लापरवाही से फलता -फूलता अवैध शराब का कारोबार

sharabमृत्युंजय दीक्षित

उत्तर प्रदेश में घटी कुछ दर्दनाक और शर्मनाक घटनाओं तथा उन पर घृणित राजनीति के प्रकरणों से वर्ष 2015 का आगाज हो गया है। जनवरी के पाक्षिक में ही राजधानी लखनऊ व उसके आसपास जहरीली शराब के कारण लगभग 50 की मौत हो गयी तथा 150 से अधिक लोग बीमार हो गये। प्रदेश के अभी तक जितने भी जहरीली शराब के कांड हुए हैं उनमे से यह सर्वाधिक गंभीर घटना है। उधर कौशाम्बी जिले से भी जहरीली शराब से चार मौतों के समाचार प्राप्त हुये हैं वहां पर भी जांच के नाम पर वही सब किया गया है जो कि लखनऊ कांड में किया गया था। एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात कार्यक्रम में युवाआंे में बढ़ रही नशे की लत के खिलाफ अपने विचार व्यक्त करते हैं तथा समझाने का प्रयास करते हैं लेकिन देश के हालात बदतर होते जा रहे हैं। जिसमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत के राज्यों का तो बुरा हाल है।

उत्तर प्रदेश में बार- बार जहरीली शराब कांड तो समाजवादी सरकार के विकास का नमूना है। जहां अफसरशाही व पुलिस की लापरवाही एवं रिश्वतखोरी के कारण जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है यानी कि उनके लिए कभी जहरीली शराब के नाम पर व फिर मिलावट के माध्यम से जनता के लिए मौत का बेहिसाब सामान बाजार में बेचा जा रहा है।

उत्तर प्रदेश में समय- समय पर जहरीली शराब के कांड होते रहे हैं लेकिन इतनी बड़ी तादाद में मौतें पहली बार हुई है। जहरीली शराब कांड से हुई मौतों के बाद स्वाभाविक रूप से विपक्ष हमलावर तो हो गया लेकिन ठीक उसी समय जब प्रदेश में बड़ी घटनाएं घट रहीं थीं उसी समय प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेष यादव अपनी पत्नी सांसद डिम्पल यादव का जन्मदिन मनाने के लिए लंदन चले गये। उसका इस प्रकार से प्रचार -प्रसार किया गया जैसे कि वे कोई बहुत बड़ा तीर मारने के लिए लंदन गये हैं। आज लगभग पूरे प्रदेश में ऐसे हालात बन गये हैं कि पुलिस व आबकारी अधिकारियों की जानकारी में धड़ल्ले से जहरीली कच्ची शराब की भटिठयां जंगलों में बेधड़क धधक रही हैं। यह सभी कहीं न कहीं किसी बड़े हादसे का कारण बन रही हैं व बनने वाली है। आज पूरे प्रदेश में जिस प्रकार से जहरीली कच्ची शराब का कारोबार पनप रहा है उसके लिए प्रदेश के सभी राजनैतिक दल व सभी दलों की सरकारें भी कम जिम्मेदार नहीं है। आजादी के बाद अधिकांश समय कांग्रेस की सरकारें रहीं तथा शेष समय जनता परिवार व अब सपा- बसपा की सरकारें रहीं। इन सरकरों की रणनीतियों व प्रशासनिक लापरवाही के कारण आज प्रदेश की जनता मौत के मुहाने पर बैठी है। राजधानी लखनऊ व उसके आसपास के इलाकों में घटी घटना से पता चलता है कि इस कारोबार का साम्राज्य कितना बड़ा फैल चुका है। खबरों से पता चल रहा है कि राजधानी लखनऊ से जैसे- जैसे आगे बढेंगे इसका दायरा और गहराता जा रहा है। सीतापुर, बलरामपुर, गोंडा ,फैजाबाद और आगे बढ़ते चले जाइये हर जिले का बुरा हाल हो रहा है।

