हुसैन की बिल्ली थैले से बाहर निकली

MF Hussain's Painting 'Rape of India'

MF Hussain's Painting 'Rape of India'

बिल्ली तो अब थैले से बाहर आ ही गई। यह कहावत विख्यात चित्रकार मुहम्मद फिदा हुसैन पर पूरी तरह चरितार्थ होती है। साथ ही उनकी पोल भी खुल गई है। भारत की नागरिकता त्याग कर खाडी देश कतर की नागरिकता ग्रहण कर अपने आप को सम्मानित महसूस कर उन्होंने भी सैकुलरवाद, उदारवाद तथा जनतन्त्र के अनुयायी होने का चोगा उतार फैका है। कतर ही नागरिकता मिल जाना, उनके ही शब्दों में, यदि उनके लिये सम्मान व गौरव का अवसर है तो क्या भारत की नागरिकता व्यक्तिगत रूप में उनके लिये शर्म की बात थी?

यदि वह भारत छोड़ किन्हीं अन्य देशों में पनाह लिये फिर रहे थे तो उसके लिये भारत के लोग नहीं वह स्चयं ज़िम्मेवार थे। 1996 में हुसैन साहिब देश से बाहर खिसक गये जब उन्होंने हिन्दू देवियों के नग्न चित्र प्रकाशित करने का एक घृणित अपराध किया। तब से वह विदेशों में घूमते फिर रहे हैं। उनके हितचिन्तक चाहे कुछ भी कहते फिरते रहें, उन्होंने कभी तो इस बात को नकारा कि वह एक निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं तो कई बार इसे नकारा। पिछले वर्ष बीबीसी हिन्दी के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने इस बात को नकारा और कहा कि मैं तो अनेक देशों में घूमता फिरता रहता हूं। पर पिछले दिसम्बर में वह अपनी बात से पलट गये और कहा कि उन्हें भारत वापस जाने में खतरा महसूस होता है।

हिन्दू देवियों व भारत माता के नग्न चित्र छाप कर उन्होंने बेशक हिन्दू भावना से खिलवाड़ किया है और उन्हें आहत किया है। वह और उनके प्रशंसक अपने इस अपराध से बचने के लिये चाहे इसे भारतीय संविधान में प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के अधिकार की आड़ लें पर यह भी सब को पता है कि किसी भी सम्प्रदाय या समूह की भावनाओं को ठेस पहुंचाना एक कानूनन अपराध है जिसके लिये अनेक लोगों के विरूद्ध कार्यवाही हो चुकर है और सज़ा भी मिल चुकी है।

यह अपराध उन्होंने जानबूझ कर अपने पूरे होश-हवास में किया है, यह तो सब जानते ही है। प्रश्‍न तो यह भी है कि अपनी अभिव्यक्ति की इस स्वतन्त्रता का उपयोग उन्होंने अपनी माता जी या परिवार के किसी अन्य सदस्य के नग्न चित्र बनाने केलिये क्यों नहीं किया? वह तो भलीभान्ति जानते हैं कि भारत माता व हिन्दू देवियां सब भारतीयों के लिये मां से भी बढ़ कर हैं। किसी भी वित्रकार को किसी दूसरे के मां-बहन के नग्न चित्र बनाने का तब तक कोई नैतिक अधिकार नहीं है जब तक वह यही पुनीत कार्य अपनी मां-बहन से नहीं कर लेता।

इस्लाम समेत कोई भी धर्म इस कुकर्म की इजाज़त नहीं देता और न ही किसी की आत्मा, भावना या आस्था पर प्रहार करने को मान्यता देता है।

इतने हो-हल्ला के बावजूद न ही स्वयं हुसैन साहब ने और न ही उनके समर्थकों ने यह ऐलान किया है कि यदि कोई चित्रकार उनकी मां-बहन का नग्न चित्र बना देगा तो वह भी उसके अभिव्यक्ति के इस जनतान्त्रिक अधिकार का उसी प्रकार सहर्श सम्मान करेंगे जैसा कि वह स्वयं अपने अधिकार का चाहते हैं।

क्योंकि वह स्वयं मुसलमान हैं

Goddess Lakshmi naked on Shree Ganesh's head & M.F. Husain's mother fully clothed

कई हुसैन समर्थक आरोप लगाते हैं कि हुसैन साहिब को इसलिये प्रताड़ित किया जा रहा है क्योंकि वह मुसलमान हैं। सच्चाई तो इसके विपरीत है। उन्होंने हिन्दू देवियों व भारत माता के नग्न चित्र बनाने की हिमाकत ही केवल इसलिये की है क्योंकि वह स्वयं मुसलमान हैं और इसी कारण जब उन्होंने अपनी मां तथा अन्य मुसलिम महिलाओं के चित्र बनाये तो उन में पूरी शालीनता झलकती है और उन्हें पूरी तरह ढक संवार कर चित्रित किया गया है।

यदि वह गुनाहगार नहीं हैं तो वह अपने आपको भारत के कानून और न्यायालय के हवाले क्यों नहीं कर देते? या क्या इसका यह तात्पर्य लगाया जाये कि उनका भारतीय कानून व न्याय व्यवस्था में कोई विश्‍वास नहीं है?

