आई फ ॉर आई यानी इण्डिया फ ॉर इजराइल एवं इजराइल फ ॉर इण्डिया तथा इण्डिया विद इजराइल एवं इजराइल विद इण्डिया की आत्मीयता के साथ इजराइल की दोस्ती को नई ऊंचाईयों पर पहुंचाने स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में गत सप्ताह इजराइल पहुंचे नरेन्द्र मोदी ने आई फ ॉर आई के जरिये आई आई अमेरिका का जो मजबूत त्रिकोण रचा है उसके मायने पूरी दुनिया के लिये बेहद अहम है।
इस त्रिकोण से कम से कम विश्वासघाती पड़ोसियों चीन व पाकिस्तान की नींद जरूर उड़ चुकी है। उन तमाम देशों को भी आशा की किरण नजर आने लगी हंै जिनके चीन से रिश्ते बेहद खराब होते जा रहे हंै।
चरम पर पहुंच चुकी मोदी की विदेश नीति से दुनिया के दिग्गज राजनीतिज्ञ व कूटनीतिज्ञ हैरान है। वे मोदी के मैजिक से चकाचौंध है तो भारत की जनता अपने प्रधानमंत्री की दिलेरी से बाग-बाग है।
भारत के पहले प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की गत सप्ताह सम्पन्न हुई तीन दिवसीय इजराइल यात्रा के कितने गहरे निहितार्थ है इसको यदि अब भी कोई देश न समझ सके तो उसे निरा अनाड़ी ही समझा जायेगा।
गौरतलब है कि भारत ने भले ही १७ सितम्बर १९५० को इजराइल को मान्यता दे दी थी लेकिन अरब देशों से कहीं सम्बन्ध बिगड़ न जाये इस आशंका से वर्ष १९९२ तक इजराइल से भारत के राजनयिक रिश्ते नहीं बन पाये। बावजूद इसके १९६२, १९६५ और १९७१ के युद्धों और कारगिल संघर्ष में इजराइल ने भारत की मदद की। जबकि मुस्लिम देशों ने खासकर तेल उत्पादक अरब देशों ने कश्मीर और अन्य मुद्दों पर कभी भी भारत का साथ नहीं दिया बल्कि पाकिस्तान का समर्थन करते नजर आये।
यह भी सही है कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू ने इजराइल के जन्म के दो साल बाद ही यानी १९५० में मान्यता प्रदान कर दी थी तो सन् १९५३ में मुंबई में उसका वाणिज्य कार्यालय खोलने की इजाजत भी। इसके बावजूद १९९२ तक भारत व इजराइल के पूर्ण राजनयिक सम्बन्ध स्थापित न हो सके। हालांकि इस गतिरोध को तोडऩे का काम १९९२ में इजराइल के साथ पूर्ण राजनयिक सम्बन्ध स्थापित करके कांग्रेसी प्रधानमंत्री स्व. श्री वीपी नरसिन्हराव ने ही किया। उसके बाद से दोनो देशों के बीच रिश्ते निरंतर सुधरते व प्रगाढ़ होते चले गये। नतीजतन १९९७ में इजराइल के राष्ट्रपति श्री एजर बीजमैन ने व २००३ में इसके प्रधानमंत्री श्री एरियल शेरोन ने भारत की यात्रा की।
इसी बीच २००० में तत्कालीन विदेशमंत्री श्री जसवंत सिंह ने इजराइल की यात्रा कर नये सम्बन्धों को और आगे बढ़ाया। पर तब से २०१५ तक दोनो ही देशों के किसी प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति ने एक दूसरे देश की यात्रा नहीं की। यह गतिरोध टूटा २०१५ में जब राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी इजराइल यात्रा पर गये। इजराइल ने राष्ट्रपति का भव्य स्वागत किया ही उनसे इजराइल की संसद ‘नैसेÓ को सम्बोधित भी कराया।
और जब गत मंगलवार को ७० वर्षो बाद देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी तीन दिवसीय इजराइल यात्रा पर गये तो इजराइल शासक मानो खुशी से पागल हो गये। तीन दिनों में जिस तरह इजराइल के प्रधानमंत्री श्री बेंजामिन नेतन्याहू और राष्ट्रपति श्री रूबेन रिबलिन ने श्री मोदी के स्वागत में पलक पांवड़े बिछा दिये और पूरी यात्रा में श्री मोदी के साथ साये की तरह रहे उसे पूरी दुनिया देखती ही रह गई।
