन छियांग को 24 लाख अमेरिकी डालर की रिश्वत लेने का आरोप सिद्ध होने पर मृत्युदण्ड दिया गया। दोनों की चल-अचल संपत्ति भी जब्त कर ली गर्इ। छियांग तो पत्नी को भी आठ साल की बमुशक्कत कैद की सजा सुनार्इ, क्योंकि वह छियांग को अनैतिक कदाचरण के लिए उकसाती थी।

कानूनी प्रावधानों के र्इमानदार क्रियान्वयन पर सख्ती से अमल के भय के चलते ही चीन संतुलित आर्थिक विकास के बूते 60 करोड़ लोगों को गरीबी से छुटकारा दिलाने में सफल रहा। चीन अपनी अर्थव्यवस्था को ऐसा रूप देना चाहता है, जो घेरलू खपत पर आधारित हो। चीन की कोशिश है कि धन का समान वितरण हो, जिससे गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठे और असमानता दूर हो। जीवनयापन की आधारभूत जरूरतों के अलावा स्वस्थ जीवन की अन्य जरूरतें मसलन शिक्षा और स्वास्थ्य परियोजनाओं की भी गुणवत्ता बढ़ार्इ जा रही है।

चीन ने अपनी विशाल आबादी को संकट न मानते हुए उसे कृषि उत्पादन, प्रबंधन व रोजगार से जोड़ा। नतीजतन चीन देखते-देखते इतना बड़ा निर्यातक देश बन गया कि आज वह दुनिया के कुल उत्पादों का 50 फीसदी निर्माण खुद करता है। अमेरिका चीन के उत्पादों को खरीदने वाला सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। इसके साथ ही चीन ने अपने प्राकृतिक संसाधनों को भी कमोबेश स्वच्छ व सुरक्षित बनाए रखा। जबकि भारत ने इन्हें बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दोहन के लिए खुला ही नहीं छोड़ा, बलिक विकास नीतियां भी कंपनियों के हित कैसे सुरक्षित रहें, इस दृष्टि से बनार्इ जा रही हैं। ये नीतियां विकास दर बढ़ाने में भी सहायक रहेंगी, इस मुगालते में भी हम रहे। नतीजा यह निकला कि आर्थिक विकास के दौरान हमारी प्राकृतिक संपदा से भरे भण्डार लगातार रीत रहे हैं और क्षेत्रीय व आर्थिक विषमता की हैसियत जो 20 साल पहले चीन की तुलना में 80 प्रतिशत थी वह अब घट कर बमुशिकल 25 फीसदी रह गर्इ है। नतीजतन हम लगातार आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहे है। जीडीपी की दर भी गिर कर 5 फीसदी रह गर्इ है।

देश में प्रतिभा पलायन और सुरक्षित भ्रष्टाचार की समस्याएं नर्इ नहीं है। भ्रष्टाचार बड़ी बाधा होने के कारण ही कल्पनाशील, नवाचारी एवं उत्साही युवक देश में रहकर कुछ नया नहीं कर पा रहे हैं। यही कारण है कि जिस देश की युवाशक्ति बेहतरी की खोज में बाहरी मुल्कों में पढ़ने व बसने की मानसिकता बना रही हो, वह देश कैसे एक र्इमानदार आर्थिक महाशक्ति बन सकता है ? एक जानकारी के मुताबिक मलेशिया ने भारतीय सैलानियों को वीजा पहले हासिल करने की बजाए, मलेशिया में ही पहुंचकर वीजा प्राप्त करने की सुविधा दी थी। फलस्वरूप 40 हजार भारतीय इस सुविधा का लाभ उठाकर मलेशिया में ही घुसपैठियों की तरह घुल मिल गए। नतीजतन मलेशिया ने भारतीयों के लिए यह सुविधा बंद कर दी। यह सिथति भारत में उन बांग्लादेशी घुसपैठियों की तरह है, जो अपने वजूद को अपने देश से बेहतर व सुरक्षित भारत में महसूस करते हैं। जिस देश के नागरिकों में अपने देश को समर्थ, समद्र्ध और शक्तिसंपन्न बनाने की बजाए परदेशों में स्थायी रूप से बसने की ललक व होड़ लगी हो, उस देश से वैशिवक महाशक्ति बनने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है ?

दरअसल हमें आज ऐसा माहौल बनाने की जरुरत है कि व्यक्ति जितनी चादर हो, उतने ही पैर पसारे। लेकिन भौतिक सुखों की चाहत व्यक्ति की हवस बढ़ा रही है। पत्नी और बच्चों की भोग-विलास के उपकरणों की मांगें लगातार बढ़ रही हैं। इन्हीं महत्वाकांक्षाओं की आपूर्ति के लिए भ्रष्टाचार चरम पर है। साथ ही भ्रष्टाचारी की यह धारणा पक्की हो चुकी है कि उनकी अनैतिक गतिविधियों को पकड़ा नहीं जाएगा और वे चतुरार्इ से जनता की कड़ी मेहनत से कमार्इ संपत्ति को हड़पते रहेंगे। इसलिए उन्हें ऐसा दण्ड दिये जाने की जरुरत है, जिससे उनके मन में डर पैदा हो कि जिस दिन वे पकड़े जाएंगे, उस दिन भ्रष्ट साधनों से अर्जित संपत्ति दंडित किए जाने की तारीख से मूल्य सहित उनके पास से वापस चली जाएगी और भ्रष्टाचारी की पत्नी व बच्चों को भी सजा हो सकती है ?

 

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