जहरीली शराब का कारोबार पुलिस व अधिकारियों की जानकारी में हो रहा है। जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है तो केवल छापामारी और एक दो गिरफ्तारी दिखाकर इतिश्री कर ली जाती है। अवैध कच्ची शराब का कारोबार प्रदेश में गांव- गांव लघु उद्योग का रूप ले चुका है। शराब में तीव्रता लाने के लिए यूरिया , आक्सीटोशिन इंजेक्शन अथवा धतूरे के बीज को मिलाया जाता है। जिसे लहन भी कहा जाता है। बाद में इसी लहन को पीपे अथवा पतीले में भरकर चूल्हे पर पकाया जाता है। इस पतीले में एक पाइप जोड़ी जाती है और बोतल अथवा किसी अन्य वस्तु में शराब बूंद- बूंद करके टपकती है। गावांे में इस काम को अधिकतर महिलाएं अंजाम दे रही हैं। यहां तक कि यही महिलाएं अपने ग्राहकों को शराब परोसती भी हैं। जिसके कारण अन्य छोटे- मोटे सामाजिक अपराध भी होते रहते हैं। आज प्रदेश का कोई जिला व जंगल ऐसा नहीं बचा है जहां जहरीला कारोबार नहीं हो रहा है। सरकारी जांच के नाम पर केवल और केवल लीपापोती हो रही है। लखनऊ हादसे के बाद गांवों की महिलाओं व युवाओं में कुछ जागरूकता आई और उन्होनें अवैध शराब के कारोबार के खिलाफ अभियान में पुलिस प्रशासन की सहायता भी करी । युवाओं ने कारोबार में लगे कुछ लोगों को पकड़वाया भी। लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी लखनऊ कांड की जांच रिपोर्ट सामने आई है उससे आम जनता को काफी निराशा हुई है।

जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि मौतों के लिए मिथाइल एल्कोहल जिम्मेदार है। मलिहाबाद व उन्नाव में जहरीली शराब से हुई मौतों के लिए न तो पकड़ा गया शराब बेचने का आरोपी जगनू दोषी है और नही वे अधिकारी जो अवैध शराब की बिक्री रोकने में विफल रहे। अपनी जांच के दौरान जांच अधिकरी ने उन लोगों के बयान लिये जो शराब पीने के बाद बच गये थे। यह तो हाल है जांच अधिकारियों का ।

वैसे भी उत्तर प्रदेश का आजकल बुरा हाल हो रहा है। यहां पर हार काम समाजवादी आधार पर हो रहा है। जिसके कारण समाजवाद की चूले हिलती जा रही हैं। प्रशासन पर से आम जनता का विश्वास पूरी तरह से उठता जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में इतना विकास होने के बाद बेरोजगारी चरम सीमा पर है। युवा हताश हैं। अच्छे परिवार के युवा कमाई व उच्चशिक्षा प्राप्त करने के लिए दूसरे प्रदेशों को निकल गये लेकिन जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है वे यहीं पर आपराधिक प्रवृत्ति के कारोबारों में लिप्त हो गये हैं । यह अशिक्षित भी हैं या फिर बहुत कम पढ़े लिखे लोग जिनके पास स्वच्छ व स्वस्थ मनोरंजन का भी अभाव है वे इस प्रकार से घिनौने व्यापार में लिप्त हो गये हैं।शेष काम तो जातिवाद पर आधारित राजनीति व अफसरों का भ्रष्टाचार पूरा कर देता है। जब कोई बड़ा हादसा होता है तो थोड़े दिनों तक तो पूरा का पूरा सरकारी अमला चुस्त दुरूस्त रहता है और मीडिया भी खूब जमकर रिपोर्टिंग करता है । लेकिन कुछ समय बाद मामला षांत होने पर प्रशासन व सम्बंधित विभाग मामले को रफा दफा करवाने में लग जाते हैं।

आज समाज में खासकर युवाओं में जिस प्रकार से नशे की लत बढ़ रही है वह बेहद खतरनाक स्तर पर पहंुच रही है। परिवार के परिवार बर्बाद हो रहे हैं। अगर किसी परिवार में इस प्रकार की कोई अनहोनी होती है तो उससे परिवार का इतिहास ही बदल जाता है। आज यह बुराई समाज की सबसे बड़ी दुश्मन बन चुकी है। शराब व नशे के खिलाफ महिलाओं को ही आगे आना होगा तथा मोर्चा संभालना होगा क्योंकि इसकी सबसे अधिक शिकार महिलाएं ही हो रही हैं। इसके लिए यह भी जरूरी है कि प्रदेश में भी एक बेहद स्वच्छ छवि वाली मजबूत सरकार बने जो कि किसी भी प्रकार की राजनीति के दबाव से पूरी तरह से मुक्त हो । जिस दिन प्रदेश का समाज पूरी तरह से जागरूक हो जायेगा उस समय तत्काल ऐसी समस्याओ का समाधान भी हो जायेगा। नहीं तो प्रदेश में रोज होते रहेंगे जहरीली शराब के काण्ड ।