इजराइल के प्रधानमंत्री ने श्री मोदी की अगुवानी से लेकर उनके साथ हर मंच पर मौजूद रहकर न केवल हर प्रोटोकॉल को दरकिनार कर दिया वरन् वहां के राष्ट्रपति ने भी सभी मौको पर ऐसा ही किया।
इजराइल प्रधानमंत्री श्री नेतन्याहू ने श्री मोदी की अगुवानी करते हुये जहां कहा कि ७० वर्षो बाद उनका सच्चा दोस्त आया है वहीं श्री मोदी को बार-बार गले लगाते हुये श्री नेतन्याहू बेहद भावुक भी थे। उनकी ऐसी ही भावुकता तब दिखी जब दूसरे दिन प्रधानमंत्री श्री मोदी व श्री नेतन्याहू की भेट हुई। साझा प्रेस कांफ्रेंस को सम्बोधित करते हुये श्री नेतन्याहू ने बेहद भावुक अंदाज में कहा कि दोनो देशों के रिश्ते वैवाहिक सम्बधों से है। यह रिश्ता स्वर्ग में बनी शादी है लेकिन हम इसे यहां धरती पर लागू कर रहे हैं।
अपने स्वागत व आत्मीयता से अभिभूत प्रधानमंत्री श्री मोदी ने भी दूसरे दिन राष्ट्रपति श्री रूबेन रिबलिन से मुलाकात के समय इजराइल को सच्चा दोस्त बताते हुए कहा कि आज हमारा रिश्ता आइ से आई का है। आई के लिए आई का है। मै किसी कहावत का इस्तेमाल नहीं कर रहा। मेरा कहना है कि आई का मतलब इंडिया और आई का मतलब इजराइल। मेरा मतलब है कि भारत इजरायल और इजरायल भारत के लिए है। श्री मोदी ने पिछले साल श्री रिबलिन की भारत यात्रा का भी जिक्र किया। श्री रिबलिन ने भी अपनी भारत यात्रा को यादगार बताते हुए कहा कि वे इसे कभी नहीं भूलेंगे। श्री मोदी ने तस्वीर ट्वीट करते हुए लिखा कि राष्ट्रपति ने जिस गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया है उसके लिए मै उनका आभारी हूँ। उन्होने स्वागत के लिए प्रोटोकॉल भी तोड़ दिया। यह प्रतीक है कि उनके दिल में भारतीय लोगो के प्रति कितना सम्मान है।
बुधवार को भारत इजराइल के बीच गंगा सफ ाई, शोध के लिये फ ंड सहित अंतरिक्ष में तीन करार जैसे महत्वपूर्ण समझौते हुये। अलावा उपरोक्त समझौतों के प्रधानमंत्री श्री मोदी ने खासतौर से इस बात पर जोर दिया है कि दोनो देश बढ़ते आतंकवाद का मिलकर मुकाबला करने को कमर कस चुके है। साझे बयान में यह साफ-साफ कहा गया है कि किसी भी आतंकवादी कार्रवाई को, चाहे उसके पीछे कोई भी कारण हो, स्वीकार नहीं किया जाएगा। दोनो प्रधानमंत्रियों ने कॉम्प्रिहेसिव कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल टेररिज्म (सीसीआईटी) के जल्दी से जल्दी अनुमोदन को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई है।
विदेश नीति के विशेषज्ञों का कहना है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी की विदेश नीति से पूरी दुनिया के दिग्गज हैरान है। दुनिया देख रही है कि उनकी इजराइल यात्रा से किस तरह भारत के इजराइल व अमेरिका से सम्बन्ध नई ऊंचाइयों पर पहुंचते नजर आ रहे है। कौन नहीं जानता कि इजराइल बनने के बाद से ही सिर्फ अमेरिका ही उसे हर तरह की भरपूर मदद करता रहा है। ऐसे में अब तीनों देशों का त्रिकोण दुनिया में ऐसी ताकत बन सकता है जिसका मुकाबला कर पाना किसी के लिये भी आसान न होगा। दुनिया के दिग्गज राजनीतिज्ञ व कूटनीतिज्ञ श्री मोदी की रणनीति से इसलिये भी हैरान है कि इजराइल की उनकी यात्रा पर किसी मुस्लिम देश ने नुक्ताचीनी करना तो दूर चूं तक नहीं किया। वरन् अब तक नामालूम कितना हो हल्ला मच चुका होता। उनका मानना है कि चतुर श्री मोदी ने इसलिये पहले अरब देशों की यात्रायें की, उनके राष्ट्राध्यक्षों को भरोसे में लिया और फिर इजराइल को खुलेआम गले लगाया।
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निरर्थक हैं तुम्हारी चुनौतियां व चीखे!
