भारत के विधि आयोग ने आत्महत्या के प्रयास को गुनाहों की श्रेणी से हटा कर मानवीय दृष्टि से एक सही कार्य किया जिस की हर किसी ने प्रशंसा की | उसी प्रकार की सिफारिश विधि आयोग ने पति द्वारा पत्नी से जबरन यौन सम्बंध स्थापित करने को गुनाह मानने को कहा है परन्तु साल 2000 में दी सलाह को आज तक अमलीजामा नही पहनाया गया जबकि यह सिफारिश भी औरतों की सुरक्षा की दृष्टि से अहम है | संसद ने शायद इसे इसलिए नही माना हो कि इस प्रावधान का कुछ औरतें दुर्पयोग कर सकती है | ऐसी ही शंका आत्महत्या का प्रयास सम्बंधी कानून को गुनाह न मानने के वक्त भी जाहिर की गयी थी | जोकि गलत साबित हुई व नये कानून को अमलीजामा पहनाया गया | शायद कुछ समय बाद हमारे सांसदों को यह बात भी समझ आ जाए व इस पर नया कानून सामने आये | हाल में भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने यह फैसला सुना कर कि शादी के बाद पति द्वारा जबरन यौन सम्बंध गुनाह नही “जले पर नमक छिड़कने” के समान है | इस प्रकार न्यायलय ने भी पतियों की उस आजादी पर मोहर लगा दी जिस के अंतर्गत पति अपनी पत्नी से यौन सम्बंधी अत्याचार कर सकता है |
गौरतलब है कि भारतवर्ष में हर तीन मिनट में औरत के खिलाफ हिंसा होती है जिस कारण 2005 में भारत सरकार को घरेलू हिंसा रोकने के लिए कानून पास करना पड़ा था जिसकी धारा 3 में पति द्वारा यौन उत्पीड़ना को गुनाह माना है | साल 1979 में “तुका राम बनाम महाराष्ट्रा राज्य” केस जोकि मथुरा बलात्कार केस के नाम से जाना जाता है, के बाद बलात्कार सम्बंधी कानून को और सख्त बनाया गया | कामकाजी औरतों के खिलाफ यौन अत्याचार रोकने हेतु “विशाखा बनाम राजस्थान” केस में हर कार्यलय में एक कमेटी का गठन करने के दिशा निर्देश जारी किये गये थे | अत: स्पष्ट है कि महिलाओं की सुरक्षा हेतु बेहतर कानून बनाये जाने की आवश्यकता है जैसा कि मुम्बई उच्च न्यायालय ने भी एक केस में कहा है | भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कहा था “मैं नही सोचती कि समाज के आधे सदस्यों को बराबरी का अधिकार दिए बिना व उनकी क्षमता तथा क़ाबलियत को नजरअंदाज करके कोई समाज विकास कर सकता है |”
पति द्वारा जबरन यौन स्थापित करने को अमेरिका, कनाडा, फ़्रांस, ब्रिटेन व भूटान जैसे देशों में भी बलात्कार की श्रेणी में ला कर सजा का प्रावधान किया गया है परन्तु यह अफ़सोस की बात है कि भारत जैसे देश में जहाँ 70% महिलायें किसी न किसी हिंसा की शिकार है, इस प्रकार का कानून उपलब्ध नही है |
भारतवर्ष में औरतों के अधिकारों का सबसे बड़ा संरक्षक सर्वोच्च न्यायलय को माना जाता है परन्तु हाल का फैसला इस दिशा में एक अपवाद है जिस के ऊपर दोबारा गौर करने की आवश्यकता है | अन्यथा महिलाओं को जबरन यौन सम्बंध करने के नाम पर अपने पतियों के उत्पीड़न का शिकार होना होगा | एक सर्वे में 6632 शादीशुदा युवकों में से 22% ने माना कि वे अपनी पत्नी का यौन उत्पीड़न करते हैं | 2013 में मुम्बई के उच्च न्यायलय ने यह माना कि पत्नी को यौन सम्बन्धों से वंचित रखना भी अत्याचार है | 19 मार्च 2013 में भारतीय संसद ने महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा दिलाने के लिए एक कारगर कानून पास किया लेकिन उस में भी पति द्वारा पत्नी से जबरन यौन सम्बंध बनाने को गुनाह करार नही दिया गया |
