आंखों में उजालों को मैंने अब बसाया है….

tearsइक़बाल हिंदुस्तानी

बर्क़ ने मेरा जब भी आशियां जलाया है,

अज़्म की सदाक़त को और भी बढ़ाया है।

 

हादसा कोई जब भी पेश राह में आया,

सो चुके ज़मीरों को मैंने फिर जगाया है।

 

दूर तक अंधेरों की फ़िक्र मैं नहीं करता,

आंखों में उजालों को मैंने अब बसाया है।

 

उस चिराग़ को तूफ़ां भी बुझा नहीं सकते,

जो चिराग़ ज़हनों में मैंने अब जलाया है।

 

अतिशी मिज़ाइल से भूख मिट ना पायेगी,

मां ने पी के बच्चो को ज़हर फिर पिलाया है।

 

दोस्ती समंदर से तश्नालब हूं ज़िंदा हूं,

ये असर उसूलों में मैंने अपने पाया है।

 

रहनुमा तो क्या होते तुम तो आदमी भी नहीं,

तुमने जिं़दा लोगों को आग में जलाया है।।

 

 

 

 

नोट-बर्क़-बिजली, आशियां-मकान, अज़्म-संकल्प, सदाक़त-सच, ज़मीर

-अंतर्रात्मा, जे़हन-मस्तिष्क, आतिशी-आग, तश्नालब-प्यासा।।

 

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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