चुप रहता हूँ
कुछ भी काम नहीं करता
सिर्फ सपने बुनता हूँ
अकेला दौड़ता रहता हूँ
धूल भरी मेड़ों पर ।
मैं
खो जाता हूँ
देर तक कविताओं में
और डूबता-उबरता हूँ
उन कविताओं के स्पंदन में ।
मैं
नहीं चाहता हूँ
विष बोना
आदमियत की मिट्टी में ।
मैं
यही चाहता हूँ
कि प्रेम की गंगा बहे
हर इन्सान की खून में ।
इसलिए
मैं बैठा हूँ
अपने सपनों के मेड़ पर
और बंधन खुलती
आपकी कविताओं के पास ।
मोतीलाल