उनकी राष्‍ट्रभक्ति

जब तक कि वह भारत के नागरिक थे तब तक उनकी राष्‍ट्रभक्ति पर संदेह करने का सवाल पैदा नहीं होता था। पर अब जब उन्होंने अपनी जन्मजात राष्‍ट्रीयता को लात मार दी है और कतर की राष्‍ट्रीयता प्राप्त करने पर गौरवान्वित महसूस कर रहे है तो उस पर शक पैदा हो जाना स्वाभाविक भी है। उन्होंने अपने उस मात्रि राष्‍ट्र को ठोकर मारी है जिसने उन्हें नाम और शोहरत प्रदान की – उस देश को जिसे वह अपने ही शब्दों में कहते फिरते थे कि वह बहुत प्यार करते हैं। आज उन्हें कतर प्यारा हो गया। उसकी नागरिकता से वह अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं।

किसी व्यक्ति का जन्म उसके जीवन की सर्वप्रथम सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना होती है और बाकी सब बाद में। पर हुसैन साहिब ने तो अब इस घटना को ही नकार दिया है। अपने देश को ही नकार दिया है जिसने उसे पाला-पोसा और बड़ा किया।

उन्होंने भारत के प्रति व्यक्त अपने प्रेम को स्वयं ही एक धोखा, झूठा और ढोंग बना कर रख दिया है

हुसैन साहिब जैसे व्यक्ति को यह याद कराना अजीब लगता है कि भारत और विश्‍व में अनेक ऐसे उदाहरण है जिन में लोगों ने अपने देशप्रेम के कारण अनेक यातनायें सही हैं और अपने प्राण तक न्योछावर कर दिये हैं। पर यहां हैं देशभक्त हुसैन जो अपने देश की नागरिकता त्याग कर दूसरे देश की नागरिकता ग्रहण करने पर अपने आपको सम्मानित महसूस करते हैं। हमारे पास ऐसे ढोंगियों की कमी नहीं है जो उनके लिये अनवरत आंसू बहा रहे हैं।

भारत नहीं, दूसरा देश महान्

हुसैन साहिब की कानून और व्यावहारिकता से अनभिज्ञता पर तरस भी आता है। वह किसी देश द्वारा किसी व्यक्ति को सम्मान के तौर पर नागरिकता प्रदान करने और किसी व्यक्ति द्वारा अपने देश की नागरिकता का परित्याग कर दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त करने में फर्क नहीं समझ पाते। कोई भी देशभक्त कभी भी किसी सूरत में भी अपने देश की नागरिकता त्याग करने पर गर्व महसूस नहीं करता पर हुसैन साहिब अवष्य करते हैं। उनकी देशभक्ति और राष्‍ट्रभक्ति को सलाम!

चाहे वह छोटा हो या बड़ा, न तो डा0 अब्दुल कलाम, न डा9 मनमोहन सिंह, न श्रीमती सोनिया गान्धी, न राहुल गान्धी, और न डा0 फारूख अब्दुल्ला सरीखे कोई भी महानुभाव अपने आप को गौरवान्वित महसूस करेगा यदि कल को कतर या कोई अन्य देश उन्हें भारत की नागरिकता त्याग कर उस या किसी अन्य देश की नागरिकता प्रदान कर सम्मानित करना चाहें।

हुसैन साहिब का देशप्रेम कितना गहरा और सच्चा है यह तो वह स्वयं ही जानें।

उनका सैकुलरवाद

Goddess Durga in sexual union with a Tiger & The Prophet's daughter Fatima fully clothed

कारण कुछ भी रहे हों हुसैन साहिब पिछले 14 वर्श से इंगलैण्ड, अमरीका, जर्मनी सरीखे कई जनतन्त्रों, सैकुलर व उदारवादी देशों में रह चुके हैं। पर जब उन्हें अपनी नागरिकता बदलनी थी तो उनके अन्दर का मुसलमान जाग उठा और उन्होंने चुना कतर को जो किसी भी तराज़ू पर सैकुलरवाद, जनतन्त्र व उदारवाद की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। कतर एक ऐसा देश है जहां की जनसंख्या में से केवल 15 प्रतिशत को ही नागरिकता का अधिकार दिया गया है। तो यह है वह सौभाग्यशाली देश जिस की नागरिकता प्राप्त कर हुसैन साहिब बाग़-बाग़ हो रहे हैं।

