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विचारों की आचार-संहिता पर चरमपंथ की राजनीतिक छाया - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
क्या जयपुर लिटेरी फेस्टिवल की पटकथा में राजनीति का छायांकन जरुरी था या फिर सोच-समझ कर यह विवादस्पद रचना गढ़ी गयी थी. या फिर कार्पोरेटी मैनेजमेंट की माया में उलझ कर ब्रांड प्रमोशन का जरिया बनकर उभरा. जिसको कैश कराने के लिए कई तरह की दुकाने खुली. जिसको जो बेचकर…