डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
पिछले दिनों पाकिस्तान से कुछ हिन्दु परिवार प्रयागराज में महाकुम्भ के अवसर पर स्नान करने के लिये भारत आये थे । इन परिवारों के सभी सदस्यों की संख्या कुल मिला कर चार सौ के आस पास बनती है ।
ये लोग दिल्ली में ठहरे हुये हैं । भारत सरकार ने इन्हें भारत में रहने के लिये केवल सीमित दिनों के लिये वीज़ा दिया था । इन हिन्दुओं के भारत में रहने के वे दिन समाप्त हो गये हैं । लेकिन वे वापिस पाकिस्तान जाना नहीं चाहते । उनका कहना है कि पाकिस्तान में हिन्दुओं का रहना कठिन ही नहीं लगभग असंभव हो गया है । उनकी लड़कियों को उठा लिया जाता है । उनसे बलात्कार होता है । मज़हब बदलने के लिये उन्हें विवश किया जाता है । यह तो केवल बानगी है । इन हिन्दुओं की शिकायतों की फ़ेहरिस्त बहुत लम्बी है । उस पर चर्चा करने की यहाँ ज़रुरत नहीं है ।
लेकिन असली प्रश्न है कि ये हिन्दु जो दुख भोग रहे हैं , उसमें इनका क्या दोष है ? पाकिस्तान का निर्माण कांग्रेस और जिन्ना का , भारत की सत्ता बाँटने के लिये किया गया आपसी समझौता था । विभाजन के लिये मुसलमानों ने जिन्ना को सहमति दे दी होगी ( यह भी संदेहास्पद है , क्योंकि शत प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले सीमान्त प्रान्त के खान अब्दुल्ल ग़फ़्फ़ार ने कांग्रेस को कहा था कि आपने हमें भेडियों के हवाले कर दिया है ) लेकिन हिन्दुओं ने तो कभी विभाजन का समर्थन नहीं किया था । वे तो अन्त तक कांग्रेस पर विश्वास करके बैठे रहे , तब कांग्रेस घोषणा कर रही थी कि विभाजन हमारी लाशों पर होगा । पाकिस्तान के ये हिन्दु कांग्रेस के उसी पाप और विश्वासघात का फल आज पाकिस्तान में भोग रहे हैं ।
पाकिस्तान के प्रसिद्ध अंग्रेज़ी अखवार डान ने १२ दिसम्बर १९५५ को पाकिस्तान में हिन्दुओं की दशा , दिशा और भविष्य पर एक गहरी टिप्पणी की थी । अख़बार ने लिखा — बहुत से लोग भारत और पाकिस्तान की तुलना करते हुये कहते हैं कि भारत में मुसलमानों के लिये भी समान अवसर हैं और वे वहाँ उच्च पदों पर भी विराजमान हैं । लेकिन पाकिस्तान में तो हिन्दुओं के लिये कोई स्थान नहीं । इसके आगे अखवार ने इस आलोचना का स्वयं ही उत्तर दिया है । अख़बार का कहना है कि यह तुलना ही अपने आप में भ्रामक है । भारत में मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद और रफ़ी अहमद किदवई जैसे जो लोग उच्च पदों पर बैठे , वे कभी मुसलमानों के साथ नहीं थे और शुरु से ही विभाजन का विरोध करते थे । लेकिन पाकिस्तान में शायद ही कोई ऐसा हिन्दु हो जिसने विभाजन का समर्थन किया हो । इस लिये पाकिस्तान में रह रहे हिन्दु मूल रुप से पाकिस्तान समर्थक नहीं हैं । इस लिये इन्हें पाकिस्तान में कोई जगह नहीं दी जा सकती ।
अखवार की इस व्याख्या से स्पष्ट हो गया है कि हिन्दुओं का पाकिस्तान में क्या भविष्य हो सकता है । इसे देख कर ही पाकिस्तान से अधिकांश हिन्दु निकल कर भारत आ गये । उस समय भी महात्मा गान्धी और पंडित जवाहर लाल नेहरु हिन्दुओं को पाकिस्तान से न आने के लिये अपील कर रहे थे । हो सकता है कुछ हिन्दुओं ने गान्धी नेहरु की अपीलों पर विश्वास कर लिया हो या फिर उनके पास भाग आने का सामर्थ्य न हो । वे वहीं फँसे रह गये । जिन्होंने गान्धी नेहरु पर विश्वास नहीं किया , वे पाकिस्तान से उसी समय भारत में आ गये थे । उनमें से एक मनमोहन सिंह भी थे । वे भारत में आकर यहाँ के प्रधानमंत्री बने हुये हैं ।
