कसम भगवान की अब कसम नहीं खाऊंगा

पंडित सुरेश नीरव

नेता तो हमारे देश में आजादी से पहले भी हुआ करते थे और आजादी के बाद भी हो रहे हैं। फर्क इतना है कि पहले होते थे, अब हो रहे हैं। हैं। मगर लोगों का मानना है कि आजादी से पहले के नेता बड़ी हाई क्वालिटी के हुआ करते थे। उंचे विचारोंवाले ऊंचे लोग। आज नेता की डिजायन बदलकर ओछे विचार और छोटे लोगोंवाली हो गई है। बोंसाई नस्ल के लोग। मिनी-मिनी,लघु-लघु। कभी नेताजी का संबोधन रिस्पेक्टकारक हुआ करता था। नेताजी मतलब सुभाष चंद्र बोस। आजाद हिंद फौज। आज किसी शऱीफ आदमी को नेता कह दो तो आजाद हिंद फौज का खयाल तो नहीं आता गोया फौजदारी की नौबत जरूर आ जाती है। नेताजी ने कहा था-तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा। आजादी अब नेता के लिए जनता का खून चूसने की आजादी बन गई है। कल की राजनीति के मुहावरे चवन्नी की तरह अकाल मृत्यु को प्राप्त होकर आज बंद हो चुके हैं। कभी आराम हराम है राजनीति का कर्मयोगी मुहावरा हुआ करता था। अब हरामी ही आराम से हैं। बाकी तो हे राम..हे राम कहकर अपने दिन काट रहे हैं। पुलसिया हत्या और कर्जे के भार से परेशान किसानों की आत्म हत्याओं के धुंध में जय जवान-जय किसान का नारा लापता हो चुका है। अहिंसा परमो धर्मः के पोस्टर की नाक के नीचे अब आतंकी बम सरेआम फटते हैं। राजनीति पहले समस्या सुलझाने का निरर्थक काम किया करती थी अब राजनीति खुद समस्या खड़ी करती है। समस्या खत्म हुई नहीं कि राजनीति अनाथ हुई। समस्या को लंबे समय तक लटकाना अब राजनीतिक कौशल माना जाता है। समस्या खुद ही घिसट-घिसट कर दम तोड़ दे तो ये अलग बात है राजनीति तो पूरी सावधानी के साथ समाधान को समस्या के पास भी नहीं फटकने देती। खुदा-ना-खास्ता कभी समाधान समस्या के सामने पड़ ही जाए तो राजनीति कुआंरी लड़की की तरह समस्या को पकड़कर आयोग के कमरे में बंद कर देती है। पता नहीं समस्या और समाधान का नैन मटक्का क्या गुल खिला दे। समस्या की कमसिन उमर और समाधान गबरू जवान। समस्या आखिर ठहरी औरत जात। उसकी इज्जत की निगरानी राजनीति नहीं करेगी तो और कौन करेगा। पता नहीं कब लक्ष्मी बाई जलेबी बाई बन जाए। और बैठे-ठाले मुन्नी बदनाम हो जाए। अगर तमाम पाबंदियों को बावजूद समस्या और समाधान ने मिलने-जुलने की कोशिश भी की तो दोनों को पेड़ पर लटकाकर राजनीति फांसी दे देती है। ऑनर किलिंग का धार्मिक संस्कार आखिर किस दिन काम आएगा। मस्जिद टूटी तो मंदिर का ढांचा भी चरमराया। आज की राजनीति का फलसफा है कि समाधान कभी मत करो। मगर समाधान करते हुए दिखो जरूर। सारी समस्याओं का समाधान है कि कभी समस्या का समाधान मत करो। कार्रवाई करो मत मगर करते हुए दिखो जरूर। हम देख रहे हैं। समस्या हमारे संज्ञान में है। पूरे जोर-शोर से समाधान के होम्योपेथिक आश्वासन जनता को देते रहो। आश्वासन होते ही देने के लिए हैं। ये कोई सतयुग के वचन और कसम थोड़े ही हैं कि प्राण जाएं पर वचन न जाई-जैसे डॉयलॉग पेलने पड़ें। सभ्य समाज में अब कहीं कोई कसम नहीं खाता। ये सब आउट डेटेड बातें हैं। अदालतों में जो सच बोलने की कसम खाकर मौलिक बयान देते हैं उनके चरित्र पर कुछ बोलना हिमालय को आइसक्रीम दिखाना है। सूरज के आगे लाइटर जलाना है। उंगली पर उंगली चढ़ाकर कसम खाने की बचपनी भोली हरकत को हम अभी तक सीरियली लिए हुए बैठे थे। हमें अज्ञानता में आश्वासन भी वचन लगते थे। मगर देर से ही सही अक्कल दाढ़ अब अपने भी इकलौते मुंह में उग आई है। हम भी आश्वासन और कसम का फर्क समझने लगे हैं। कसम न खाने की अब हमने कसम खा ली है। और आश्वासन देने का हमारी हैसियत हमें मौका ही कहां देती है। क्योंकि न तो हम राजनीति में हैं और न इश्क में। सच बोलने की बुरी आदत के कारण भगवान कसम हम तो हमेशा बस रिस्क में हैं। लीजिए फिर कसम खाली। सॉरी। वेरी सॉरी। बचपन की बुरी आदतों से छुटकारा आसानी से मिल भी कहां पाता है।

1 COMMENT

  1. नीरव जी
    आपके इस शायराना अंदाज पर तो लोहा भी गर्म हो के मोम बन के अपना रास्ता मोड़ने पर विवश हो जाये ,
    इन नेताओ का अन्तः परिवर्तन क्यों नहीं होता .

    पर एक बात आप ही अपने अगले लेख में उद्घृत करना की ये नेता किस धातु के बने होते है .

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