देश के संविधान निर्माताओं ने शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि सरकार चलाने के लिये बहुमत की अनिवार्यता कालांतर में लोकतंत्र के लिये नासूर बन जायेगी।
इसी अनिवार्यता के चलते केन्द्र से लेकर राज्यों में भ्रष्टाचार की नित नई-नई इबारते लिखी जाने लगी। जिन्हे सरकारें चलानी थी और जिन्ह सरकारें चलवानी थी के परस्पर स्वार्थो ने भ्रष्टाचार की सभी सीमायें लांघ डाली। नतीजतन शुचिता व समर्पण की राजनीति येन-केन-प्रकारेण सिर्फ और सिर्फ सत्ता के दोहन का पर्याय बन गई। हद तो यह देखिए कि शनै:-शनै: यह संक्रामक रोग जिला पंचायतों, ग्राम पंचायतों, ग्राम सभाओं तक फ ैलता चला गया।
सत्ता से उपजी भ्रष्टाचार की गंगोत्री से कितने फ ट्टेबाज/फ टेहाल देखते ही देखते अकूत धन दौलत के मालिक बन बैठे। आज देश में ऐसे लोगो की फ ेहरिस्त इतनी लम्बी है कि उसे लिख पाना भी आसान नहीं रह गया।
आज जिस राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे पूरे परिवार पर सीबीआई का शिंकजा कस चुका है और जिस तरह ईडी की इनकी बेनामी सम्पत्तियों पर पैनी निगाहे लगी हुई है उनसे बच पाना शायद ही संभव हो। उनका पारिवारिक इतिहास क्या रहा है शायद ही किसी को बताने की जरूरत हो। करोड़ों के चारे घोटाले में गर्दन फ ंसने के बाद सत्ता की राजनीति से दूर रहने की बेबशी उनका बाल भी बांका भी नहीं कर पाई क्योंकि सत्ता की चाबी उनके हाथ से उनकी धर्मपत्नी के हाथ में आ गई।
काश! स्वच्छ व सुशासन की राजनीति के अलम्बरदार जदयू के नीतीश कुमार की सत्ता की भूख ने लालू प्रसाद यादव को गले न लगाया होता। न लालूप्रसाद यादव के दोनो बेटे सत्ता का स्वाद चख पाते और न ही उनकी राजनीतिक ताकत अक्ष्क्षुण हो पाती और न ही आज नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार के संरक्षण देने के आरोपों के छींटे पड़ते। कल क्या होगा यह तो कोई नहीं जानता पर जैसे आसार दिख रहे है लालू व नीतीश दोनो का भविष्य खतरें में है।
लोकतंत्र के लुटेरों ने देश की गाढी कमाई को जिस बेरहमी से लूटा है उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है। ऐसे ही लुटेरो की जमात ने ऐसा मजबूत संजाल बुना जिसे निर्वाचन आयोग न तोड़ सका। जिस न्याय पालिका से काफ ी उम्मीदे थी मानो वे भी इनके सामने असहाय सिद्ध हुई। कई बार तमाम जांच एजेन्सियों के खुलकर दुरूपयोग के मामलों ने भ्रष्टाचारियों को उन पर उंगुली उठाने का सहज मौका दे दिया। गोलबंद भ्रष्टाचारियों की चीखने चिल्लाने से कई बार जनता इन्हे निर्दोष व पीडि़त मानकर सत्ता की बागडोर सौपती रही है।
काश! अव्वल तो जनता ने भ्रष्ट नेताओं को गर्त में डुबोने का काम किया होता अन्यथा देश की न्यायपालिका ने इन्हे तय समय में दण्डित कर घर बैठने को मजबूर कर दिया होता। इस तथ्य को कैसे नकारा जा सकता है कि जब भ्रष्ट नेताओं व भ्रष्ट नौकरशाहों की जुगलबंदी परवान चढऩे लगी तो भ्रष्टाचार की सारी सीमायें भी टूट गई। ऐसा भी नहीं है कि भ्रष्ट नेताओं को सजा नहीं मिली। ऐसा नहीं है कि भ्रष्ट नौकरशाह जेल की सीखचों में कैद नहीं किये गये पर इनका अनुपात इतना कम रहा कि इनसे भ्रष्ट नेताओं व नौकरशाहों में सिहरन तक पैदा नहीं हुई।
नि:संदेह वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की खांटी ईमानदारी व उनकी सरकार की शुचिता से देश के आमजन को आस है कि अब जनता की गाढ़ी कमाई लूटने वालों का अंत होकर ही रहेगा। ऐसे में भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे नेताओं की जमात को सरकार पर प्रताडि़त करने व निपटने की चुनौती देने व अपने को ईमानदार बताने का स्वांग छोड़कर जांच का स्वागत व सामना करना चाहिये। और बेहतर होगा कि वे निर्दोष सिद्ध होने तक यदि किसी लाभ के पद पर हो तो उसे तत्काल त्याग देना चाहिये।