मोहम्मद फहद इस्लामी
समाज का वह व्यक्ति जिस के पास अपार दौलत हो और गरीबी नाम से दूर दूर तक वास्ता न हो वह क्या जानें गरीबी क्या होती हैं, उन्हें भुखमरी का एहसास भला कैसे होगा? दिल्ली और पटना जैसी राजधानियों के वातानुकूलित कमरों में चैन की नींद सोने वाले से गांव में बसे लोगों के दर्द की उम्मीद कैसे की जा सकती है? इसका एहसास केवल गुरबत और मुफलिसी की जिंदगी जीने वालों को ही हो सकता है। हमारा देश विभिन्न धर्मों और समुदायों के बीच का एक संगम है। यहां अलग अलग वेशभूषा और भाषा बोलने वाले मिलकर रहते हैं। सभी धर्मों के लोगों को संविधान की ओर से अपना त्योहार धार्मिक रीति रिवाज के अनुसार मनाने की पूरी आजादी है। हमारा देश महान हैं। वाकई महान हैं। जहां कई प्रकार का भेदभाव भी समान रूप से विद्यमान हैं। सबसे बड़ा भेदभाव अमीरी और गरीबी का है। जिसका दंश देश की एक बड़ी आबादी झेलने को विवश है। प्राचीन काल से भारत को सोने की चिडि़या की संज्ञा दी गई है। इस सोने की चिडि़या को पहले विदेशियों ने फिर आजादी के बाद भ्रष्टायचार और महंगाई जैसे संवेदनशील मुद्दे ने अपने खंूखार पंजे में जकड़ लिया है।
दुनिया का सबसे बड़ा गणतांत्रिक देश एक तरफ जहां भ्रष्टाचार का शिकार है तो दूसरी ओर फसल का उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं। एक ओर मामूली सरकारी कर्मचारी के घर करोंड़ो रूपए नकदी मिलता है तो दूसरी ओर इसी देश में भूख की खातिर मां-बाप अपने बच्चे को बेच रहे हैं। फाइव स्टार होटलों के सेमिनारों में आंकड़ों और तथ्यों के साथ यह दिखाया जाता है कि भारत तेजी से विकास की ओर अग्रसर हो रहा हैं। परंतु इन्हीं दावों और आंकड़ों के बीच सच्चाई यह है कि इस देश का एक बड़ा वर्ग आज भी भूखे सोने को विवश है। विकास की जमीनी सच्चाई यह है कि सभी प्रकार की सुविधाओं को लाभ उठाने वालों का नाम एपीएल में, एपीएल वाले का नाम बीपीएल में और बीपीएल वालों का नाम कहीं दर्ज नहीं होता है। सरकारें जो भी दावा करे वास्तविकता यही है कि कागजों में अमीर ही गरीब बने हुए है जबकि एक गरीब अपनी गुरबत, भूख और विभिन्न प्रकार की बीमारियों के कारण फुटपाथ पर ऐडि़यां रगड़ता हुआ मर जाता है।
सरकार समाज के हाशिये पर जी रहे लोगों के उत्थान के लिए विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं का संचालन तो कर रही है। परंतु समन्वय की कमी और भ्रष्टालचार के कारण इससे वास्तविक हकदार लाभान्वित नही हो पा रहे हैं। देश के पिछडे राज्य में शामिल बिहार के दरभंगा जिला स्थित छपकी पररी का वार्ड नं. 12 इसका जीता जागता उदाहरण है। स्टेशन से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस इलाक़े में प्रवेश करते ही गरीबी और सरकारी योजनाओं की असफलता मुंह चिढ़ाता दिखाई पड़ता है। यहीं साइकिल मिस्त्री मो. नसीम अपने बूढ़े माता-पिता, पत्नी नसीमा बीबी और तीन छोटे बच्चों के साथ एक कमरे में रहता है। उसकी पत्नी बताती है कि परिवार का नाम बीपीएल में दर्ज है, परंतु उसका लाभ क्या होता है उन्हें आज तक नहीं मालूम है। वह प्रश्नज करती है कि जब सरकार सारी योजनाएं गरीबों के लिए चलाती हैं। तो आखिर उनके परिवार को इस योजना से वचिंत क्यूं किया जा रहा है? आखिर बीपीएल में नाम दर्ज करवाने का क्या फायदा जब उन्हें इससे मिलने वाली योजनाओं से ही वंचित रखा गया है। उन्हें अपने सास और ससुर के साथ एक कमरे के घर में गुजर बसर करने को मजबूर होना पड़ता है जबकि बीपीएल सूची वालों को इंदिरा आवास का लाभ दिया जाता है। जनवितरण प्रणाली द्वारा मिलने वाला अनाज भी नहीं प्राप्त हुआ। किरासन तेल मात्र ढाई लीटर ही मिलता है लेकिन पैसा तीन लीटर का वसूला जाता हैं।
