‘‘यदि में प्रधानमंत्री बनी तो……….

शादाब जफर ‘‘शादाब’’

’’प्रधानमंत्री तो क्या मुख्यमंत्री भी नही बना पाये मायावती को बसपाई

‘‘यदि में प्रधानमंत्री बनी तो……….’’ मायावती का प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब, ख्वाब ही रह गया। उत्तर प्रदेश के बसपाई और दलित मायावती को प्रधानमंत्री तो क्या मुख्यमंत्री भी नही बना पाये। दूसरी ओर हकीकत ये भी है कि बसपा या दलितो ने ये ख्वाब नही देखा था कि मायावती देश की प्रधानमंत्री बने बल्कि खुद मायावती ने ही अपने आप को मनमोहन और लालकृष्ण आडवाणी के विकल्प के तौर पर देश के राजनीतिक पटल पर पेशकर लखनऊ के 5 कालीदास मार्ग से देहली के रायसीना रोड़ की तमन्ना की थी। मायावती के प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब को मीडिया और बसपा के लोगो ने हाथो हाथ लिया। जगह जगह से बसपाईयो के बयान आने लगे तरह के नारे लगने और बनने लगे। बहन जी खुद प्रधानमंत्री बनने की चाह में उत्तर प्रदेश के विकास और जनता को भूल कर अपराधियो और विकास शोषको का सहारा लेने पर मजबूर हो गई। विकास और शासन की अहमियत को पूरी तरह भूल गई। साथ ही वो ये भी भूल गई की जो ख्वाब वो देख रही है वो कच्ची नींद में देखे गये ख्वाब भर है जो कभी भी कांच के खिलौने की तरह गिर कर चूर चूर हो सकता है और 2012 विधानसभा चुनाव के बाद सचमुच आज मायावती की हैसियत कुछ इसी प्रकार की हो गई है। एक बहुत पुरानी कहावत है कि ‘‘ बिच्छु का मंत्र ना जाने और सांप के बिल में हाथ डाल दे’’ यानी उत्तर प्रदेश तो संभला नही और मायावती चली थी देश संभालने।

2012 विधानसभा चुनाव के बाद मायावती ने ये तो बहुत ही अच्छी तरह जान और समझ लिया होगा कि प्रदेश के मूस्लिमो के बगैर अकेले दलित, मायावती को उत्तर प्रदेश नही जिता सकते, और न ही वो मुस्लिमो के बगैर अब या कभी भी देश की प्रधानमंत्री नही बन सकती है। मायावती को ये बात अगर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले समझ में आ जाती तो 2007 में अपनी जीत की ऊंचाई से पांच साल बाद राजनीति की जमीन पर मायावती इस प्रकार धड़ाम से चारो खाने चित होकर नही गिर सकती थी। दूसरी ओर बसपा सुप्रीमो प्रदेश में जनाधार खोने के साथ ही इस बुरी हार के लिये किसी को दोषी नही ठहरा सकती है न मुस्लिमो को और न प्रदेश की अन्य जनता को क्यो कि अपनी पांच साला सरकार में आखिर मुस्लिमो और प्रदेश की अन्य जनता के लिये उन्होने क्या किया, कुछ नही।

2007 के विधानसभा चुनाव में 206 सीटो के सहारे बहुमत हासिल कर प्रदेश में अपने दम पर सरकार बनाने वाली मायावती 2012 में मात्र 80 सीटो पर ही सिमट कर रह गईं। दरअसल कांशीराम ने जो उन्हे दलित और मुस्लिम वोट बैंक उत्तर प्रदेश की सत्ता की चाबी के रूप में विरासत मे दिया था 2007 के बाद उन्होने उसे ब्राह्णी भ्रम में उलझकर सारा का सारा क्षतिग्रस्त कर दिया। 2007 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती, मुस्लिम दलित सशक्तिकरण और प्रदेश के विकास के मूल एजेंड़े से पूरी तरह भटक गई। वो ये भूल गई कि सरकारी धन बल से वे प्रदेश में अपनी और अपने गुरू कांषीराम व कुछ दलित महापुरूषो की मूर्तिया तो लगवा सकती है पर लोगो के दिलो में इस प्रकार जगह नही बना सकती। देखा जाये तो ऐसा कर के खुद मायावती ने अपने और इन महापुरूषो के कद को कम कर उन्हे एक जाति विशेष तक संकुचित करने की गलती की। ऊपर से इन प्रतिमाओ के रख रखाव पर प्रदेश सरकार के गले हर साल करोडो रूपये का खर्च अलग से डाल दिया। विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने मायावती को ये दिखा दिया कि जनता चाहे दलित हो, पिछडी हो, सवर्ण जाति की हो या फिर अल्पसंख्यक आज उसे केवल विकास चाहिये। उत्तर प्रदेश आर्थिक विकास के मामले में भले ही देश के अन्य राज्यो से पिछडा हो मगर देश की राजनीति में हमेशा ही उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर रहा है। उत्तर प्रदेश ने देश को एक नही, दो नही पूरे आठ प्रधानमंत्री दिये है। पिछले दिनो विधानसभा चुनाव से पहले और चुनाव के नतीजो के बाद जिस प्रकार देश के इस विषाल राज्य ने एक बार फिर से पूरे देश को अपनी और आकर्षित किया और कई राजनीतिक पार्टियो और राजनेताओ को अर्श से फर्श पर लाकर खडा कर दिया। कांग्रेस और भाजपा को इस चुनाव से इतना नुकसान नही हुआ जितना बहुजन समाज पार्टी, खास तौर से मायावती को हुआ।