किस देश में कौन-सा शासन तन्त्र हो यह तो उस देश की जनता का अपना एकाधिकार है जिस पर किसी को कोई इतराज़ नहीं हो सकता। जिस प्रकार किसी भी दम्पत्ति को यह अधिकार है कि वह एक साथ रहें या सम्बन्ध विच्छेद कर तलाक ले लें उसी प्रकार किसी भी नागरिक को यह अधिकार है कि वह अपने देश से किनारा कर एक नये देश की नागकिता प्राप्त कर ले। जैसे तलाक लेने वाले पति-पत्नि पर यह चर्चा उठ ही जाती है कि यह इसलिये हुआ क्योंकि उन में पारस्परिक प्रेम व विष्वास की कमी हो गई, इसी प्रकार देश की नागरिकता त्याग कर देने वाले महानुभाव पर भी उसके देशप्रेम के प्रति तो उंगली उठनी स्वाभाविक ही है। यही कुछ हो रहा है आज हुसैन साहिब के उस कथन पर जिसमें वह कहते फिरते थे कि वह अपने वतन को सर्वाधिक प्रेम करते हैं।

हुसैन साहिब के देशप्रेम को सलाम!

अब एक प्रश्‍न और भी खड़ा हो जाता है। हुसैन साहिब ने अब अपना भारतीय पासपोर्ट भी वापस कर दिया है। अपने पदमविभूषण के सम्मान को उन्होंने अभी तक क्यों गले लगाये रखा है, यह अवश्‍य विचारणीय है। अब जब कि उन्होंने भारत के प्रति अपने प्रेम और उसकी नागरिकता को नकार दिया है तो वह भारत द्वारा दिये गये सम्मान को किस मुंह से और नैतिकता के किस तकाज़े से छाती से लगाये बैठे हैं? जिस व्यक्ति ने भारत की नागरिकता और उसके साथ प्रेम को नकार दिया हो, क्या उस भारत को उनके इस कृत्य का उचित उत्तर नहीं देना चाहिये? जिस व्यक्ति ने भारत का और देश के प्रति प्रेम का परित्याग कर दिया है और जो दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त करने पर अपने को गौरवान्वित महसूस करते है, क्या वह फिर भी इस देश के इस सम्मान का पात्र रह जाता है?

शायद हमारे शासकों व कई राजनैतिक दलों की वोट वैंक राजनीति उन्हें ऐसा करने से रोके, पर देश का स्वाभिमान तो यही कहता है कि ऐसा व्यक्ति किसी राष्‍ट्रीय सम्मान का हकदार नहीं रह जाता। भारत की नागरिकता को ठुकरा कर हुसैन साहिब ने देश को गौरव प्रदान नहीं किया है।

-अम्बा चरण वशिष्‍ठ

6 COMMENTS

  1. हुसेन एक बो थे जो कुर्बान हुये इस्लाम पर
    एक ये है जेंनै इस्लाम को शर्मसार किया ,
    लोग तरसते है बतन मे फ़ना होने के लिये
    कितना बदनसीब है जो कतर मे मरना स्वीकार किया …..

  2. यह एक प्रकार से कला और संस्कृति के नाम से अभिव्यक्ति की स्वंतंत्रता का दुरूपयोग है जो केवल भारत में ही संभव है अन्य किसी देश में नहीं | ईश्वर से प्रार्थना है की सब को सदबुद्धि दे…….विशेष रूप से कलाकारों और नेताओं को …….

  3. इस आदमी का नाम भी नहीं लेना चाहिए, इस रावन का पुतला दहन करना रावन का अपमान है. चिंता इस बात की है की भारतीय मीडिया ने इसके समर्थन मैं ढेर सारे कार्यक्रम प्रसारित किये. मीडिया शायद अपने को सर्वसक्तिमान समझ बैठा है. अब भ्रष्ट नेताओं के बाद सबसे ज्यादा शर्मनाक काम अगर कोई कर रहा है तो वो है मीडिया (कुछ चैनल -आईबीन ७, आज तक, एनडीटीवी ) ये चैनल जनता को अगर मूर्ख मान बैठे हैं तो बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं. कांग्रेस सरकार से प्रोत्साहन प्राप्त ये चैनल और तथाकथित बुद्धिजीवी करोड़ों लोगों की भावनाओं से जो खिलवाड़ कर रहे हैं ये बहुत ही चिंतनीय है. अगर जनता अपनी सहनशक्ति खोती है तो सबसे पहले निशाना ये न्यूज़ चैनल ही होंगे जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अनाप सनाप दिखा रहे हैं.

  4. उनका जाकर क़तर [cutter] मे कट जाना,
    सांप का जैसे ख़ुद को डस जाना,
    हो के ‘मकबूल’ माँ को छोड़ गए,
    कहते है इसको ही भटक जाना.

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