जानिए पूजन में दीपक का महत्त्व एवम् प्रकार

deepakचराचर जगत में जीवन जीने के लिए प्राणि मात्र को प्रकाश चाहिए। बिना प्रकाश के वह कोई भी कार्य नहीं कर सकता।

सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रकाश सूर्य का है। इसके प्रकाश में अन्य सभी प्रकाश समाए रहते हैं। इसीलिए कहा गया है–

शुभं करोति कल्याण आरोग्यं सुख संपदम्।
शत्रु बुद्धि विनाशं च दीपज्योतिः नमोस्तुते।

जिस व्यक्ति के हाथ में सूर्य रेखा स्पष्ट, निर्दोष तथा बलवान होती है या कुंण्डलीमें सूर्य की स्थिति कारक, निर्दोष तथा बलवान होती है, वह धनवान, कीर्तिवान, ऐश्वर्यवान होता है और दूसरे के मुकाबले भारी पड़ता है। वह बुराई से दूर रहता है। इसलिए पूजा पाठ में पहले ज्योति जलाकर प्रार्थना की जाती है कि कार्य समाप्ति तक स्थिर रह कर साक्षी रहें।
पूजन के समय देवताओं के सम्मुख दीप उनके तत्व के आधार पर जलाए जाते हैं |

देवी मां भगवती के लिए तिल के तेल का दीपक तथा मौली की बाती उत्तम मानी गई है। देवताओं को प्रसन्न करने के लिए देशी घी का दीपक जलाना चाहिए। वहीं शत्रु का दमन करने के लिए सरसों व चमेली के तेल सर्वोत्तम माने गए हैं। देवताओं के अनुकूल बत्तियों को जलाने का भी योग है|

भगवान सूर्य नारायण की पूजा एक या सात बत्तियों से करने का विशेष महत्व है वहीं माता भगवती को नौ बत्तियों का दीपक अर्पित करना सर्वोत्तम कहा गया है। हनुमान जी एवं शंकरजी की प्रसन्नता के लिए पांच बत्तियों का दीपक जलाने का विधान है। इससे इन देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।

अनुष्ठान में पांच दीपक प्रज्वलित करने का महत्व अनूठा है- सोना, चांदी, कांसा, तांबा, लौहा।
दीपक जलाते समय उसके नीचे सप्तधान्य (सात प्रकार का अनाज) रखने से सब प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।

यदि दीपक जलाते समय उसके नीचे गेहू रखें तो धन-धान्य की वृद्धि होगी। यदि दीपक जलाते समय उसके नीचे चावल रखें तो महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी। इसी प्रकार यदि उसके नीचे काले तिल या उड़द रखें तो स्वयं मां काली भैरव, शनि, दस दिक्पाल, क्षेत्रपाल हमारी रक्षा करेंगे। इसलिए दीपक के नीचे किसी न किसी अनाज को रखा जाना चाहिए।

साथ में जलते दीपक के अंदर अगर गुलाब की पंखुड़ी या लौंग रखें, तो जीवन अनेक प्रकार की सुगंधियों से भर उठेगा। यहाँ विभिन्न धातुओं के दीपकों का महत्व एवम् प्रभाव का उल्लेख किया जा रहा है जिन्हें जलाने से उनसे संबद्ध मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

सोने का दीपक:—-
सोने के दीपक को वेदी के मध्य भाग में गेहूं का आसन देकर और चारों तरफ लाल कमल या गुलाब के फूल की पंखुड़ियां बिखेर कर स्थापित करें। इसमें गाय का शुद्ध घी डालें तथा बत्ती लंबी बनाएं और इसका मुख पूर्व की ओर करें। सोने के दीपक में गाय का शुद्ध घी डालते हैं तो घर में हर प्रकार की उन्नति तथा विकास होता है। इससे धन तथा बुद्धि में निरंतर वृद्धि होती रहेगी। बुद्धि सचेत बुरी वृत्तियों से सावधान करती रहेगी तथा धन सही स्रोतों से प्राप्त होगा।

चांदी का दीपक:— पूजन में चांदी के दीपक को चावलों का आसन देकर सफेद गुलाब या अन्य सफेद फूलों की पंखुड़ियों को चारों तरफ बिखेर कर पूर्व दिशा में स्थापित करें। इसमें शुद्ध देशी घी का प्रयोग करें। चांदी का दीपक जलाने से घर में सात्विक धन की वृद्धि होगी।

तांबे का दीपक:—- तांबे के दीपक को लाल मसूर की दाल का आसन देकर और चारों तरफ लाल फूलों की पंखुड़ियों को बिखेर कर दक्षिण दिशा में स्थापित करें। इसमें तिल का तेल डालें और बत्ती लंबी जलाएं। तांबे के दीपक में तिल का तेल डालने से मनोबल में वृद्धि होगी तथा अनिष्टों का नाश होगा।

कांसे का दीपक:—- कांसे के दीपक को चने की दाल का आसन देकर तथा चारों तरफ पीले फूलों की पंखुड़ियां बिखेर कर उत्तर दिशा में स्थापित करें। इसमें तिल का तेल डालें। कांसे का दीपक जलाने से धन की स्थिरता बनी रहती है। अर्थात जीवन पर्यन्त धन बना रहता है।

लोहे का दीपक:—- लोहे के दीपक को उड़द दाल का आसन देकर चारों तरफ काले या गहरे नीले रंग के पुष्पो की पंखुड़ियां बिखेर कर पश्चिम दिशा में स्थापित करें। इसमें सरसों का तेल डालें। लोहे के दीपक में सरसों के तेल की ज्योति जलाने से अनिष्ट तथा दुर्घटनाओं से बचाव हो जाता है।
जानिए कैसे करें ग्रहों की पीड़ा निवारण हेतु दीपक का प्रयोग :—-

जिस प्रकार पूजा में नवग्रहों को अंकित किया जाता है वैसे ही चौकी( बाजोट या पाटिया) के मध्य में सोने के दीपक को रखा जाता है। सोने के दीपक में सूर्य का वास होता है। सबसे पहले इसकी चैकी को तांबे में मढ़वाने का अर्थ है शरीर में रंग की शुद्धता तथा प्रचुरता क्योंकि तांबे में मंगल का वास है और शरीर में मंगल खून का नियंत्रक है। इसी तरह दीपकों को चैकी पर रखने का क्रम है।

जिस प्रकार पूजा क्रम में सूर्य मंडल को मध्य में रखकर पूजा की जाती है और माना जाता है कि सूर्य के चारों तरफ आकाश में उससे आकर्षित होकर सभी ग्रह उसकी परिक्रमा करते रहते हैं और उपग्रह अपने ग्रह के साथ सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं। उसी प्रकार अन्य दीपक सोने के दीपक के चारों तरफ स्थापित किए जाते हैं।
मिट्टी या आटे का दीपक एक बार जलकर अशुद्ध हो जाता है। उसे दोबारा प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।।

यह दीपक पीपल एवं क्षेत्रपाल के लिए विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार इन पांच दीपकों को जलाने से सभी ग्रह अनुकूल हो जाते हैं साथ ही अन्य देवता प्रसन्न होते हैं। इससे तीनों बल बुद्धिबल, धनबल और देहबल की वृद्धि होती है और विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं। इस प्रकार यह दीप ज्योति जहां जप पूजा की साक्षी होती है, वहीं वह जीवन में इतना उपकार भी करती है कि जातक ग्रह की कृपा प्राप्त कर लेता है।।।

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