बिना किसी संघर्ष या बडे जन आन्दोलन के कांशीराम व दलित मुस्लिमो के वोटो की खातिर लगातार सत्ता में आने व ‘‘तिलक तराजू और तलवार इन के मारो जूते चार’’ का नारा बसपा के मंच से लगाने वाली मायावती कुछ ब्राह्मणो के चंगुल में कब और कैसे फंसी पता ही नही चला। ब्राह्मण सलाहकारो की सलाह के कारण वो धूल, धूप और प्रदेश की आम गरीब जनता से बचने लगी जिस का प्रमाण स्पष्ट रूप से उत्तर प्रदेश विधानसभा 2012 के दौरान देखने को मिला जिस मायावती को मैने नजीबाबाद में सडको पर पैदल और साईकिल पर धूमते व नगर के मशहूर रेठे के पेड के नीचे तख्त पर बिना चादर और दरी के आराम से घंटो लेटे व चिलचिलाती धूप में पसीने से तरबतर जनता को सम्बोधित करते देखा था वो मायावती आज अपनी ही पार्टी के चुनाव प्रचार के दौरान दस कदम भी पैदल नही चल पा रही थी। दरअसल मायावती अपनी इस आदत और अपने इस राजसी अंदाज के लिये किसी को दोष नही दे सकती क्यो कि वो खुद ही लखनऊ स्थित अपने 5 कालीदास मार्ग की कोठी में पांच साल तक राजसी सुख भोगने के बाद खुद ब खुद प्रदेश की जनता से दूर होती गई। वो ऐसी पहली राजनेता नही है जिन को सर पर बैठाने के बाद जनता ने अपने कदमो में भी जगह नही दी इस के उदाहरण मायावती से पहले जयललिता और लालू प्रसाद यादव है।

हम सब ने देखा है कि मुख्यमंत्री मायावती के डर से प्रदेश के अफसर और पुलिस तंत्र कांपता था उसी मायावती के शासन में केवल 48 घंटे के अन्दर अन्दर कन्नौज में 14 साल की लडकी के साथ कथित बलात्कार कर के उस की आंख फोड देना, बस्ती में 18 साल की लडकी से कथित बलात्कार, कानपुर में महिला से बलात्कार, गोंडा में 16 साल की दलित लडकी से कथित बलात्कार ,फिरोजाबाद में 15 साल की नाबालिग बच्ची से बलात्कार और एटा में महिला से बलात्कार के बाद उसे जिन्दा जला दिया गया। वही बसपा सरकार के विधायको पर भी मायावती का कोई डर खौफ नजर नही आया। 2007 के मायावती विधायको के चरित्र पर अगर नजर डाले तो योगेंद्र सांगर पर 24 दिनो तक एक लडकी के साथ गैंग रेप का आरोप लगा। बांदा से एमएलए पुरूषोत्तम द्विवेदी पर नाबालिग लडकी के साथ गैंग रेप का आरोप लगा, राम मोहन गर्ग फिश डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के पूर्व चेयरमैन पर लडकी के साथ छेडछाप का आरोप लगा। पूर्व मंत्री और मिल्कीपूर से बसपा के एमएलए आनंद सेन यादव पर दलित छात्रा के यौन शोषण का आरोप लगा। डिबाई विधान सभा क्षेत्र से बसपा विधायक श्री भगवान शर्मा पर एक लडकी को अगवा कर बलात्कार करने का आरोप लगा।

मायावती ने जिस प्रकार प्रदेश की मुखिया के तौर पर विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश के तूफानी दौरा किये उस से प्रदेश की जनता को कुछ लाभ नही हुआ 72 जिलो के दौरे किये और 81 गांवो, 80 मालिन बस्तियो, 86 अस्पतालो, 148 तहसीलो और थानो का निरीक्षण किया। प्रदेश के अधिकारियो को यह पहले ही पता था कि उन्हे कहा जाना है कहा रूकना है इस लिये रातो रात बिना बजट के ठेकेदारो से मिलकर अधिकारी चयनित अम्बेडकर गांव अथवा कस्बे को दुल्हन की तरह सजा देते थे। थानो को दलालो, भूमाफियाओ, सट्टेबाजो और शराब माफियाओ से पैसा लेकर सजाया गया। गांवो और तहसीलो में हेलीपैड तथा मुख्यमंत्री की सुरक्षा के नाम पर लगभग तीन सौ करोड रूपया खर्च हुआ। किसानो की खडी फसलो को उजाडा गया अलग। मायावती अपने इन दौरे के दौरान जिस जिले में भी गई वहा कर्फ्यू जैसी स्थिति हो गई आम आदमी का जीना मुश्किल हो गया यहा तक की बीमार लोगो को दवाई लने के लिये अस्पतालो तक नही जाने दिया गया। कांशीराम शहरी आवास योजना के तहत सरकार द्वारा मकान आवंटन देखने मुख्यमंत्री जिस कालोनी में पहॅुची वहा लोगो को मुख्यमंत्री से मिलने नही दिया गया अधिकारियो ने घरो के कुंडे बाहर से लगा दिये।