प्रेषकः- मृत्युंजय दीक्षित

1 COMMENT

  1. यह अभी लापरवाही से नहीं हो रहा बल्कि जानबूझकर हो रहा है. जब राजनेता अपना जन्म दिन मनाने लन्दन से बग्गी मंगाते हों/शादी की वर्षगांठ पैर विदेश मैं मस्ती छांटें हो/प्रदानमंत्री अपने नाम का ७-८ लाख का सूट पहिनते हों,एक भूत पूर्व प्रधानमंत्री २-३ ऐकड खेस्रफल के माकन में रहते हों/वे सामान्य आदमी के साथ अभी क्या हो रहा है और भविष्य में उनके परिवारों का क्या होगा इसकी चिंता क्यों करेंगे.?हमारे (म. प्र. )में तो देशी शराब की दुकान पर विदेशी भी उपलब्ध कराने की योजना थी. किन्तु पता नहीं क्या सद्बुद्धि आ गयी यह निर्णय स्वयं मुख्यमंत्री ने बदल दिया. आजकल सभी सरकारों का एक जुमला है.बिजली। पानी आधे दामो पर देंगे. अवैध कालोनियों को वैध करेंगे. और वहीं पर मकान बनाकर देंगे. गेंहू ,चांवल ,चारे या मिटटी के मोल देंगे, रोजगार वंही देंगे. मध्यानभिजेन देंगे. यह सब आखिर कहाँ से होगा?. या तो पेट्रोल पर कर लगाओ। या आय पर कर लगाओ या शराब की दुकानो की नीलामी करोड़ों में लगाहे के टारगेट दो. लूट मचा रखी है. राजा रेवड़ियां बाटने में लगा है.praja को आलसी/गैर जिम्मेदार/ कामचोर बनाने में लगे हैं. प्रतीक तौर पर या हिमशैल के रूप में उन्नति दिखाई दे रही है,किन्तु आबादी का एक वर्ग देहातों में बेहाल है. जगह जगह बाबाओं की धूम है जो सीधे स्वर्ग की रह बता रहे हैं,किसी देहात में बस से गुजरें दारू की दुकान आसानी से दिख जाएगी. दवाई या पाठशाला निगाह डालने पर दिखेंगे. हर अख़बार में प्रति सप्ताह एक न एक समाचार मिलेगा,चित्र भी छपेगा,की देखो इस चित्र में इस वाहन में इतने पुलिस . वालों ने इतने पेटी शराब ,पकड़ी इसका मूल्य इतने लाख था। ये सब आम हो चूका है. किसी धर्माचार्य /सामाजिक नेता/ विचारक /अर्थशास्त्री ने राष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या को हल करने की जेहमत नहीं उठाई। (उ.प्र.) ही नही पूरा देश इस समस्या से पीड़ित है. यह अभी लापरवाही से नहीं हो रहा बल्कि जानबूझकर हो रहा है. जब राजनेता अपना जन्म दिन मनाने लन्दन से बग्गी मंगाते हों/शादी की वर्षगांठ पैर विदेश मैं मस्ती छांटें हो/प्रदानमंत्री अपने नाम का ७-८ लाख का सूट पहिनते हों,एक भूत पूर्व प्रधानमंत्री २-३ ऐकड खेस्रफल के माकन में रहते हों/वे सामान्य आदमी के साथ अभी क्या हो रहा है और भविष्य में उनके परिवारों का क्या होगा इसकी चिंता क्यों करेंगे.?हमारे (म. प्र. )में तो देशी शराब की दुकान पर विदेशी भी उपलब्ध कराने की योजना थी. किन्तु पता नहीं क्या सद्बुद्धि आ गयी यह निर्णय स्वयं मुख्यमंत्री ने बदल दिया. आजकल सभी सरकारों का एक जुमला है.बिजली। पानी आधे दामो पर देंगे. अवैध कालोनियों को वैध करेंगे. और वहीं पर मकान बनाकर देंगे. गेंहू ,चांवल ,चारे या मिटटी के मोल देंगे, रोजगार वंही देंगे. मध्यानभिजेन देंगे. यह सब आखिर कहाँ से होगा?. या तो पेट्रोल पर कर लगाओ। या आय पर कर लगाओ या शराब की दुकानो की नीलामी करोड़ों में लगाहे के टारगेट दो. लूट मचा रखी है. राजा रेवड़ियां बाटने में लगा है.praja को आलसी/गैर जिम्मेदार/ कामचोर बनाने में लगे हैं. प्रतीक तौर पर या हिमशैल के रूप में उन्नति दिखाई दे रही है,किन्तु आबादी का एक वर्ग देहातों में बेहाल है. जगह जगह बाबाओं की धूम है जो सीधे स्वर्ग की रह बता रहे हैं,किसी देहात में बस से गुजरें दारू की दुकान आसानी से दिख जाएगी. दवाई या पाठशाला निगाह डालने पर दिखेंगे. हर अख़बार में प्रति सप्ताह एक न एक समाचार मिलेगा,चित्र भी छपेगा,की देखो इस चित्र में इस वाहन में इतने पुलिस . वालों ने इतने पेटी शराब ,पकड़ी इसका मूल्य इतने लाख था। ये सब आम हो चूका है. किसी धर्माचार्य /सामाजिक नेता/ विचारक /अर्थशास्त्री ने राष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या को हल करने की जेहमत नहीं उठाई। (उ.प्र.) ही नही पूरा देश इस समस्या से पीड़ित है.

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