मेरी तड़त का मतलब

मेरा शरीर मेरा है|

जैसे चाहूँ, जिसको सौंपूँ!

हो कौन तुम-

मुझ पर लगाम लगाने वाले?

जब तुम नहीं हो मेरे

मुझसे अपनी होने की-

आशा करते क्यों हो?

पहले तुम तो होकर दिखाओ

समर्पित और वफादार,

मैं भी पतिव्रता, समर्पित

और प्राणप्रिय-

बनकर दिखाऊंगी|

अन्यथा-

मुझसे अपनी होने की-

आशा करते क्यों हो?

तुम्हारी ‘निरंकुश’ कामातुरता-

ही तो मुझे चंचल बनाती है|

मेरे काम को जगाती है, और

मुझे भी बराबरी का अहसास

दिलाने को तड़पाती है|

यदि समझ नहीं सकते-

मेरी तड़त का मतलब!

मुझसे अपनी होने की-

आशा करते क्यों हो?

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

3 COMMENTS

  1. आदरणीय डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ सप्रेम अभिवादन आपका रचना शिक्षा प्रद और प्रसंसनीय है .आपको हार्दिक बधाई ………..
    लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर रायगढ़ छत्तीसगढ़

  2. आदरणीय डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी सप्रेम अभिवादन
    आपका रचना शिक्षा प्रद एव प्रसंसनीय है विचारणीय है
    हार्दिक बधाई …. धन्यवाद …..

  3. महिलाओं मे यौन स्वच्छंदता की वकालत करती यह कविता आज की भोगवादी युवा मानसिकता प्रनिधित्व करती है. मै आने वाले 10 वर्षो मे भारत के नगरिको के यौन आचरण मे बडा परिवर्तन देख रहा हुं. इस परिवर्तन के अपने लाभ है तो खोने को भी बहुत कुछ है.

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