लेकिन जो उस समय पाकिस्तान से भाग कर नहीं आ पाये थे , उनमें से कुछ अब भाग कर आ पाये हैं । वे दिल्ली में डेरा डाल कर बैठे हैं । वे मनमोहन सिंह को खोज रहे हैं । क्योंकि इन हिन्दुओं का तो भारत में और कोई परिचित नहीं हैं । मनमोहन सिंह ही उनके अपने हैं । जिन गाँवों से ये हिन्दु आये हैं , उसी प्रकार के वहां के किसी गाँव से कभी मनमोहन सिंह आये थे । फर्क इतना ही है कि मनमोहन सिंह कुछ साल पहले आ गये थे और ये लोग उनके कुछ साल बाद आ पाये हैं । लेकिन मनमोहन सिंह दिल्ली में रहते हुये भी अपने इलाक़े के इन लोगों को मिलने नहीं गये । मिलने की बात तो दूर उन्होंने इनकी बात तक नहीं पूछी ।
ये हिन्दु एक और सज्जन की भी बेक़रारी से तलाश कर रहे हैं । वह सज्जन भी कभी इन्हीं में से एक था । वे हैं राजेन्द्र सच्चर । राजेन्द्र सच्चर के पिता भीमसेन सच्चर पाकिस्तान बनने के बाद भी पाकिस्तान में ही रहे । उसे अपना नया वतन मान कर । पर पाकिस्तान वालों ने उन की इस बात पर विश्वास नहीं किया कि वे पाकिस्तान को अपना वतन मानते हैं । डान अख़बार ने तो अपनी व्याख्या बहुत बाद में छापी लेकिन सच्चर पाकिस्तान में हिन्दुओं के भविष्य को जल्दी समझ गये और सही समय पर भारत चले आये । यहाँ वे पंजाब के मुख्यमंत्री बने । पाकिस्तान से आने वाले ये हिन्दु अब उनके बेटे राजेन्द्र सच्चर की भी तलाश कर रहे हैं । उनको लगता है कि उनकी हालत को और कोई समझे चाहे न समझे , सच्चर तो समझेंगे ही । लेकिन सच्चर भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे ।
आख़िर मनमोहन सिंह और राजेन्द्र सच्चर अपने ही भाई बहनों की संकट की इस घड़ी में मदद करने से क्यों बच रहे हैं ? शायद इसलिये कि ऐसा करने पर वे साम्प्रदायिक क़रार दिये जायेंगे । इसलिये ये दोनों सज्जन बंगला देश से आकर भारत में अवैध रुप से बस गये चार करोड़ से भी ज़्यादा बंगलादेशी मुसलमानों के मानवीय अधिकारों के लिये दिन रात एक कर रहे हैं । मोती लाल सीतलवाड की बेटी तीस्ता सीतलवाड ने विभाजन का दर्द तो नहीं ही भोगा होगा , इसलिये वे पाकिस्तान से आये इन हिन्दुओं का दर्द समझ पायेंगी , ऐसी आशा नहीं करनी चाहिये , लेकिन मुसलमानों की स्थिति को लेकर उनका उदरशूल कभी शान्त नहीं होता । क्या ही अच्छा होता , वे दिल्ली आकर इन शरणार्थियों से भी मिल लेतीं । उसको भी शायद वही भय हो कि ऐसा करने से साम्प्रदायिक हो जाने का ख़तरा मँडराने लगेगा ।
बहुत से लोगों को शायद अब पता न हो कि एक बार कैरेबियन देशों के दो सांसद भारत में नेहरु के पास इसलिये आये थे कि उन देशों में हिन्दुओं को अपने संस्कार करवाने के लिये पुरोहित नहीं मिलते , इसलिये भारत सरकार यदि कुछ पुरोहित वहाँ भेज दे तो वहाँ के हिन्दु सरकार के बहुत आभारी होंगे । नेहरु ने उनको बुरी तरह डाँटा था और इस घटिया साम्प्रदायिक कार्य से भारत को दूर रखने की अपनी प्रतिज्ञा दोहरा दी थी । तब किसी ने उन सांसदों को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखिया गुरु गोलवलकर के पास भेज दिया था । गुरु जी ने तब विश्व भर के हिन्दुओं की संकट गाथा सुनने और उसे दूर करने का प्रयत्न करने के लिये विश्व हिन्दु परिषद की स्थापना की थी । आज पचास साल बाद भी , जब पाकिस्तान से ये हिन्दु अपनी संकट गाथा लेकर दिल्ली पहुँचे हैं तो उन्हीं में से एक मनमोहन सिंह और राजेन्द्र सच्चर ने साम्प्रदायिकता के डर से उनके दुख को दूर करना तो दूर , उनकी करुण गाथा सुनना भी गवारा नहीं किया । अन्ततः विश्व हिन्दु परिषद के डा० प्रवीण भाई तोगडिया ही उनके पास पहुँचे ।
KSHMAA CHAHTAA HUN . Dr.KULDEEP CHAND AGNIHOTRI KE NAAM KE STHAAN PAR MAIN
BINU BHATNAGAR KAA NAAM LIKH GAYAA HUN .
हिन्दू हमेशा ही मार खाते आये हैं . कश्मीर भारत का अटूट अंग है लेकिन हिन्दुओं को
वहां रहना नसीब नहीं है . बीनू जी का लेख विचारणीय है .
सैक्यूलरिज़म के नाम पर हिन्दुओं ने अपने देश मे बहुत धोखे ख़ाये हैं बस अब नहीं..