दिल्ली के निर्भया गैंग रेप के बाद बनाई गयी वर्मा कमेटी ने बलात्कार सम्बंधी कानून में बदलाव लाने सम्बंधी सुझाव दिये परन्तु पति द्वारा जबरन यौन सम्बंध के बारे में उस कमेटी ने भी कोई सिफारिश नही की | अत: 33% आरक्षण की तरह औरतों को इस सम्बंध में अभी और ईंतजार करना होगा | क्योंकि भारतवर्ष में बहुत सारी औरतों की शादी नाबालिग अवस्था में कर दी जाती है जिस समय वे अपनी सहमति देने के लिए सक्षम नही होती | इसी कारण चार दिवारी के अंदर होने वाले गुनाहों के खिलाफ ज्यादातर औरतें अपनी आवाज उठा नही पाती | ऊपर से पुरुष प्रधान समाज की व्यवस्था ही ऐसी बनाई गयी है कि औरत को घर की वस्तु माना जाता है जिसे जब चाहे जैसे चाहे ईस्तेमाल कर लें | इसलिए औरतों के सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक स्थिति को ध्यान में रख कर भारत की न्यायपलिका को अपना काम करना होगा क्योंकि इस पर कोई विवाद नही कि औरतों को अपने अंदर व बाहर के शरीर पर पूर्ण स्वायत्ता का अधिकार है जिसे बनाये रखना सरकार का व न्यायलय का दायित्व है | मुम्बई उच्च न्यायलय ने एक केस में यह स्वयं माना है कि महिलाओं की स्थिति देश में ऐसी है कि उनकी सुरक्षा हेतु विशेष कानून बनाये जाने की आवश्यकता है | बच्चों व महिलाओं के लिए विशेष कानून बनाए जाने का प्रावधान संविधान रचेयताओं ने अनुच्छेद 15(3) के अंतर्गत शायद इसी स्थिति को देखते हुए बनाया होगा | महिला कर्मियों के साथ आज भी मातृत्व अवकाश के बारे में भेदभाव किया जा रहा है | जबकि इस सम्बंध में हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय ने नवंबर 2014 में हि.प्र. राज्य बनाम सुदेश कुमारी केस के एक अहम फैसले में यह कहा है कि महिला कर्मचारी चाहे स्थाई हो या फिर अनुबंध पर हो, वह पूर्ण मातृत्व अवकाश की हकदार है | उन्हें इस सुविधा से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 41, 42 व 43 की उल्लंघना होगी | इसी प्रकार का एक फैसला दिल्ली म्युनिसिपल कोर्पोरेशन बनाम फ़ीमेल वर्कर्स एवं अन्य (2000)3 SCC 224 में उच्चतम न्यायालय ने भी सुनाया है जिसमें स्पष्ट किया है कि मातृत्व अवकाश के लिए किसी भी महिला कर्मचारी के साथ इस आधार पर भेदभाव नही किया जा सकता कि वह अस्थाई तौर पर कार्यरत है या स्थाई तौर पर | न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि कोई भी महिला कर्मचारी चाहे वह स्थाई, अस्थाई, अनुबंध एवं एडहोक पर कार्यरत हो, मातृत्व अवकाश की एक समान हकदार होगी |
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर भारत की महिलाओं को हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए भारत के महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी माना है कि महिलाओं की अनदेखी से राष्ट्र निर्माण संभव नही है | गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा है “किसी भी राष्ट्र के उठान और पतन के लिए महिलाएं ही जिम्मेदार होती है | पुरुषों के किसी भी आंदोलन की प्रेरणा स्त्रोत महिलाएं ही होती हैं |” फैड्रिक एसिल हैनरी ने कहा है कि, “किसी देश के विकास का मापदंड इस बात पर निर्भर करता है कि उस देश में बच्चों, महिलाओं व बुजूर्गों की स्थिति कैसी है |” अत: महिला का सशक्तिकरण सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक तौर पर किया जाना अति आवश्यक है |