भ्रष्ट अधिकारियो, मंत्रियो, राज्य के पुलिस तंत्र द्वारा बिना किसी भेदभाव के दलितो और आम आदमी को मायावती से दूर रखा गया, और इन पांच सालो में मायावती मुंगेरी लाल के हसीन सपनो की तरह देश के प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देखती रही और जनता भूख, अराजकता, हिंसा, मुनाफाखोरो से लडती रही। मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती ने ये कभी जानने की कोशिश ही नही की कि प्रदेश का आम आदमी किस हाल में है। नतीजा सामाजिक न्याय के भावावेश की लहर पर सवार कोई नेता जनता की अनदेखी कर के सत्ता पर काबिज नही हो सकता षायद मायावती ये भूल गई थी। मायावती न तो मुख्यमंत्री ही रही और न ही प्रधानमंत्री बन पाई। कहना ही पडेगा ‘‘न खुदा ही मिला ना विसाल-ए-सनम, ना ईधर के रहे ना उधर के रहे।

3 COMMENTS

  1. भाई शादाब जी ने ठीक कहा है की अब प्रदेश की राजनीती इस प्रकार के मोड़ पर आ गयी है की सत्ता में आने के लिए मुसलमानों का सहयोग लेना जरूरी है. २००७ में बसपा उन्ही के सहयोग से सत्ता में आ सकी थी और इस बार सपा भी उन्ही के ठोस समर्थन से बहुमत के साथ सत्ता में आ पाई है. आने वाले दिनों में यही स्थिति राष्ट्रिय स्टार पर भी होने वाली है. और सत्ता में आने के लिए मुस्लिम वोट बेंक का सहारा जरूरी हो गया है. २००४ और २००९ का यही सत्य है.और २००२ के गुजरात का यही फलितार्थ भी है.जो हिन्दू की बात करते हैं उन्हें यदि ये सत्य दिखाई नहीं पड़ता है तो उनका भगवान ही मालिक है.लेकिन क्या जातियों में बाते इस हिन्दू समाज को एकजुट करके वोट बेंक में बदलने की किसी राजनेता की इक्षाशक्ति है?मलाई तो खाना चाहते हैं लेकिन कढाई को साफ़ नहीं करना चाहते. २००४,२००७यु.पी.,२००९,२०१२ यु.पी. का यही यथार्थ है की जो लोग अपना गणित इस कल्पना पर चलते हैं की मुस्लिम वोट कई जगह बिखर जायेगा और उन्हें इसका लाभ मिल जायेगा वो सरासर गलत हैं. मुसलिम वोटर जागरूक है और अपने वोट को स्प्लिट करके भाजपा को सत्ता में आने का कोई रास्ता वो नहीं देना चाहता. आने वाले दिन शायद एक नए ध्रुवीकरण की और संकेत कर रहे हैं.

  2. शादाबजी मैं बिजनौर (धामपुर) से हूँ. बहुत अच्छा और सच लिखा है आपने. मायावतीजी इतना पैसा तो बना ही चुकी की अब मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बने या नहीं उनके भाई उसके बच्चे और वो स्वयं आने वाले समय में राजसी जीवन तो जी ही सकते हैं, जनता जाये भाड़ में|

    जनता की परवाह कौन सा नेता करता है, राजनीती है ही एक बिजनेस जिसमे भोली जनता को मुर्ख बना कर अपना उल्लू सीधा करना है| एक बार फिर इस लेख के लिए बधाई.

    अल्लाह हाफिज़

  3. शादाबजी मैं बिजनौर से हूँ. बहुत अच्छा और सच लिखा है आपने. मायावतीजी इतना तो कम ही चुकी की अब मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बने या नहीं उनके भाई उसके बच्चे और वो स्वयं आने वाले समय में राजसी जीवन जी सकते हैं. जनता जाये भाड़ में. जनता की परवाह कौन सा नेता करता है राजनीती है ही एक बिजनेस जिसमे भोली जनता को मुर्ख बना कर अपना उल्लू सीधा करना है.
    एक बार फिर इस लेख के लिए बधाई.

    अल्लाह हाफिज़

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