उन्होंने बताया कि जब मैं अपने 3 और 5 साल के बच्चों को ले कर आंगनबाडी गई तो यह कह कर नामांकन लेने से मना कर दिया कि यह बच्चे काफी छोटे हैं जबकि वहां इनसे भी कम उम्र के बच्चे मौजूद थे। उनका आरोप था कि उस आंगनबाड़ी केंद्र में गरीब के बच्चे कम संपन्न परिवार के बच्चे अधिक मौजूद थे। उस वक्त उनका प्रश्न् यथार्थ था कि क्या गरीब होना बुराई है? आसपास के उंचे उंचे मकानों में रहने वाले अपने घरों के कचरे हमारे घर के सामने फेंक देते हैं। व्याप्त गंदगी के कारण अनेक प्रकार की बीमारियों का हमेशा डर बना रहता हैं। बगल से गुजरते गंदे नाले से भिनभिन करते मच्छर बीमारियों को दावत देते नजर आते हैं। मच्छरों के काटने से बच्चे हमेशा बीमार रहते है। पैसों के अभाव उनका सही इलाज नही हो पाता है। उसने बताया कि जब मैं गर्भवती थी तब भी न तो कोई पौष्टिक आहार और न ही आवश्यहक दवाओं का ही इंतजाम हो पाया। जबकि सुना है कि आंगनबाड़ी में गर्भवती महिलाओं के लिए सब कुछ उपलब्ध है।
यह समस्या दरभंगा की एक अकेली नसीमा की नहीं है। न जानें ऐसी और कितनी नसीमा बी हैं जो गरीबी का दंश झेलने को विवश हैं। एक तरफ हम चांद पर पहुंचने का दावा करते हैं तो दूसरी ओर इसी देश की आधी से अधिक आबादी आर्थिक तंगी और समस्याओं के मकड़ जाल में फंसी हुई हैं। आंकड़े बताते हैं कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वाली एक बड़ी आबादी को पोषणयुक्त आहार नसीब नहीं होता है। जबकि करीब 37 प्रतिशत केवल एक वक्त का खाना खाकर अपना जीवन गुजार रहा है। यह कैसी विडंबना है कि हम आरक्षण के लिए संसद में नित नए बिल लाने पर जोर तो देते हैं परंतु खाद्य सुरक्षा जैसे आम आदमी से जुड़े बिल के लिए किसी को जल्दबाजी नहीं दिखती है। कहा जाता है कि दर्द का अहसास उसे ही होता है जो इस स्थिती से गुजर चुका है। गरीबी और आम आदमी की समस्याएं पर सभी राजनीतिक दल बात तो करना चाहते हैं परंतु कोई भी इस पर संवेदनशीलता के साथ बहस करने को तैयार नहीं है। ऐसा केवल इसलिए है क्योंकि उन्हें गुरबत का अहसास नहीं है। गरीबों के लिए चांद तारे तोड़ लाने का दावा करने वाले काश! देश के राजनेता भी गरीब होते तो वे गरीबी की परिभाषा समझ पाते। (चरखा फीचर्स)
इस लेख को पढ़कर मन व हृदय पीड़ित होकर एक ओर क्रोध व दूसरी ओर दया भाव उभरने लगते हैं।
क्या हमारे भारत जैसे राष्ट्र के कुछ स्तर व वर्गों के लोगों को भुखमरी,शारीरिक व मानसिक कष्ट ही अपने जीवन में झेलना लिखा है? क्या यह वही भारत है जिसने अपनी सम्स्कृति व सभ्यता के माध्यम से संपूर्ण संसार को मानवता का अर्थ सिखलाया ?आज क्यों चिराग़ तले घोर अंधेरा है?
ये दुख के काले बादल कब अद्ृश्य होकर सुखी व समृद्ध भारत का उदय होगा?
हमारे क्षुद्र ,अकर्मण्य व उपद्रवी नेताओं को निकाल बाहर करके उन्हें अपने दुष्कर्मों व पापों का भुगतान देना होगा? पाप करे पापी और भरे पुण्यवान?ऐसा अन्याय क्यों?
ये अन्याय कब तक सहेगी हमारी जनता???
ऐसे दुष्टों को सत्ते पर आने से रोकना आवश्यक है ।सत्यवादियों को मिलकर आम जनता को अच्छे ईमान्दार लोगों को ही वोट देने की शिक्षा देनी होगी।
इसमें सफलता पाने के लिए हर स्त्री व पुरुष -हर नागरिक को समाज में एक दूसरे से बात करके जाग्ृत करना होगा ताकि हमारा समाज संवेदनशील व ज़िम्मेदार बने।
और पुनः भारत एक सुखी,समृद्ध व सभ्य देश बन सके!!!
सत्यमेव जयते! जय भारत!