हालत नहीं सुधरे तो बाघों का अस्तित्व खतरे में

सिवनी यशों-: पेंच नेशनल पार्क देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। इस नेशनल पार्क के संरक्षण में करोडों रूपये खर्च किये जाते है। नेशनल पार्क का महत्व मोगली की जन्म स्थली होने के कारण भी बढा है परंतु नेशनल पार्क के संरक्षण के लिये जिम्मेदार अमले द्वारा निरंतर लापरवाही का रवैया अपनाया जा रहा है। इस नेशनल पार्क के महत्व को जिम्मेदार अधिकारी बढाने की अपेक्षा अपने निजी स्वार्थों तक सीमित होकर इसके प्रति गैर जिम्मेदाराना व्यवहार कर रहे है। बाघ जैसे विलुप्त होते प्राणी जिसके लिये जिले की जलवायु काफी अनुकूल है इसकी अनुकूलता के चलते बाघों की प्रजनन संख्या से स्पष्ट होती है। बाघों की वंशवृद्धि हर वर्ष देखने को मिल रही है परंतु उससे अधिक दुख की बात यह है कि बाघ संरक्षण के लिये नियुक्त जिम्मेदार शासकीय वर्ग द्वारा बाघों की सही देखभाल न करने के कारण प्रजनन से अधिक बाघों की मृत्यु दर हो गई है।

इस वर्ष आपसी संघर्ष में पंचम नामक बाघ इलाज के दौरान भोपाल में मर गया। उसके पश्चात अरी के जंगलों मे एक बाघिन मार डाली गई। उसके कुछ दिन पश्चात पेंच टाईगर रिजर्व में बाघ मरने की घटना सामने आई और अभी हाल ही में दो बाघ शावक पेंच टाईगर रिजर्व में ऐसे मरे जिसकी जानकारी विभागीय अमले को भी दो दिन बाद लगी। विभाग के संबंधित अधिकारी इस बात से भी बेखबर थे कि पेंच टाईगर रिजर्व में कोई बाघ शावकों ने जन्म लिया है वह तो एक बीट गार्ड नियमित गश्त पर था तब उसे दोनो बाघ शावक मृत अवस्था में प्राप्त हुये उस दौरान कोई भी जिम्मेदार अधिकारी वहां उपस्थित नहीं था सभी सिवनी मुख्यालय मे अपने निजी कार्यों में संलग्न थे। बाघ शावकों की मौत ने विभाग के लापरवाहपूर्ण रवैये का खुलासा कर दिया है जो विभागीय अधिकारी लाखों रूपये बाघ संरक्षण एवं पेंच नेशनल पार्क के रख-रखाव की जिम्मेदारी के लिये नियुक्त है और मोटा-मोटा वेतन प्राप्त कर रहे है उन्हें ही इस बात की जानकारी नहीं है कि कोई बाघिन जो पेंच टाईगर नेशनल पार्क में है और वह गर्भवती है तो उसने शावकों को कब जन्म दिया और वे मर गये इसकी जानकारी तक उन्हें न होना पेंच नेशनल पार्क के प्रबंधन पर कई प्रश्न खडे करता है। जहां केंद्र एवं प्रदेश सरकार बाघों के संरक्षण के लिये चिंताएं जताकर बाघों के संरक्षण के लिये बेहतर उपाय करने की मानसिकता बता रही है वहीं बाघों के प्रति इस प्रकार जिम्मेदार अधिकारियों का रवैया सरकार की बाघ संरक्षण संबंधी मानसिकता को मटियामेट कर रहा है। बाघ विहीन हो चुके पन्ना नेशनल पार्क में भी पिछले दिनों पेंच नेशनल पार्क से एक बाघ भेजा गया जो अनुकूल जलवायु न होने के कारण वहां से भाग चुका है और लगभग माह भर का पूरा समय हो गया पन्ना नेशनल पार्क के अधिकारी उस बाघ को ट्रेस नहीं कर पा रहे है जबकि उसके गले में कालरआईडी वाला एक बेल्ट भी बंधा हुआ है। वन विभाग के उच्चाधिकारी स्वयं यह स्वीकार कर चुके है कि पन्ना नेशनल पार्क में छोडा गया यह बाघ सिवनी के पेंच नेशनल पार्क की ओर ही जा रहा है। यह घटना भी यही प्रमाणित करती है कि बाघों के लिये पेंच नेशनल पार्क अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराने वाला पार्क है। कमी है तो बस इस बात की कि इसकी देखभाल करने वाले अधिकारी बाघों के संरक्षण के प्रति संवेदनशील रहे अधिकारियो की संवेदनहीनता के कारण ही पेंच नेशनल पार्क व्यापक दुर्दशा और बाघों की मौत का कारण है। इस विलुप्त होते प्राणी के प्रति सरकारे भले ही गहरी चिंता व्यक्त कर रही हो परंतु बाघों के संरक्षण के प्रति गंभीर दिखाई नहीं दे रही है। बाघों की जब यह स्थिति है तो अन्य प्राणियों की पेंच नेशनल पार्क मे क्या स्थिति होगी इसका सहज अंदाज लगाया जा सकता है?

पेंच नेशनल पार्क देशी एवं विदेशी पर्यटको से खासी आमदानी जरिया भी है। इसके संरक्षण के प्रति सरकार को गंभीर होने की आवश्यकता है। सरकार की गंभीरता जहां बाघों के संरक्षण में सहायक सिद्ध होगी वही देशी एवं विदेशी पर्यटकों से प्राप्त होने वाले राजस्व में खासी वृद्धि होगी। लापरवाह एवं भ्रष्ट अधिकारियों के प्रति सरकार को कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है।

मनोज मर्दन त्रिवेदी संपादक दैनिक यशोन्नति

2 COMMENTS

  1. एक बाघ से एक जंगल. बाघों का मरना वास्तव बहुत चिंतनीय है. जंगल बचाना है तो बाघ बचाना होगा. जंगल बचाना है तो लोगो को जंगल से जोड़ना होगा. वर्तमान वन्य नियम के द्वारा जंगल आम लोगो के लिए दुर्लभ हो गए हैं. आम व्यक्ति जंगल जा नहीं सकता है क्योंकि बहुत खर्चीला होता है. जब तक आम आदमी, जंगल से नहीं जुड़ेंगे जंगल और बाघ नहीं बचेंगे.

    समाज सेवी संसथान, स्कूल, कॉलेज के जंगल अभियान मैं भागीदारी होनी चहिये. वन विभाग के क्रिया कलापों मैं अन्य संस्थायों की भादीगारी होनी चहिये. जंगल को वन विभाग के प्राइवेट लिमिटेड अवधारणा से अलग होना होगा.

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